रेड लाइट एरिया बनने से पहले, पाकिस्तान की मशहूर ‘हीरामंडी’…- भारत संपर्क

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रेड लाइट एरिया बनने से पहले, पाकिस्तान की मशहूर ‘हीरामंडी’…- भारत संपर्क
रेड-लाइट एरिया बनने से पहले, पाकिस्तान की मशहूर 'हीरामंडी' में होता था ये बिजनेस

संजय लीला भंसाली की ‘हीरामंडी’ की स्टारकास्ट

कांच के झूमरों पर पड़ती मद्धम रोशनी से जगमग होते ऊंची छतों वाले बड़े-बड़े हॉल…खुली खिड़कियों से मलमल के परदों को पार करके आती सुगंधित हवा… और तबला, पखावज की थाप के बीच थिरकते घुंघरू…कुछ ऐसी ही इमेज हमारे दिमाग में बनती है, हम जब भी ‘तवायफ’ शब्द को सुनते-पढ़ते हैं. डायरेक्टर संजय लीला भंसाली ‘देवदास’ के बाद इसी थीम पर अपनी वेबसीरीज ‘हीरामंडी’ लेकर हाजिर हैं. -असलियत में ‘हीरामंडी’ पाकिस्तान के लाहौर का इलाका है, जो एक ‘रेड-लाइट-डिस्ट्रिक’ है. लेकिन कभी यहां तवायफों के कोठे में महफिलें सजा करती थीं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हीरामंडी एक और कारोबार के लिए जाना जाता रहा है…

कहानी काफी पुरानी है… जो मुगलों से लेकर अफगानों, सिखों और फिर अंग्रेजों तक से जुड़ी है. ‘हीरा मंडी’ का नाम पहले ‘शाही मोहल्ला’ होता था. यहां तवायफों के बड़े-बड़े कोठे हुआ करते थे… जहां राजघरानों के राजकुमार शाही अदब-अंदाज की शिक्षा लेने जाते थे. इसके बाद देर-सबेर ये उनके आराम और नाच-गाना एंजॉय करने की जगह बन गई. फिर अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली का यहां आक्रमण हुआ. अफगान और उज्बेक देशों से लाई औरतों को यहां रख दिया गया और इसके बाद शुरू हुआ ‘जिस्मफरोशी’ का धंधा. लेकिन जब महाराजा रणजीत सिंह ने ‘पंजाब स्टेट’ की नींव डाली, तब इस एरिया की किस्मत पलट गई…

पंजाबियों बनाई ‘अनाज मंडी’

महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में उनके करीबी लोगों में राजा ध्यान सिंह डोगरा का नाम शामिल होता था. उनके सबसे बड़े बेटे का नाम था हीरा सिंह डोगरा, जो बाद में सिख राज के लाहौर एरिया के प्राइम मिनिस्टर बने. साल 1843 से 1844 के बीच अपने करीब 1.2 साल के राज में उन्होंने ‘हीरा मंडी’ को उसका मौजूदा नाम दिया. उस समय इसे ‘फूड ग्रेन्स’ का थोक बाजार बनाया गया. हिंदी भाषा में बोलें तो ‘अनाज मंडी’.

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पंजाब आज भी देश के सबसे उर्वरक इलाकों में से एक है, उस समय भी ये खेती का गढ़ होता था. महाराजा रंजीत सिंह के कार्यकाल में लाहौर और उससे जुड़े इलाकों का सालाना रिवेन्यू 5 लाख रुपए होता था. अगर इसे आज के हिसाब से कन्वर्ट करेंगे तो लाहौर की इकोनॉमी कई हजार डॉलर की बैठेगी.

अंग्रेजों ने बनाया ‘रेड लाइट एरिया’

सिख राज के खत्म होने के बाद ये इलाका ब्रिटिश राज का हिस्सा हो गया. अंग्रेजों ने ‘तवायफों’ के काम को अलग नजरिए से देखा और ये इलाका पूरी तरह से अब ‘रेड लाइट एरिया’ बन चुका है. आजादी के बाद पाकिस्तान में इस इलाके को बंद करने की कई कोशिश हुईं. लेकिन ये अब भी हजारों सेक्स वर्कर की आमदनी का जरिया हैं. इतना ही नहीं, कोठों के नीचे यहां अब भी संगीत वाद्ययंत्रों से लेकर खाने-पीने का कारोबार खूब होता है.

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