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गुप्त नवरात्र में होगी मां की पूजा, महाप्रभु की निकलेगी रथयात्रा, श्रीहरि जाएंगे योग निद्रा में, आषाढ़ मास प्रारंभ: गर्मी से मिलेगी राहत, मौसम में आएगा बदलाव

कोरबा। वर्षा ऋतु के कारक और आध्यात्मिक माह आषाढ़ की शुरुआत 12 जून गुरुवार से हो गई है। इस माह में भगवान शिव, विष्णु, मां लक्ष्मी और सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है। इस मास में कई व्रत, पर्व और त्योहार आएंगे। मौसम में बदलाव के साथ विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन देखने को मिलेगा। वर्षा ऋतु, देवी आराधना, जगन्नाथ रथयात्रा, गुरु की आराधना और चातुर्मास की शुरुआत के कारण यह मास खास माना जाता है। पंडितों के मुताबिक, आषाढ़ मास में भगवान शिव और विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस दौरान भगवान श्री हरि (विष्णु) चार माह की योग निद्रा में चले जाते हैं। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि यह महीना आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस माह प्रमुख पर्वों में देवशयनी एकादशी, जगन्नाथ रथयात्रा और गुरु पूर्णिमा शामिल हैं। इन उत्सवों का सीधा संबंध भगवान विष्णु और गुरु परंपरा से है, जो इसे भक्ति और साधना के लिए उपयुक्त बनाते हैं। मान्यता है कि इस माह से देवशयन आरंभ होता है यानी भगवान विष्णु क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं। इस कारण इस माह के बाद से मांगलिक कार्य, विवाह आदि कुछ समय के लिए वर्जित हो जाते हैं। आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को गुरुओं को समर्पित पर्व गुरु पूर्णिमा भी मनाई जाएगी। इसी दिन आषाढ़ मास का समापन भी होगा। गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई को पड़ेगी। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं का विशेष रूप से पूजन-अर्चन करेंगे।साल के दूसरे गुप्त नवरात्र (आषाढ़ गुप्त नवरात्र) 26 जून से 4 जुलाई के बीच पड़ेंगे। इस दौरान शक्ति के साधक गुप्त रूप से मां की आराधना व पूजन करेंगे।

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प्रमुख तीज त्योहार
14 जून- संकष्टी गणेश चतुर्थी
15 जून- मिथुन संक्रांति
21 जून- योगिनी एकादशी
23 जून- प्रदोष व्रत, मास शिवरात्रि
24 जून- रोहिणी व्रत
25 जून- अमावस्या, आषाढ़ अमावस्या
26 जून- गुप्त नवरात्रि आरंभ, चंद्र दर्शन
05 जुलाई- जगन्नाथ रथयात्रा (इस्कॉन)
06 जुलाई-देवशयनी एकादशी
08 जुलाई- जया पार्वती व्रत
10 जुलाई-गुरु पूर्णिमा, सत्य व्रत
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गुरु अस्त, शुभ कार्यों पर लगा विराम
मंगल कार्यों के लिए विशेष महत्व रखने वाले गुरु ग्रह गुरुवार को अस्त हो गए। अस्त रहने की अवधि में सहालग, सगाई, गृह प्रवेश, जनेऊ, मंदिर प्राण प्रतिष्ठा जैसे मांगलिक और शुभ कार्यों पर विराम लगा रहेगा। गुरु ग्रह उदय होने के पहले छह जुलाई को देवशयनी एकादशी है। एकादशी से चातुर्मास लगने के चलते एक नवंबर तक फिर विवाह सहित उक्त अन्य शुभ कार्यों पर रोक लग जाएगी। हालांकि इस अवधि में तीर्थ यात्रा, पूजा-पाठ, दान, व्रत, उपवास और धार्मिक अनुष्ठान सहित कुछ अन्य शुभ कार्य किए जा सकते हैं। गुरु अस्त होने या चातुर्मास का इन कार्यों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। गुरु अस्त के दौरान ही छह जुलाई को देवशयनी एकादशी है। इससे चातुर्मास शुरू हो जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, चातुर्मास वह समय होता है, जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं। यह काल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी (इस वर्ष छह जुलाई से एक नवंबर तक) तक चलेगा। अगला प्रमुख शुभ समय एक नवंबर को देवउठनी एकादशी के दिन आएगा। मान्यतानुसार, इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं। एक बार फिर से शुभ कार्यों की शुरुआत की अनुमति मिलती है।

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