नजरुल जयंती पर टैगोर के रक्त करबी का मंचन — भारत संपर्क



बिलासपुर, 27 मई 2025।
बिलासपुर बंगाली समाज ने रवीन्द्र-नज़रुल जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित सांस्कृतिक समारोह में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के रूपक नाटक “रक्त करबी” का प्रभावशाली मंचन कर वर्तमान युग के मशीन-मानव संघर्ष को नए सिरे से रेखांकित किया। आईएमए हॉल (सीएमडी चौक) स्थित प्रेक्षागृह में हुई इस संध्या में लगभग 150 विशिष्ट अतिथि और कला-प्रेमी सम्मिलित हुए।
दीप प्रज्ज्वलन से आरंभ

समारोह का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन, माल्यार्पण और संक्षिप्त उद्बोधन से हुआ। सामूहिक संगीत के बाद बारी-बारी से नृत्य, गीत, आलेख, कविता-पाठ और नाटक ने दर्शकों को बाँधे रखा। पूरे कार्यक्रम का मंच संचालन श्रीमती रीता कर्मकार ने किया।
संगीत ने गूँजाया टैगोर-नज़रुल का स्वर
स्वागता, गोपा, रीता, तुहिन, सीमा, मोनिका, शुभ्रांग्शु, श्रावणी, राजा, मौमिता, अनुराधा, अपराजिता, मौसमी, सौरव और साहाना की गायिकी ने गुरुदेव और विद्रोही कवि काज़ी नज़रुल इस्लाम की रचनाओं को सुर-ताल से सजाया। डॉ. सुदीप्तो दत्ता के सैक्सोफोन और श्रीमती चन्दना विश्वास की तबला संगत ने प्रस्तुति में जीवंतता भरी।

कविताएँ और वक्तव्य
आयुष प्रमाणिक, शुवो गोल्दा और ररयान चटर्जी ने टैगोर-नज़रुल की चयनित कविताएँ पढ़ीं। डॉ. सोमनाथ मुखर्जी, नमिता घोष और गोपाल मुखर्जी ने अपने वक्तव्य में औद्योगीकरण, सोशल-मीडिया-पराधीन समाज और कृत्रिम बुद्धिमत्ता की चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए ‘रक्त करबी’ की प्रासंगिकता रेखांकित की।
नृत्य की सजीव छवियाँ

- ‘निर्झर के स्वप्न-भंग’—गोपा दासगुप्ता के निर्देशन में कु. प्रिशा, पीहू, आयुषी, अंजलि व अत्रेई ने प्रस्तुति दी।
- ‘हे पार्थ सारथी’—कु. नोएल, खुशमिता, सृष्टि, श्रेष्ठा व तानी ने भगवान कृष्ण की सारथी-रूप को नाट्य नृत्य में उभारा।
- ‘प्रेमेर जोआरे’, ‘सावन गगने’, ‘मोर वीणा उठे कोण सुरे बाजे’ तथा ‘आमार अंगे-अंगे’ जैसी रचनाओं पर मेघा, तनिमा, नीलिमा, मौमिता, पूजा, सोनाली, सुष्मिता, तृप्ति चटर्जी और प्रतिमा पाल ने अलग-अलग समूह प्रस्तुतियाँ दीं।
सांझ का शिखर—“रक्त करबी”
कार्यक्रम का सूत्रधार नाटक “रक्त करबी” रहा, जिसमें श्रुति दत्ता ने प्रकृति-स्वरूप चंचल नायिका नंदिनी और राजा दासगुप्ता ने लालच-ग्रस्त अदृश्य राजा की भूमिकाएँ निभाईं।
संकटग्रस्त यक्षपुरी, सोने की खदान और लाल करबी-माला के象 गुणों के बीच टैगोर का संदेश—मशीनों द्वारा गढ़ी सभ्यता में मनुष्य की आत्मा की मुक्ति—दर्शकों को सोचने पर विवश कर गया।
सम्मान व सहयोग
समाज की ओर से श्री दिनेश कुमार बोस एवं श्रीमती गायत्री धर को उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के प्रायोजकों में डॉ. सुदीप्त दत्ता, डॉ. हेमन्त चटर्जी, श्री डी. के. बोस, श्री तुहिन चटर्जी, श्री कल्याण दत्ता, श्री बी. आर. घोष, श्री संदीप सोम, श्री बिजन सूर, श्रीमती अनीता गोल्दा, श्री सुभ्रांग्शु शेखर, प्रतिमा पाल, अपराजिता चौधरी, श्री आर. के. मित्रा, श्रीमती वंदना रॉय और श्रीमती शिउली घोष शामिल रहे। आयोजन में डॉ. सोमनाथ मुखर्जी, श्री जयंत कर्मकार, श्री जीवन घोष, श्री अतनु घोष, श्री दीपक मजूमदार, श्री खोकन पालित तथा श्रीमती सुमिता दासगुप्ता ने सक्रिय भागीदारी की।
सांस्कृतिक संध्या ने सिद्ध किया कि टैगोर-नज़रुल की रचनाएँ समय की धूल झाड़कर हर युग में समीचीन हो उठती हैं। “रक्त करबी” के माध्यम से मशीन और मानव की जद्दोजहद पर पुनः विमर्श शुरू हुआ—एक ऐसा विमर्श जो सोशल-मीडिया-नियंत्रित, एआई-केंद्रित वर्तमान समाज के लिए पहले से कहीं अधिक कसौटी बन गया है।
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