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खुद में कई कहानियां समेटे हुए गांवों के नाम, कोरबा के गांवों के नाम के पीछे दिलचस्प कहानियां

कोरबा। कोरबा में शहरी के साथ ग्रामीण इलाके बसे हुए हैं। कोरबा की धरा का धार्मिक और राज घरानों से जुड़ा इतिहास रहा है। कोरबा का नाम जहां राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवाओं के नाम पर पड़ा है, वहीं जिले के कई गांवों के नाम का अपना एक दिलचस्प इतिहास है। कहते हैं कि हर नाम के पीछे कोई न कोई रहस्य या कहानी छिपी होती है। किसी स्थान या वस्तु का नाम अक्सर उसके गुण, दोष या इतिहास पर आधारित होता है। कोरबा जिले में भी ऐसे कई गांव हैं जिनके नाम बेहद अजीबो-गरीब हैं, लेकिन इन नामों के पीछे दिलचस्प कहानियां छुपी हैं। कुछ गांव जानवरों के नाम पर हैं, तो कुछ दूल्हा-दुल्हन या चट्टानों से जुड़े हैं। कोरबा जिले के ऐतिहासिक गांवों में से एक है कोसगई। संस्कृत शब्द ‘कोष’ जिसका अर्थ राजस्व या खजाने से है, से बना कोसगई, ‘खजाने के घर’ का प्रतीक है। कहा जाता है कि यह छत्तीसगढ़ में लंबे समय तक राज करने वाले कलचुरी राजवंश की राजधानी हुआ करती थी। इतिहास में भी ऐसे उल्लेख मिलते हैं। यहां कई प्राचीन गुफाएं हैं, जिनके रास्ते बेहद दुर्गम हैं। कोसगई के बारे में कहानियां मशहूर हैं कि राजा-महाराजा यहां अपना खजाना छिपाकर रखते थे।आज भी इन गुफाओं के रहस्य पूरी तरह से उजागर नहीं हुए हैं। जिले में एक और अजीब नाम वाला गांव है, नेवराटिकरा। ‘टिकरा’ का अर्थ होता है एक ऊंचा स्थान और ‘नेवरा’ का अर्थ है नगाड़ा। ऐसी कहानी है कि यहां मौजूद ऊंचे स्थान से नगाड़ा बजाकर लोगों को कोई संदेश दिया जाता था या उन्हें इक_ा किया जाता था। मान्यता है कि आज भी वहां जीर्ण-शीर्ण अवस्था में वे नगाड़े मौजूद हैं, जिन्हें देखकर उनकी प्राचीनता का पता चलता है। जिले के मशहूर पर्यटन स्थल रानीझरिया के पास ही लोधझरिया स्थित है। जहां रानीझरिया का संबंध रानियों के स्नान से है, वहीं लोधझरिया के बारे में कहा जाता है कि यहां राजा लोधी स्नान किया करते थे। लोधझरिया और रानीझरिया दोनों ही अजगरबहार के समीप मौजूद हैं और हाल ही में पर्यटकों के बीच काफी मशहूर हुए हैं।
प्रकृति और परंपरा का संगम कोरबा के करतला क्षेत्र में एक दिलचस्प नाम वाला गांव है सूअरलोट। इसी गांव में दूल्हा-दुल्हिन पहाड़ भी स्थित है, जो प्राचीन शैल चित्रों के लिए जाना जाता है। इस पहाड़ पर पत्थरों पर दो मानव आकृतियां अंकित हैं, जिनके हाथ ऊपर की ओर उठे हुए हैं। इन शैल चित्रों के कारण ही इस पहाड़ का नाम दूल्हा-दुल्हिन पहाड़ पड़ा। गांव में जब भी कोई विवाह होता है, तब दूल्हा और दुल्हन दोनों इस पहाड़ को निमंत्रण समर्पित करते हैं, जिसके बाद ही मंगल कार्य शुरू किए जाते हैं। वहीं, सूअरलोट नाम के पीछे की कहानी यह है कि इसी पहाड़ के ऊपर एक समतल स्थान पर जंगली सूअर लोटते थे, जिसके कारण गांव का नाम ही सूअरलोट पड़ गया।

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