जंग की वजह से रुक गया है भारत मध्य पूर्व यूरोप गलियारा प्रोजेक्ट, बंद नहीं हुआ…

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जंग की वजह से रुक गया है भारत मध्य पूर्व यूरोप गलियारा प्रोजेक्ट, बंद नहीं हुआ…

पिछले साल 7 अक्टूबर को हमास की ओर से इजरायली नागरिकों पर किए गए भीषण हमले के बाद से पश्चिम एशिया में लगातार अशांति का माहौल बना हुआ है. लाल सागर से होकर गुजरने वाले जहाजों पर ईरान समर्थित मिलिशिया विद्रोहियों के हमले से पूरा पश्चिम एशिया क्षेत्र खतरे की जद में आ गया है. अब यह उस डेडली लाइन को भी पार कर गई है जो इस क्षेत्र को जला सकती है. जॉर्डन में पिछले दिनों एक अमेरिकी चौकी पर ड्रोन हमले में 3 अमेरिकी सैनिक मारे गए जबकि 30 से अधिक लोग घायल हो गए. अमेरिका अपने लोगों के मारे जाने से भड़का हुआ है. अब उसने “सीरिया और इराक में सक्रिय कट्टरपंथी ईरान समर्थित आतंकवादी गुटों” को दोषी ठहराते हुए जवाबी कार्रवाई करने की कसम खाई है. ऐसे में तीसरा वॉर फ्रंट बनने की ओर से है जो इस क्षेत्र को और अधिक अस्थिर कर सकता है.

न्यूज 9 प्लस शो में अमेरिकी यहूदी समिति (AJC) के मुख्य नीति और राजनीतिक मामलों के अधिकारी जेसन इसाकसन ने कहा, “यह पूरी तरह से साफ है कि अमेरिका इस संघर्ष को बढ़ाना नहीं चाहता, लेकिन उसके पास अपने सैनिकों पर हमले का जोरदार जवाब देने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है.” हालांकि ईरान की ओर से इन आरोपों से इनकार कर दिया गया है, लेकिन अपने प्रतिरोध की धुरी को मजबूत करने के लिए क्षेत्रीय मिलिशिया का समर्थन करने के तेहरान के इतिहास को देखते हुए, लोग आश्वस्त नहीं हैं.

जामिया मिलिया इस्लामिया के पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र के डॉक्टर प्रेमानंद मिश्रा ने कहा, “नए हमले के साथ, ईरान सीधे संयुक्त राज्य अमेरिका पर टेस्ट कर रहा है. ईरान निश्चित रूप से अपनी कार्रवाई के संबंध में अमेरिका के लिए चुनौती पेश कर रहा है. बाइडेन प्रशासन पहले से ही घरेलू स्तर पर गंभीर दबाव का सामना कर रहा है. वह अमेरिका में अपना चेहरा बचाने और ईरान तथा शेष दुनिया को मैसेज देने के लिए निश्चित रूप से कुछ न कुछ करेंगे.” न्यूज9 प्लस के संपादक संदीप उन्नीथन के साथ बातचीत में डॉक्टर मिश्रा कहा, “ईरान इस मामले में अच्छी स्थिति में है जहां उसे शामिल किए बिना कोई भी शांति प्रक्रिया नहीं हो सकती.”

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अब्राहम समझौते के लिए इसका क्या अर्थ?

विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान की निरंतर आक्रामकता का मकसद अरब दुनिया और इजराइल के बीच किसी भी तरह की शांति प्रक्रिया को बाधित करना है. अब्राहम समझौते (Abraham Accords) की प्रगति और रिश्तों को सामान्य करने की कोशिश अरब-इजरायल संघर्ष को खत्म कर सकती है. लेकिन इससे तेहरान को कोई फायदा नहीं होगा.

इसाकसन ने कहा, “इसराइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने सहित क्षेत्रीय एकीकरण के प्रति सऊदी अरब के रुख में लगातार बदलाव हो रहा है. ब्रिटेन के राजदूत और दावोस में विदेश मंत्री जैसे सऊदी अधिकारियों ने बार-बार अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है. यह बदलाव हुआ है सऊदी अरब और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच मजबूत रिश्ते से, विशेष रूप से सुरक्षा के संदर्भ में.”

शांतिपूर्ण पश्चिम एशिया के विचार से खतरे में पड़ा ईरान, अपने प्रतिनिधियों के जरिए ऐसी किसी भी संभावनाओं को बाधित करने की हरसंभव कोशिश कर रहा है. हालांकि, इसाकसन को भरोसा है कि ईरान की कोशिशें कभी कामयाब नहीं होंगी. उन्होंने कहा, “तेहरान ने अरब-इजरायल शांति की कोशिशों को असंभव बनाने के इरादे से पूरे क्षेत्र में इन आग को हवा दी है. लेकिन यह प्रयास आगे बढ़ेगा और ईरान को जोर का झटका लगेगा.” शांति वार्ता की यह प्रतिबद्धता सऊदी अरब से आगे तक फैली हुई है. अब्राहम समझौते में शामिल देश, जैसे मोरक्को, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन, इजराइल के साथ पूर्ण संबंध स्थापित करने के लिए 2020 के रणनीतिक निर्णयों पर काम करने के लिए बने हुए हैं.

IMEC रुका है, खत्म नहीं हुआ

दूसरी ओर, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) के लिए भी अभी उम्मीद बची हुई है, जो इजराइल और हमास के बीच जारी युद्ध से एक बड़ा नुकसान है. 7 अक्टूबर के इस हमलों और उसके बाद चल रहे जंग के बाद कई अहम प्रोजेक्ट्स पर असर पड़ा है. भविष्य के लिए अहम माने जा रहे भू-राजनीतिक, भू-रणनीतिक और भू-आर्थिक लाभों वाली महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स को रोक देना पड़ा है.

डॉक्टर मिश्रा ने कहा, “अभी कोई व्यवधान हो सकता है, लेकिन निश्चित रूप से उम्मीद बनी हुई है क्योंकि यह सिर्फ भारत या मध्य पूर्व के बारे में नहीं है; बल्कि यूरोप के बारे में भी है.” उन्होंने आगे बताया, “एशिया और यूरोप के बीच करीब 40 से 60 फीसदी व्यापार रेड सी रूट से होता है. आईएमईसी की क्षमता बहुत बड़ी है. इसलिए मुझे लगता है कि कुछ समय के लिए इस प्रोजेक्ट्स में व्यवधान हो सकता है, लेकिन जी-20 शिखर सम्मेलन और अन्य बैठकों में जिस तरह की प्रतिबद्धता दिखाई गई, मुझे नहीं लगता कि कोई भी प्रस्तावित गलियारे की संभावना को नष्ट करने का जोखिम उठा सकता है. यह कुछ हद तक ईरान को छोड़कर, और भू-राजनीतिक रूप से चीन को छोड़कर सभी के लिए काम करता है.”

विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिम एशिया में जो कुछ भी हो रहा है उसके पीछे एक खास मकसद है. डॉक्टर मिश्रा ने कहा कि चूंकि हमास और इजराइल के बीच संभावित युद्धविराम के लिए बातचीत चल रही है, इसलिए शांति के विरोधी दलों द्वारा व्यवधान पैदा करने की आशंका बनी हुई है.

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