बरेली में IVRI ने रचा इतिहास! गाय और भैंस को बनाया ‘सरोगेट मदर’, डेवलप की न… – भारत संपर्क

सांकेतिक तस्वीर
यूपी के बरेली के भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) ने एक नया कमाल कर दिखाया है. यहां पहली बार एक साथ छह गाय और एक भैंस में टेस्ट ट्यूब भ्रूण डालकर उन्हें सरोगेट मदर बना दिया गया है. यानी ये गाय-भैंस अब सरोगेट मदर की तरह काम करेंगी और इनके जरिए उन्नत नस्ल के बछड़े-बछिया पैदा होंगे. इस अनोखे प्रयोग से बरेली का नाम पूरे देश में रोशन हो गया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे आने वाले समय में पशुपालन और दूध उत्पादन में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी.
आईवीआरआई के पशु प्रजनन विभाग के वैज्ञानिक डॉ. ब्रजेश कुमार ने बताया कि यह काम ओपीयू-आईवीएफ तकनीक से किया गया है. ओपीयू यानी ओवम पिकअप तकनीक में सबसे पहले गाय या भैंस के अंडाणु (अंडे) निकालकर लैब में रखे जाते हैं. फिर इन्हें खास तरीके से शुक्राणु से मिलाकर कृत्रिम रूप से भ्रूण तैयार किया जाता है. जब ये भ्रूण पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं तो इन्हें दूसरी गाय या भैंस के गर्भ में डाल दिया जाता है. इस बार पांच साहीवाल, एक थारपरकर नस्ल की गाय और एक मुर्रा नस्ल की भैंस में ये भ्रूण डाले गए हैं. अब करीब सात महीने बाद गाय और नौ महीने बाद भैंस इन टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म देंगी. यानी जो बछड़े-बछिया पैदा होंगे, वो लैब में बने भ्रूण से आएंगे, न कि खुद सरोगेट गाय-भैंस से.
दूध उत्पादन बढ़ेगा, किसान होंगे खुश
वैज्ञानिकों का दावा है कि अभी सामान्य स्थिति में एक गाय या भैंस साल में एक ही बार बच्चा देती है. लेकिन ओपीयू-आईवीएफ तकनीक से एक गाय से साल में 20 भ्रूण और एक भैंस से 10 भ्रूण तक बनाए जा सकते हैं. इससे बढ़िया नस्ल के ज्यादा से ज्यादा बछड़े-बछिया तैयार होंगे. इनसे दूध भी ज्यादा मिलेगा और किसान भाइयों को बड़ा फायदा होगा. आईवीआरआई ने इससे पहले भी 2018 में सुपर ओवलेशन तकनीक से मादा पशुओं के गर्भ में ही भ्रूण बनाकर सरोगेट मदर में डाला था. उस समय साहीवाल नस्ल के करीब 30 बछड़े-बछिया पैदा हुए थे.
देश में पहली बार एक साथ सात टेस्ट ट्यूब भ्रूण
दावा है कि देश में यह पहली बार हुआ है जब एक साथ सात टेस्ट ट्यूब भ्रूण प्रत्यारोपित किए गए हैं. इससे बरेली का नाम राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे उन्नत नस्ल के पशुओं की संख्या तेजी से बढ़ेगी.
बरेली के आईवीआरआई के साथ-साथ सीआरसी पंतनगर में भी पहले मुर्रा नस्ल की भैंस में ऐसा प्रयोग सफल हुआ था. अब आईवीआरआई ने भी इस तकनीक में सफलता हासिल कर ली है. इस पूरी प्रक्रिया को देखने के लिए देशभर के वैज्ञानिक और पशुपालन से जुड़े लोग बरेली आकर इसका निरीक्षण कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि आने वाले समय में बरेली ही नहीं, पूरे देश में इस तकनीक का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होगा. इससे किसानों को अच्छी नस्ल के पशु मिलेंगे और दूध का उत्पादन कई गुना बढ़ जाएगा.