ब्रेकिंग न्यूज़ आरटीआई से खुलासा…..उपसंचालक पंचायत जूली…- भारत संपर्क
ब्रेकिंग न्यूज़ आरटीआई से खुलासा…..उपसंचालक पंचायत जूली सचिवों के साथ कर रही भेदभाव, पोड़ी उपरोड़ा को छोड़कर अन्य चारों ब्लॉक के सचिवों का रोका लंबित वेतन, तबादले के बाद भी नहीं हुई भारमुक्त, शासन के आदेश की अवहेलना
कोरबा। एक तरफ प्रदेश की भाजपा सरकार विष्णु के सुशासन का नारा दे रही है, तो दूसरी ओर भ्रष्टाचारधानी बन चुकी कोरबा में कुशासन का उदाहरण देखने को मिल रहा है। इस बार भी विवादित उपसंचालक पंचायत सुश्री जूली तिर्की का कारनामा इसका केंद्र बिंदु है। जहां स्थानांतरण के बाद भी सुश्री जूली तिर्की को भारमुक्त न कर शासन के आदेश की अवहेलना की जा रही है, वहीं पंचायत सचिवों के साथ मैडम भेदभाव कर रही हैं। पोड़ी उपरोड़ा को छोड़कर अन्य चारों ब्लॉक के सचिवों का लंबित वेतन रोक दिया गया है। जिससे सचिवों में उपसंचालक पंचायत के खिलाफ गहरा आक्रोश है। जिला पंचायत कोरबा की उपसंचालक पंचायत में पदस्थ अधिकारी सुश्री जूली तिर्की ने जिले में सचिवों के साथ भेदभाव करते हुए ग्राम पंचायत सचिवों का रुका हुआ लंबित वेतन जनपद पंचायत पोड़ी उपरोड़ा के सचिवों को दे दिया है, लेकिन जनपद पंचायत करतला, कोरबा, कटघोरा, पाली, के सचिवों को वेतन नहीं दिया गया। जिससे ग्राम पंचायत सचिवों में में काफी आक्रोश है। उपसंचालक पंचायत के प्रति सचिवों का यह आक्रोश आंदोलन का कारण बन जाए तो हैरानी नहीं होगी। सुश्री तिर्की का विवादों से नाता रहा है। पूर्व विधायक व आदिवासी कद्दावर नेता ननकी राम कंवर भी पंचायत उप संचालक के खिलाफ शिकायत कर जांच की मांग कर चुके हैं। मगर भाजपा के राज में भी पार्टी के वरिष्ठ नेता की सुनवाई नहीं हुई। आखिरकार सहायक संचालक, कार्यालय उप संचालक, पंचायत, जिला बिलाईगढ़-सारंगढ़ ट्रांसफर भी हो गया है तो अब रिलीव नहीं किया जा रहा है। शासन के आदेशानुसार एक सप्ताह के अंदर जिला मुख्यालय छोड़ना है, शासन के आदेश का पालन नहीं हो रहा है। जिला प्रशासन भी इस मामले में शासन के आदेश का पालन कराने तनिक भी गंभीर नहीं है।
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छत्तीसगढ़ शासन सामान्य प्रशासन विभाग का है यह आदेश
राज्य शासन द्वारा प्रशासनिक दृष्टिकोण से समय-समय पर अधिकारियों / कर्मचारियों का अन्यत्र पदस्थापना अथवा स्थानांतरित करते हुए अन्य कार्यालय में नवीन पदस्थापना की जाती है। यह बात देखने में आया है कि अन्यत्र पदस्थापना अथवा स्थानांतरण के फलस्वरूप प्रभावित अधिकारी/कर्मचारी अपने नवीन पदस्थापना स्थान पर उपस्थित होने के बजाय उक्त स्थानांतरण आदेश के विरूद्ध माननीय न्यायालय में याचिका दायर की जाती है। स्थानांतरण के ऐसे कई मामलों में माननीय न्यायालय द्वारा संबंधित अधिकारी अथवा कर्मचारी को स्थगन देते हैं। प्रायः उस अवधि में संबंधित अधिकारी/कर्मचारी अपने कर्तव्य से अनुपस्थित रहते हैं। साथ ही उस अवधि के लिए वेतन, भत्ते की मांग करते हैं, जब वे अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित रहते हैं। स्थानांतरण एक सतत् प्रक्रिया है। इसके पीछे शासन की यह मंशा रहती है कि राज्य सरकार द्वारा संचालित सभी योजनायें सुचारू रूप से संचालित हो सके, तथा शासकीय अधिकारियों/कर्मचारियों के अभाव में योजनाएं प्रभावित न हो। स्थानांतरित किए गए शासकीय सेवक को स्थानांतरण आदेश जारी होने के 10 दिवस के भीतर कार्यमुक्त किया जाए। यदि संबंधित शासकीय सेवक निर्धारित समयावधि में कार्यमुक्त नहीं होता है तो उसे सक्ष्म अधिकारी द्वारा एकक्षीय भारमुक्त करने के आदेश दिए जाए तथा स्थानांतरण आदेश क्रियान्वित हुआ माना जाए। यदि शासकीय सेवक द्वारा स्थानांतरण आदेश का पालन नहीं किया जाता है तो उसके विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाये। शासकीय सेवकों द्वारा 07 दिवस के भीतर स्थानांतरण आदेश का पालन न किए जाने की स्थिति में संबंधित शासकीय सेवक के विरूद्ध निलम्बन की कार्यवाही की जाए और अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित व्यक्ति के विरूद्ध “ब्रेक-इन-सर्विस” की कार्यवाही की जाए। स्थानांतरित शासकीय सेवक यदि 07 दिनों से अधिक अवधि के लिए लघुकृत अवकाश लेता है तो उसे मेडिकल बोर्ड के समक्ष उपस्थित होने के लिए कहा जाए। यदि मेडिकल बोर्ड द्वारा अनुशंसा नहीं की जाती है अथवा शासकीय सेवक अन्य अवकाश के लिए आवेदन करता है या अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित रहता है तो ऐसी अवधि को अनाधिकृत अनुपस्थिति मानकर इसे “डाईज-नॉन” किया जाए।