जय संतोषी मां री-रिलीज क्यों नहीं होनी चाहिए… 50 साल पहले शोले को दी टक्कर,… – भारत संपर्क

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जय संतोषी मां री-रिलीज क्यों नहीं होनी चाहिए… 50 साल पहले शोले को दी टक्कर,… – भारत संपर्क
जय संतोषी मां री-रिलीज क्यों नहीं होनी चाहिए... 50 साल पहले शोले को दी टक्कर, बनाया था रिकॉर्ड

कल्ट धार्मिक फिल्म जय संतोषी मां के सीन

जय संतोषी मां फिल्म का बजट महज तीस लाख रुपये था और सन् 1975 में इसने पांच करोड़ रुपये से ज्यादा कमाए. उस साल शोले, दीवार और संन्यासी जैसी बड़े बजट और बड़े सितारों की फिल्मों का भी बोलवाला था, लेकिन जय संतोषी मां ने इन सभी को कितनी कड़ी टक्कर दी, इसकी चर्चा सालों बाद आज भी की जाती है. थिएटर की इकोनॉमी के लिए भी तब यह फिल्म अहम साबित हुई थी. इस फिल्म की प्रसिद्धि इतिहास में एक नजीर है. द कश्मीर फाइल्स ने जब रिकॉर्ड कलेक्शन किया था, तब एक बार फिर से जय संतोषी मां का जिक्र छिड़ा. कम समय के भीतर लो बजट की दोनों फिल्मों की कमाई की तुलनात्मक रिपोर्ट सामने रखी गई थी. इस फिल्म में भारत भूषण, अनिता गुहा और त्रलोक कपूर जैसे कलाकारों ने अभिनय किया था.

उस जमाने की पत्र-पत्रिकाओं के पन्ने पलटें तो इस फिल्म के प्रति आम दर्शकों की दीवानगी के बारे में पता चलता है. कहीं 50वां शानदार सप्ताह, कहां 75वां भीड़ भरा सप्ताह कहीं 100वां हाउसफुल सप्ताह ऐसे पोस्टरों की भरमार थी. अखबारों में ऐसे विज्ञापन शुमार रहते थे. उस फिल्म की कहानी ने लोगों के दिलों दिमाग पर कैसा जादू किया था, उसका जमीन पर कितना असर देखने को मिला, सिनेमा हॉल से लेकर आम घरों तक में इस फिल्म के किरदार और गाने कैसे समा गए थे, ये सब कुछ एक इतिहास का हिस्सा है. दूर-दराज के गांवों के दर्शक सिनेमा हॉल की ओर रुख करते और भक्ति भाव से फिल्म देखकर लौटते.

जय संतोषी मां के लिए उमड़ा जनसैलाब

जय संतोषी माता वास्तव में भारत की पहली पैन इंडिया मूवी थी. इस फिल्म ने उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम पूरे देश को एकसूत्र में पिरोया था. अहम सवाल ये हो जाता है कि आज की तारीख में जब बहुत सारी फिल्में री-रिलीज हो रही हैं, तो इन जैसी फिल्मों की तरफ किसी ऑथोरिटी का ध्यान क्यों नहीं जाता, जिसने जनता के दिल और दिमाग को गहराई से इस कदर झकझोरा था, बॉक्स ऑफिस पर जनसैलाब देखने को मिला था. कहते हैं जय संतोषी मां देखने के दौरान पर्दे पर पैसे फेंके जाते थे.

कहीं-कहीं तो दर्शक चप्पल-जूते खोलकर थिएटर के अंदर जाते थे. गौरतलब है कि आज की तारीख में दर्शक थिएटर्स से मुंह मोड़ चुके हैं. लेकिन उन्हीं दर्शकों की सिनेमा घरों में वापसी के लिए पिछले कुछ समय के भीतर तमाम नई-पुरानी फिल्मों को री-रिलीज किया गया है. कभी इवेंट बनाकर तो कभी किसी प्रमोशन के सिलसिले में. यह सब सिनेमा प्रेम की खातिर हुआ.

दीवार, कहो न प्यार है हुई री-रिलीज

आपको याद होगा पच्चीस साल यानी सिल्वर जुबली पर पिछले दिनों ऋतिक रोशन की पहली फिल्म कहो न प्यार है को री-रिलीज किया गया था तो वहीं पचास साल पूरे होने पर शशि कपूर-अमिताभ बच्चन की मशहूर फिल्म दीवार भी थिएटर में दोबारा प्रदर्शित की गई थी. जंजीर और दीवार जैसी फिल्मों को हम बखूबी जानते हैं. देव आनंद और राज कपूर की जन्म शताब्दी पर उनपर फिल्मोत्सव मनाया गया. वहीं आमिर खान ने अपने जीवन के साठ साल पूरे किए तो उनकी चुनींदा फिल्मों का भी उत्सव देखने को मिला. री-रिलीज या फिल्मोत्सव के ऐसे कई और उदाहरण हैं.

