क्या सलवार-सूट भारतीय परिधान है? पहले जान लें इसकी पूरी हिस्ट्री
सलवार-सूट का इतिहास.
भारतीय अपनी विविधताओं भरी संस्कृति के लिए जाने भी जाने जाते हैं. हमारे यहां हर राज्य का पहनावा अलग-अलग है. भारत की यह खासियत रही है कि यहां पर हर चीज को अपनाया जाता है. आज के टाइम में वेस्टर्न कल्चर का फैशन यंग जेनरेशन के बीच ज्यादा ट्रेंड में है, लेकिन फिर भी हर खास मौके पर तो एथनिक अटायर ही पहना जाता है. हाल ही में अब सिद्धि विनायक मंदिर में ड्रेस कोड लागू किया गया है जिसमें भक्तों को शालीन कपड़ों में आने को कहा गया है. फिलहाल जब बात भारतीय परिधान की होती है तो ज्यादातर लोगों को सबसे पहले साड़ी और सलवार सलवार सूट ही ध्यान आता है. पंजाब में पटियाला सूट पॉपुलर है तो कश्मीर में इसे डोगरी सुथन, कहा जाता है तो वहीं हरियाणा में सलवार-कमीज कहते हैं. इसके अलावा डिजाइन के हिसाब से अनारकली सूट, गोटा-पट्टी वर्क सूट, चिकनकारी कुर्ती, प्लाजो सूट भी काफी ट्रेंड में रहते हैं.
राज्य के हिसाब से सलवार सूट के कई अलग-अलग डिजाइन और पहनने के तरीके देखने को मिलते हैं. यह भारतीय पारंपरिक ड्रेस कोड में इस तरह शामिल हो चुका है कि ज्यादातर लोगों को लगता है यह भारतीय परिधान ही है. भले ही भारत में सलवार सूट का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन यह पूरी तरह से भारतीय परिधान नहीं है, बल्कि इसे हमारे कल्चर में अपनाया गया है. तो चलिए जान लेते हैं कि भारत में किस तरह आया सलवार सूट और ये कैसे धीरे-धीरे पॉपुलर हुआ और कितने बदलाव आए.
मुगल कल्चर से आया सलवार-सूट?
फैशन एक्सपर्ट ने ट्रेडिशनल आउटफिट्स में भी कई एक्स्पेरिमेंट्स किए ताकि ट्रेंड के हिसाब से बदलाव किए जा सकें और इनका पुराना स्टाइल भी बरकरार रहे. इसलिए आज भी सलवार सूट एक काफी कंफर्टेबल परिधान है, लेकिन इसका लुक आज के टाइम में बहुत बदल चुका है. सलवार सूट की अवधारणा सबसे पहले मुगलों से भारत में आई. मुगल शासन के दौरान संभ्रात परिवारों के पुरुष और महिलाएं रेशम, मलमल, ब्रोकेड डिजाइन के बने उच्च गुणवत्ता वाली पोशाक पहना करते थे. मुगल काल में महिलाओं सलवार कुर्ती खासतौर पर गरारा के साथ कुर्ती पहना करती थीं. इसके अलावा पुरुषों को पहनावे में लॉन्ग घेरदार कुर्ता पुरुषों का पहनावा हुआ करता था. इसकी जड़े फारस और मध्य एशिया से जुड़ी मानी जाती हैं. फिर मुगलों ने इसे अपनाया. भारत में मुगल शासकों के आगमन के बाद उनकी पोशाक से प्रेरित होकर धीरे-धीरे भारत में भी सलवार-कमीज का चलन बढ़ा.
इस तरह पॉपुलर हुआ सलवार सूट
भारत में सलवार सूट के पॉपुलर होने की बात करें तो सबसे पहले पंजाब में यह पारंपरिक पोशाक के रूप में पहना जाने लगा. आरामदायक और शालीन पहनावा होने की वजह से महिलाएं सलवार-सूट को रोजमर्रा के साथ ही खास मौकों पर पहनने लगीं और धीरे-धीरे ये एक ट्रेडिशनल आउटफिट बन गया. इसे इसके बाद भारत और दक्षिण एशिया के अन्य भागों में भी सलवार-सूट पॉपुलर हुआ. जिसके बाद डिजाइनों में भी प्रयोग किए जाने लगे.
भारतीय शैली में ढले सलवार सूट
सलवार-सूट भले ही मुगल काल से प्रेरित रहे हो, लेकिन फिर यहां की कढ़ाई, हथकरघे की बुनाई वाले कपड़ों के डिजाइन, सिलाई करने के तरीका, जैसे कुर्ती की लंबाई, गले के डिजाइन में बदलाव, दुपट्टों में अलग-अलग तरह की पारंपरिक कढ़ाई भी जुड़ गई और सलवार सूट भारतीय संस्कृति के अनूरूप बनता गया. इस तरह से भारत में सलवार सूट पारंपरिक परिधान में शामिल हो गया. आज यह पोशाक गौरव और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बन चुकी है. सूट के भारत में पॉपुलर होने का सबसे बड़ा कारण रहा कि यह पहनने में काफी आरामदायक और शालीन पोशाक है.
भारत में ये हैं महिलाओं के पारंपरिक परिधान
भारत के पारंपरिक पहनावे की बात करें तो साड़ी महिलाओं में सबसे ज्यादा पॉपुलर है, जिसका डिजाइन और ड्रेपिंग का तरीका राज्यों को हिसाब से बदलता चला जाता है. जैसे महाराष्ट्र में नौवारी साड़ी पुराने धोती स्टाइल में बांधी जाती है, पैठनी पॉपुलर है, केरल में कपनि, तमिलनाडु में पुदवै और कर्नाटक में साड़ी को सीरे कहा जाता है.
- मध्य प्रदेश और गुजरात में लहंगा-चोली पारंपरिक परिधान है.
- ट्रेडिशनल आउटफिट की बात करें तो हरियाणा में महिलाएं घाघरा-कमीज पहनती हैं.
- मेघालय में महिलाओं की पारंपरिक पोशाक जैनसेम, डक्मंडा, जैनपिएन और योह सरु होती है.
- अरुणाचल में हैते अबी, सुपुंग तारी, इडु मिश्मी, पुकांग आदि पोषाक होती हैं.
- असम में महिलाएं रेशम से बनी पोषाक मेखला चादोर पहनती हैं जो कपड़े को दो टुकड़ों की बनी होती है.
- मणिपुर में पारंपरिक रूप से महिलाएं फेनेक, मोईरांग फी, पोटलोई और कुकी शॉल आदि आउटफिट पहनती हैं.
- इस तरह से भारत के अलग-अलग राज्यों में पारंपरिक परिधानों में भिन्नता देखने को मिलती है.