चुनाव से तख्तापलट तक… पाकिस्तान में सेना का दखल क्यों और कैसे बढ़ता गया? | Pakistan… – भारत संपर्क

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चुनाव से तख्तापलट तक… पाकिस्तान में सेना का दखल क्यों और कैसे बढ़ता गया? | Pakistan… – भारत संपर्क
चुनाव से तख्तापलट तक... पाकिस्तान में सेना का दखल क्यों और कैसे बढ़ता गया?

पाकिस्तानी सेना राजनीति में अपना दखल क्यों बनाकर रखती है, इसकी कई वजह बताई गईं.

पाकिस्तान में सत्ता किसी के भी पास हो लेकिन ताकत सेना के हाथ में ही होती है. दखल और रुतबा फौज का ही रहता है. अगर कोई इस बात से इंकार करता है तो वो खुद गलत है… ये लाइनें पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले साल कही थीं. पाकिस्तान में दबी जुबान में कई बार यह सच्चाई सामने आ चुकी है. इतिहास ही कुछ ऐसा है जो बताता है कि राजनीति और या देश के हालात, हर जगह पाकिस्तानी सेना हावी नजर आती है. अब असेंबली चुनाव के बीच फिर सेना की चर्चा शुरू हुई.

अपनी स्थापना से ही पाकिस्तानी सेना पावर हाउस रही है. विदेशी मामलों के जानकार कहते हैं, पाकिस्तान की जनता यह अच्छी तरह से जानती है कि देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव वास्तव में संभव नहीं है. सरकार किसी भी पार्टी की बने चाबी भरने का काम पाकिस्तानी सेना ही करती है. चुनाव के बहाने जान लेते हैं सेना का इतिहास और कैसे यह देश पर हावी होती गई.

ब्रिटिश इंडियन आर्मी से बनी पाकिस्तानी सेना

पाकिस्तानी सेना की नींव ब्रिटिश इंडियन आर्मी से पड़ी. इसकी स्थापना अगस्त 1947 में हुई तब ब्रिटिश जनरल फ्रैंक मेस्सर्वी पहले सेना प्रमुख थे. पाकिस्तानी सेना आखिर राजनीति में अपना दखल क्यों बनाकर रखती है, इसकी कई वजह बताई गईं. द कनवर्सेशन की रिपोर्ट में इसकी तीन वजह बताई गईं. पहली, भारत से युद्ध का खतरा, दूसरी, विदेशी नीतियों पर नियंत्रण की जरूरत और तीसरी अपने हितों की रक्षा करना.

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दिलचस्प बात रही है कि सेना ने अपने अस्तित्व का लगभग आधा हिस्सा सैन्य शासन के तहत बिताया है. देश में चुनी कई सरकारों को सेना ने जड़ से उखाड़ फेंक दिया. तख्तापलट हुए. सेना के जनरल ने अघोषित पर राजनीति में अपना कद ऊंचा रखा. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 76 सालों में कोई भी पाक प्रधानमंत्री ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका.

Pakistan Former General

पाकिस्तानी सेना के पूर्व प्रमुख अयूब खान और जिया-उल-हक.

कैसे सेना का दबदबा बढ़ने लगा?

आजादी मिलने के एक दशक बाद पाकिस्तान में पहला सैन्य तख्तापलट हुआ, जब जनरल अयूब खान ने तत्कालीन राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा को कुर्सी से हटाया. जनरल याह्या खान, जिन्होंने 1969 में अयूब से पदभार संभाला था, तब तक इस पद पर रहे जब तक पाकिस्तान भारत से युद्ध हार नहीं गया. फिर जुल्फिकार अली भुट्टो ने सत्ता संभाली, जो प्रधानमंत्री बने. उन्हें 1979 में जनरल जिया उल हक ने हटाया और फांसी दे दी गई.

जिया उल हक ने पाकिस्तान पर सबसे पहले कड़ा शासन किया. उसने तानाशाह की तरह पाकिस्तान पर राज किया. देश में मार्शल लॉ लागू किया. संविधान की मर्यादा को तार-तार किया. नेशनल और स्टेट असेंबली को भंग किया. राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाया. चुनावों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित किया. जनरल जिया उल-हक की 1988 में एक विमान दुर्घटना में मौत हुई, हालांकि उसने पहले ही 1985 में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री मुहम्मद खान के नेतृत्व में सरकार बनाने की अनुमति दी थी.

उम्मीद की जा रही थी हालात बदलेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. पाकिस्तान और बेपटरी हो गया. 1997 में पाकिस्तान के आम चुनावों में जब नवाज शरीफ की जीत हुई. प्रधानमंत्री बनने के बाद नवाज ने सेना प्रमुख की कमान जनरल परवेज मुशर्रफ के हाथों में सौंप दी. समय के साथ मुशर्रफ ने अपनी रणनीति से ताकत में इजाफा किया. कारगिल युद्ध के लिए भी मुशर्रफ को जिम्मेदार माना गया और नवाज को बिना बताए जंग की शुरुआत भी कर दी थी.

Pakistan general election PTI Chief Imran Khan Nawaz Sharif

जिसे सेना प्रमुख बनाया, उसने ही किया तख्तापलट

2 साल बाद ही मुशर्रफ ने तख्तापलट करके नवाज को सत्ता से बेदखल कर दिया. हालांकि, नवाज शरीफ को पहले से ही इस बात का अंदाजा था.2013 में शरीफ ने दोबारा सत्ता संभाली और 2017 तक पाकिस्तान की विदेश नीति को कंट्रोल करने की कोशिश की. फिर इमरान खान आए और उनके साथ सेना ने खींचतान शुरू कर दी. मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि इमरान खान ने पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री को चुनने में किसी की नहीं सुनी और यही बात तत्कालीनसेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा को नागवार गुजरी.

2021 में इमरान ने ISI के प्रमुख को चुनने के मामले बाजवा से बयानबाजी की. इसके हालात और बिगड़े. पाकिस्तानी सेना पूरी तरह से इमरान और उनकी पार्टी पीटीआई के खिलाफ हुई. इसका फायदा शरीफ परिवार को मिला.

अर्थव्यवस्था पर सेना का दबाव

पिछले कुछ सालों से देश की अर्थव्यवस्था पर सेना का असर दिखाई देने लगा है. आर्थिक निर्णय लेने के लिए सेना की भूमिका नजर आ रही है. खासतौर पर जब से स्पेशन इंवेस्टमेंट फैसिलिटेशन काउंसिल का गठन हुआ है. सेना के कई रिटायर्ड और वर्तमान अधिकारी देश के कई संस्थानों के प्रमुख हैं. 2022 में पाकिस्तानी सरकार अपने कुल खर्च का 18 फीसदी सेना पर किया. देश में जो वर्तमान हालात हैं, वो इस बात का इशारा भी करते हैं कि लोगों में मन में पाकिस्तानी सेना के प्रति डर घट रहा है. इमरान की गिरफ्तारी के बाद जिस तरह देश में बवाल हुआ, उससे इस बात पर मुहर भी लगी.

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