पतंजलि से जानिए कब, कितना और कैसे पीना चाहिए पानी?


पानी पीने के नियमImage Credit source: Chirag Wakaskar/Getty Images
हम सभी ने सुना है कि ‘पानी जीवन है’, लेकिन आयुर्वेद के अनुसार पानी केवल जीवन का स्रोत नहीं, बल्कि एक औषधि की तरह काम करता है. यह शरीर की पाचन शक्ति को संतुलित रखने, टॉकिस्न को बाहर निकालने और मन और दिमाग को शांत रखने में अहम भूमिका निभाता है. मगर क्या आप जानते हैं कि गलत तरीके, समय और मात्रा में पानी पीना आपके स्वास्थ्य को नुकसान भी पहुंचा सकता है?
आजकल भागदौड़ भरे जीवन में हम अक्सर प्यास लगने पर बिना सोचे-समझे पानी पी लेते हैं, चाहे वह ठंडा हो या बासी, खाने के बीच हो या खाने के तुरंत बाद. लेकिन आयुर्वेद इन सभी आदतों को शरीर के संतुलन के खिलाफ मानता है. आयुर्वेदिक ग्रंथों में पानी पीने के लिए कई नियम बताए गए हैं , जैसे कौन-सा पानी पीना चाहिए, किस बर्तन में रखा हो, दिन के किस समय पिएं और भोजन के पहले या बाद में पीने का सही अंतर क्या हो. बाबा रामदेव द्वारा लिखी आयुर्वेद पर किताब ‘द साइंस ऑफ आयुर्वेद’ में पानी पीने के सही नियम बताए गए हैं, जो हम आपको इस आर्टिकल में बताने जा रहे हैं.
किस तरह का पानी है सबसे शुद्ध?
आयुर्वेद के अनुसार वह पानी सबसे अच्छा होता है जो बारिश, झरनों या साफ कुओं से लिया गया हो. ऐसा जल हल्का, मीठा और शीतल होता है, जो शरीर को लाभ पहुंचाता है. धूप में रखा गया पानी (जैसे तांबे या मिट्टी के पात्र में) भी स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होता है क्योंकि ये शरीर से टॉक्निंस को बार निकालता है और शरीर को ठंडक देता है. आयुर्वेद में बताया गया है, दूसरी बारिश का पानी सबसे नेचुरल होता है.
कब और कितना पानी पीना है फायदेमंद?
सही समय और सही मात्रा में पानी पीना बेहद जरूरी है. जैसे जरूरत से ज्यादा पानी पानी डाइजेशन तो बिगाड़ सकता है. वहीं दूसरी तरफ कम पानी पीने से भी पाचन तंत्र पर असर पड़ता है. अगर शरीर से पेशाब और गंदगी ठीक से बाहर नहीं निकलती, तो अंदर जहर जैसे तत्व जमा होने लगते हैं. इससे कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं. आयुर्वेद कहता है कि एक साथ बहुत सारा पानी पीने की बजाय, थोड़ा-थोड़ा करके बार-बार पानी पीना चाहिए. इससे शरीर को जरूरी पानी मिलता है और पाचन भी अच्छा रहता है. जब खाना नहीं पच रहा हो, तो ऐसे समय में पानी दवा की तरह काम करता है और जब खाना पूरी तरह पच जाए, तब पानी पीने से शरीर को ताकत मिलती है.
खाना खाते समय पानी पीने के नियम
आयुर्वेद ये बताता है कि ‘पानी कब पिया जाए’, इसका शरीर पर सीधा असर होता है. खाना खाने से लगभग 30 मिनट पहले पानी पीने से पाचन तंत्र एक्टिवहोती है और शरीर खाने के लिए तैयार हो जाता है. ये भूख को कंट्रोस करता है और कब्ज से बचाता है. खाने के साथ बहुत ज्यादा पानी पीना पाचन रसों को पतला कर देता है, जिससे खाना अधपचा रह सकता है. थोड़ा गुनगुना पानी बीच-बीच में लेना पाचन में मदद करता है. वहीं, भोजन के तुरंत बाद पानी पीना बिल्कुल भी सही नहीं माना गया है. इससे अपच, एसिडिटी, और भारीपन की समस्या हो सकती है. ऐसे में आयुर्वेद कहता है कि खाने के कम से कम 45 मिनट बाद ही पानी पीना चाहिए.
ठंडा पानी शरीर को पहुंचा सकता है नुकसान
आजकल बहुत से लोग गर्मी या थकावट में फ्रिज का ठंडा पानी पीना पसंद करते हैं, लेकिन आयुर्वेद इसे शरीर के लिए सबसे घातक आदतों में से एक मानता है. ठंडा पानी शरीर की अग्नि को शांत कर देता है, जो पाचन प्रक्रिया को धीमा कर देता है. इससे अपच, गैस, थकान और सुस्ती जैसी समस्याएं पैदा होती हैं. ठंडा पानी पीने से शरीर में बलगम भी ज्यादा बनता है, जिससे सर्दी, खांसी और त्वचा संबंधी रोग बढ़ सकते हैं. हैवी खाने के बाद तुरंत बाद ठंडा पानी पीने से यह समस्याएं और भी गंभीर हो सकती हैं. इसके स्थान पर गुनगुना या कमरे के तापमान पर रखा पानी पीना हमेशा लाभकारी होता है.
गंदे और अशुद्ध पानी से हो सकते हैं गंभीर नुकसान
हमेशा साफ और शुद्ध पानी ही पीना चाहिए, क्योंकि गंदा पानी कई बीमारियों की जड़ हो सकता है. अगर पानी का रंग, स्वाद, गंध या स्पर्श अजीब है तो वह पीने योग्य नहीं होता. इसके अलावा अगर पानी सनलाइट और मूनलाइट के कॉन्टेक्ट में नहीं आया है तो ऐसा पानी भी शुद्ध नहीं माना जाता है. अशुद्ध पानी से पेट दर्द, त्वचा रोग, कब्ज, पाचन की समस्या, एलर्जी, और थकान जैसी परेशानियां हो सकती हैं. आयुर्वेद के अनुसार ऐसे पानी को शुद्ध करने के लिए उसे धूप में रखें, तांबे या चांदी के बर्तन में भरें या बार-बार छानें.
गर्म पानी पीने से क्या होता है?
आयुर्वेद में गर्म पानी लाभदायक बताया गया है. गर्म पानी हल्का होता है और पाचन शक्ति को तेज करता है. ये अपच, गैस, पेट फूलना, हिचकी और सर्दी-जुकाम जैसे रोगों को शांत करता है. खासतौर पर उबाले हुए पानी को अगर उसकी एक-चौथाई मात्रा तक उबालकर सेवन किया जाए तो यह वात और कफ दोष को शांत करता है. अगर पानी को आधा उबालकर पिया जाए ये त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करता है और अस्थमा, खांसी, बुखार में लाभ देता है. इसे उष्णोदक कहते हैं. रात को गर्म पानी पीना विशेष रूप से लाभकारी होता है. ये शरीर में जमे हुए कफ को पिघलाता है और वात को बाहर निकालने में मदद करता है.