गुलियन बेरी सिंड्रोम के मरीजों को क्या नहीं खाना चाहिए – Guillian Berry…

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गुलियन बेरी सिंड्रोम के मरीजों को क्या नहीं खाना चाहिए – Guillian Berry…

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस बीमारी से बचाव के लिए सतर्क रहने की सलाह दी है। इस बीमारी को बैक्टीरियल इन्फेक्शन से जोड़ा जा रहा है। कच्चे चिकन और पाश्चुरीकृत डेयरी प्रोडक्ट में पाया जाता है।

गुलियन बेरी सिंड्रोम एक खतरनाक संक्रामक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर (foods to avoid in GBS) है जो राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड और असम जैसे राज्यों में तेजी से फैला है। देशभर में अब तक 200 से भी ज्यादा मरीज पाए गए हैं। वहीं पुणे में लगभग 150 लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं। यह एक ऑटो इम्यून डिसऑर्डर है जिसमें इम्यून सिस्टम सीधे नर्वस सिस्टम पर अटैक करता है। शरीर के पेरिफेरल नर्वस सिस्टम ज्यादा प्रभाव पड़ता है।

कंसलटेंट जनरल फिजिशियन डॉ. अंकित पटेल (अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल, जयपुर ) बताती हैं कि गुलियन बेरी सिंड्रोम एक दुर्लभ और गंभीर ऑटोइम्यून बीमारी है जो नर्वस सिस्टम को प्रभावित करती है। इस सिंड्रोम के मरीजों को चावल, पनीर और चीज़ जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इनमें कुछ ऐसी चीजें पाई जाती हैं, जो गुलियन बेरी सिंड्रोम के मरीजों के लिए हानिकारक हो सकती हैं। जैसे कि, चावल में ग्लूटेन होता है, जो एक प्रोटीन है जो गुलियन बेरी सिंड्रोम के मरीजों के लिए हानिकारक हो सकता है।

ऐसे ही अगर हम पनीर और चीज़ की बात करें तो इनमें कैसिन और लैक्टोज होता है, जो एक प्रोटीन है जो गुलियन बेरी सिंड्रोम के मरीजों के लिए हानिकारक हो सकता है। इसके अलावा चीज़ में हिस्टामाइन भी पाया जाता है जो गुलियन बेरी सिंड्रोम के मरीजों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए गुलियन बेरी सिंड्रोम के मरीजों को अपने खानपान में बहुत ही सावधानी बरतने की आवश्यकता है उन्हें, ग्लूटेन युक्त खाद्य पदार्थों जैसे कि रोटी, पास्ता, ब्रेड।

डेयरी उत्पाद जैसे कि दूध, पनीर, चीज़। नॉनवेज में मांस और मछली। इसकेअलावा पिज्जा, बर्गर, फ्राइज़, कैफीन और अल्कोहल से दूर रहना चाहिए। गुलियन बेरी सिंड्रोम के मरीजों को (foods to avoid in GBS) अपने आहार में किसी भी बदलाव से पहले अपने डॉक्टर या पोषण विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। वे आपको अपनी स्थिति के अनुसार एक स्वस्थ और संतुलित आहार योजना बनाने में मदद कर सकते हैं।

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paneer ka glycaemic index low hota hai.
में न्यूनतम मात्रा में कार्ब्स होते हैं, जो ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी कम यानी 27 होता है। चित्र : अडोबी स्टॉक

क्यों नहीं खाना चाहिए चावल और पनीर

डॉ. अंकित पटेल का कहना है कि चावल, पनीर और चीज़ में बैक्टीरिया फैलने की संभावना ज्यादा होती है, क्योंकि इनमें ज्यादा नमी पाई जाती है। साथ इनमें पोषक तत्व की भरपूर मात्रा होती है। इसके बावजूद भी इसमें बैक्टीरिया फैल जाते हैं। पनीर को सही ढंग ने स्टोर न किया जाए तो इसमें साल्मोनेला और लिस्टेरिया होने का खतरा रहता है। पके हुए चावल में बेसिलस सेरेस हो सकता है, जिसे कमरे के तापमान में रखने से बैक्टीरिया फैल सकते हैं। ये पदार्थ 4.4°C- 60°C में ज्यादा सेंसटिव होते हैं जहां बैक्टीरिया तेजी से बढ़ने लगते हैं। इन्हें फ्रिज में रखा जा सकता है और खाने पर बीमारी बढ़ने का खतरा कम हो जाता है।

गुलियन बेरी सिंड्रोम के लक्षण

  • इस बीमारी में धड़कन तेज होने लगती है।
  • इसकी वजह से मरीज को चलने-फिरने में दिक्कत होती है।
  • गर्दन में तेज दर्द बढ़ने लगता है। जिससे घुमाते समय दिक्कत होती है।
  • गुलियन बेरी सिंड्रोम के कारण शरीर मे चुभन और दर्द बढ़ जाता है।
  • हांथ-पैर में कंपन और कमजोरी महसूस होने लगती है।
  • आंखों में धुंधलापन आ जाता है।
  • सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।
  • चेहरे पर सूजन आ सकती है
Patient ko dein antibiotic ki jaankaari
अपने आहार में किसी भी बदलाव से पहले अपने डॉक्टर या पोषण विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। चित्र: शटरस्टॉक

गुलियन बेरी सिंड्रोम का उपचार

इम्यूनोग्लोबुलिन थेरेपी

चिकित्सकों के अनुसार यह गुलियन बेरी सिंड्रोम का आम उपचार है। इलाज की इस प्रक्रिया में मरीज को एंटीबॉडीज दी जाती हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि मरीज के शरीर में एंटीबॉडीज (foods to avoid in GBS) की मदद से इम्यून सिस्टम को मजबूत करने की क्षमता आ सके।

प्लाज्मा फेरिसिस

गुलियन बेरी सिंड्रोम के इलाज की इस प्रक्रिया में मरीज के ब्लड से प्लाज्मा के उस हिस्से को हटा दिया जाता है, जो शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे शरीर में इम्यून सिस्टम के हमले रुक जाते हैं। यह तब किया जाता है जब मरीज की हालत गंभीर हो।

फिजिकल थेरेपी

कई बार मरीज की मांसपेशियों की ताकत बढ़ाने के लिए फिजिकल थेरेपी ली जाती (foods to avoid in GBS) है। इसमें एक्सरसाइज शामिल होती है। मरीज के शारीरिक रूप से मूव करने से ब्लड सर्कुलेशन सही होता है और नसें भी मजबूत होती हैं।

ऑक्सीजन सपोर्ट

यदि मरीज को सांस लेने में ज्यादा तकलीफ होती हो तो उसके फेफड़े डैमेज हो रहे हों जिससे वह सांस न ले सकें, तब उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर भी रखा जा सकता है।

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