जिस केस में होनी है मौत की सजा, उसमें शेख हसीना पर आरोप तय – भारत संपर्क


बांग्लादेश और शेख हसीना.
बांग्लादेश की राजनीति में भूचाल लाने वाला एक बड़ा फैसला सामने आया है. देश की सत्ता से बेदखल की जा चुकीं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना पर अब औपचारिक रूप से संगीन आरोप तय हो गए हैं. तीन सदस्य वाली एक स्पेशल ट्राइब्यूनल ने उनके खिलाफ मानवता के खिलाफ अपराधों से जुड़ी पांच धाराओं में मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है.
ये वही केस है, जिसमें दोषी पाए जाने पर मौत की सजा भी दी जा सकती है. ट्राइब्यूनल ने 3 अगस्त से अभियोजन पक्ष की दलीलें सुनने की तारीख तय की है. अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो यह मुकदमा बांग्लादेश के इतिहास का सबसे बड़ा राजनीतिक मोड़ बन सकता है.
किस केस में ये आरोप तय हुए हैं?
ये मामला पिछले साल उस बड़े जनआंदोलन से जुड़ा है, जिसमें सैकड़ों छात्रों की जान चली गई थी. आरोप है कि इस आंदोलन को दबाने के लिए सरकारी मशीनरी का बेरहमी से इस्तेमाल किया गया. इस हिंसा में महिलाओं और बच्चों पर भी हमले हुए, घायलों को इलाज तक नहीं दिया गया और कुछ शवों को जला दिया गया था.
अभियोजन पक्ष का कहना है कि इस पूरी कार्रवाई की योजना खुद हसीना ने बनाई थी. उन्होंने पार्टी, पुलिस और अन्य सरकारी संस्थानों को प्रदर्शनकारियों पर हमला करने का आदेश दिया था. ट्राइब्यूनल ने कहा है कि उनके खिलाफ सबूतों में ऑडियो रिकॉर्डिंग और दस्तावेज शामिल हैं.
हसीना देश से बाहर, फिर भी मुकदमा जारी
शेख हसीना के साथ उनके गृह मंत्री असदुज्जमान खान पर भी आरोप तय हुए है. दोनों इस वक्त भारत में हैं और अनुपस्थित रहते हुए मुकदमे का सामना कर रहे हैं. CNN की एक खबर के मुताबिक उन्हें अदालत में पेश होने के लिए अखबारों में नोटिस तक छपवाए गए, लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया. हसीना 5 अगस्त से भारत में शरण लिए हुए हैं. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से उनका प्रत्यर्पण भी मांगा है, लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं आया है.
पुलिस चीफ ने कबूला गुनाह, बना सरकारी गवाह
इस मामले में बांग्लादेश के पूर्व पुलिस प्रमुख चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून को गिरफ्तार किया जा चुका है. उन्होंने अदालत में खुद को दोषी माना है और सरकार के पक्ष में गवाही देने की पेशकश की है. माना जा रहा है कि उन्हें कम सजा दिलाने के बदले ये सौदा हुआ है. हसीना की पार्टी अवामी लीग हमेशा से इसे मामले को राजनीति से प्रेरित बताती रही है. उनका कहना है कि नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली सरकार न्यायपालिका का इस्तेमाल अपने विरोधियों को दबाने में कर रही है.