क्या प्रतियोगी परीक्षाओं का सिलेबस तय है या नहीं?, क्यों हर एग्जाम के बाद…


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NEET, CUET, JEE के एग्जाम होने के बाद अक्सर ही एक शोर सुनाई देता है कि सवाल बहुत कठिन पूछे गए थे. आउट ऑफ सिलेबस पूछे गए थे. इस साल भी ऐसा हुआ है. हाल ही में सम्पन्न नीट यूजी के प्रश्न पत्र में फिजिक्स के सवालों को बहुत ज्यादा कठिन बताया गया. टीचर्स ने तो यहाँ तक कह दिया कि नीट यूजी की मेरिट इस बार कम जाएगी.
मेरिट कम बनेगी या ज्यादा, इसका खुलासा परिणाम आने पर ही होगा लेकिन यह समझा जाना जरूरी है कि क्या वाकई नेशनल टेस्टिंग एजेंसी बिना सिलेबस तय किए, बिना स्टूडेंट्स को पूर्व में बताए, परीक्षा में बुलाती है? सवालों के कठिन होने का मसला कितना उचित है? इन सभी चीजों को बिन्दुवार समझने का प्रयास करते हैं.
सिलेबस पहले से तय है
एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि NEET, CUET, JEE के सिलेबस पहले से तय हैं. इसकी जानकारी भी स्टूडेंट्स को दी जाती है. उदाहरण के लिए अगर इस साल के सिलेबस की बात की जाए तो नीट-यूजी 2025 के सिलेबस की जानकारी नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने दिसंबर 2024 में तथा नेशनल मेडिकल कमीशन ने भी इसी महीने अलग से सिलेबस नोटिफ़ाई किया था. दोनों ही संस्थानों ने काफी विस्तार से सिलेबस की जानकारी वेबसाइट पर पब्लिश की थी. नेशनल मेडिकल कमीशन और नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने इस सिलसिले में 17 पेज का विस्तृत नोट जारी किया था. इसमें सब्जेक्ट, टॉपिक तक दिए गए हैं. ठीक ऐसी ही व्यवस्था CUET, JEE के लिए भी किए जाने की व्यवस्था है. हाँ, कई बार उसकी व्याख्या, निष्पादन में पारदर्शिता की कमी की वजह से जरूर दिक्कतें पेश आती हैं और स्टूडेंट्स परेशान होते हैं. इसी वजह से शोर, कोर्ट-कचहरी तक बात पहुंचती है.
सिलेबस में क्या-क्या होता है?
NEET में 11 वीं, 12 वीं के फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के सवाल पूछे जाते हैं और इसका आधार बनती हैं NCERT की किताबें. JEE में भी 11 वीं-12 वीं के फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स के सवाल पूछे जाते हैं. इसका सिलेबस NCERT / CBSE की किताबों के आधार पर तय होता है. जानना यह भी जरूरी है कि CBSE वाले स्कूल्स प्रायः NCERT की किताबों को फॉलो करते हैं. CUET का मॉडल कुछ अलग तरीके से बना है. इसमें सिलेबस स्टूडेंट्स के चुने गए विषय के हिसाब से तय होते हैं लेकिन किताबें अमूमन NCERT की ही चलती हैं. इसमें डोमेन सब्जेक्ट के साथ ही भाषा की स्किल एवं जनरल टेस्ट भी लिया जाता है.
सब तय है तो क्यों होता है शोर?
सवाल उठता है कि सब कुछ तय है तो हर एग्जाम के बाद शोर क्यों होता है? दिक्कतें कहाँ आती हैं? असल में बवाल की जड़ में कठिन सवाल हैं. घुमाकर पूछे गए सवाल हैं. ऐसे में अनेक बार स्टूडेंट को लगता है कि अमुक सवाल तो आउट ऑफ सिलेबस आया है. परीक्षा केंद्र के बाहर मौजूद कोचिंग के लोग, पैरेंट्स जब स्टूडेंट्स से मुखातिब होते हैं तो शोर शुरू हो जाता है. पैरेंट्स और कोचिंग संस्थान, दोनों ही स्टूडेंट्स के भविष्य को लेकर चिंतित होते हुए शोर करने लगते हैं. कई बार सिलेबस घोषित होते समय उसकी भाषा ऐसी होती है कि स्टूडेंट्स के ऊपर से निकल जाती है. कोचिंग संस्थान कई बार कुछ ज्यादा ही टॉपिक कवर कर लेते हैं, जब उससे सवाल नहीं आते तो भी शोर होता है. ऐसा भी देखा गया है कि खराब पेपर होने पर भी स्टूडेंट्स आउट ऑफ सिलेबस का शोर शुरू कर देते हैं. ऐसा वे अपने पक्ष में माहौल बनाने को करते हैं.
इन उपायों के सहारे सुचारु हो सकती है व्यवस्था
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, कानपुर विश्वविद्यालय समेत कई अन्य विश्वविद्यालयों के कुलपति रहे प्रोफेसर अशोक कुमार कहते हैं कि नेशनल टेस्टिंग एजेंसी समेत इस तरह के एग्जाम कराने वाली सभी एजेंसीज को चाहिए कि वे सिलेबस को और स्पष्ट करें. भाषा सरल रखें. सरकारी भाषा से मुक्त रखें. और इसकी जानकारी स्कूलों, कोचिंग संस्थानों तक पहले ही पहुँच जाए, जिससे बच्चे पहले ही जागरूक रहें. एग्जाम के कुछ महीने पहले सिलेबस जारी कर दें और उसका प्रचार न हो तो मुश्किलें स्वाभाविक हैं.
स्टूडेंट्स, शिक्षकों के वेबीनार आदि के माध्यम से संवाद इस समस्या को काफी हद तक हल कर सकता है. तकनीकी एडवांसमेंट के इस युग में यह मुश्किल काम नहीं है. सभी परीक्षाओं के लिए आधिकारिक मॉक टेस्ट, पेपर पैटर्न और कठिनाई का स्तर की जानकारी देना इसे और सरल बना देगा. अंतिम सुझाव यह हो सकता है कि छात्रों की शिकायतों को सुनने के लिए उचित प्लेटफ़ॉर्म होना जरूरी है. इसकी व्यवस्था सरकार को करने का निर्देश देना उचित कदम हो सकता है.
एक और जरूरी बात है, जिस पर ध्यान कम ही जाता है. चूँकि प्रश्न पत्र अब प्रायः इंग्लिश में बनते हैं और बाद में उन्हें क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया जाता है. कई बार इसमें कुछ चूक होते हुए देखा गया है. अक्सर क्षेत्रीय भाषा अपनाने वाले स्टूडेंट्स के साथ यब समस्या आती है.