इस नये चलन को देखते हुए सवाल अहम हो जाता है कि साल 1975 की कुछ चुनींदा ब्लॉकबस्टर को री-रिलीज के लिए मुफीद क्यों नहीं समझा गया. नई पीढ़ी को यह जानने की दरकार है कि सन् 1975 का दौर केवल राजनीतिक उथल पुथल के लिए काफी अहम नहीं था, बल्कि इस दौरान सिनेमा, कला, संस्कृति और लोकजीवन में बड़े बदलाव के लिए काफी अहमियत रखता है. जय संतोषी मां 30 मई को रिलीज हुई थी, और उसके ठीक एक महीने के भीतर ही 25 जून को देश में राष्ट्रीय आपातकाल लगा था. अगर जय संतोषी मां जैसी फिल्में री-रिलीज होती हैं, तो उसके महत्व, परिवेश, नॉस्टेल्जिया और बिजनेस की बारीकियों से भी नई पीढ़ी अवगत होती.

री-रिलीज पर किसी का ध्यान क्यों नहीं?

वैसे ये भी देखने को मिला है कि हालिया री-रिलीज फिल्मों का कोई तयशुदा पैमाना नहीं था. इसे इवेंट बनाकर दोबारा रिलीज किया गया है. फिल्म के निर्माता और थिएटर मालिक मिलकर किसी फिल्म की री-रिलीज तय करते हैं और इनके बीच मार्केटिंग टीम का रोल भी अहम होता है. यह भी सच है कि आज की तारीख में जय संतोषी मां के प्रोड्यसर सतराम रोहेरा जीवित नहीं हैं, लेकिन उनके परिवार के सदस्य हैं, इसी तरह फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाले बहुत से कलाकार भी जीवित नहीं हैं लेकिन उनकी बाद की पीढ़ियां हैं. क्या एक महान मकसद में सभी री-रिलीज के लिए एकजुट नहीं हो सकते? या फिर, इंडस्ट्री के अंदर ही कई संगठन सक्रिय हैं- क्या ऐसे कार्य के लिए ये संगठन अपनी पहल की पेशकश नहीं कर सकते? हमारा मानना है री-रिलीज के चलन में बड़ी और क्लासिक फिल्मों को नहीं भूला जाना चाहिए.

जय संतोषी मां ने कई मिथक तोड़े

जय संतोषी मां ने फिल्मों की लोकप्रियता के सारे पैमाने तोड़ दिये. फिल्मों में देवी-देवता दिखाने का चलन तो पुराना रहा है लेकिन पूरी फिल्म ही माइथोलॉजी पर आधारित हो, इससे पहले रामराज्य या संपूर्ण रामायण के अलावा बहुत कम फिल्में हैं जिसके लिए भीड़ उमड़ी हो. अचरज इस बात का भी है इस फिल्म से पहले संतोषी माता के बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते थे. इस फिल्म की कहानी, गीत-संगीत ने जनोन्माद पैदा कर दिया. एक किस्म की धार्मिक क्रांति दिखाई दी.

पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने देखी फिल्म

इस फिल्म से दूसरी धारणा यह भी टूटी कि आमतौर पर फिल्मों के दर्शक पुरुष ज्यादा है लेकिन इस फिल्म देखने वालों में महिलाओं की तादाद सबसे ज्यादा थी. फिल्म देखने के बाद देश भर के अधिसंख्य हिंदू परिवारों में हर शुक्रवार संतोषी माता का व्रत रखा जाने लगा. कथा कही जाने लगी. मन्नतें मानी जाने लगीं. इस फिल्म ने तब कैसा धार्मिक आंदोलन-सा खड़ा कर दिया और कवि प्रदीप के लिखे भक्ति गाने, उषा मंगेशकर, महेंद्र कपूर के गाये इसके गीत-संगीत कैसे घर-घर में महिलाओं के जीवन में प्रवेश कर गए, इस पर चर्चा फिर कभी. फिलहाल अपेक्षा यही थी कि जय संतोषी मां फिल्म को री-रिलीज किया जाता तो संभव है सूने थिएटर में रौनक देखने को मिलती. इससे सिनेमा को भला होता.

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