हरियाली अमावस्या पितृ शांति,नवग्रह पूजा, ग्राम देवता की पूजा…- भारत संपर्क


सरकण्डा स्थित श्री पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर में सावन महोत्सव श्रावण मास मे महारुद्राभिषेकात्मक महायज्ञ नमक चमक विधि द्वारा प्रारंभ हो गया है जोकि निरंतर एक माह तक चलेगा।11 जुलाई 2025 से आरंभ सावन के अवसर पर त्रिदेव मंदिर में महारुद्राभिषेकात्मक महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा हैं। यह आयोजन 9 अगस्त सावन शुक्ल पूर्णिमा तक निरंतर चलेगा। इस अवसर पर नित्य प्रतिदिन प्रातः 9:00 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महारुद्राभिषेक नमक चमक विधि से किया जा रहा है। चतुर्दशी पर रुद्राभिषेक धूमधाम से किया गया।

पीताम्बरा पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने कहा कि हरेली छत्तीसगढ़ का प्रथम माई तिहार है।सावन मास का समय अपने आप में बहुत खास होता है क्योंकि इस दौरान चारों तरफ हरियाली छा जाती है। बारिश की वजह से मौसम खुशनुमा और सुहावना हो जाता है, जिससे पेड़-पौधों में ताजगी और जीवन की नयी चमक देखने को मिलती है। इसी कारण से सावन की अमावस्या को हरियाली अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस पावन दिन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत बड़ा है। सबसे पहले तो इस दिन पितरों की पूजा और तर्पण करना अत्यंत शुभ माना जाता है, जिससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। साथ ही, नवग्रह शांति पूजा भी इस दिन विशेष रूप से की जाती है, जिससे ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है।इसके अलावा,पवित्र श्रावण मास को भोलेनाथ की आराधना के लिए सबसे उत्तम माना गया है, इस माह में जो अमावस्या पड़ती है, उसे हरियाली अमावस कहा जाता है जो कि सावन शिवरात्रि के अगले दिन आती है,हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को पितृ कार्य, पवित्र स्नान और दान आदि के लिए फलदायी माना गया है। इसलिए हरियाली अमावस्या के दिन शिव पूजा का भी विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शिव की आराधना से मन की शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। प्रकृति की रक्षा और पर्यावरण की सेवा के लिए भी इस दिन पौधे लगाने की बहुत अहमियत होती है। खासकर आम, आंवला, नीम, बरगद, पीपल जैसे पवित्र और लाभकारी पेड़ लगाना शुभ माना जाता है। ये पौधे न केवल पर्यावरण को स्वस्थ बनाते हैं, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी बेहद पवित्र माने जाते हैं।इसलिए हरियाली अमावस्या न केवल एक धार्मिक अवसर है,बल्कि प्रकृति के साथ जुड़ने और उसका संरक्षण करने का भी एक अनमोल मौका है। इस दिन किए गए पूजा-पाठ और पौधारोपण से जीवन में खुशहाली, स्वास्थ्य और सौभाग्य आता है।

छत्तीसगढ़ के गांव में हरेली तिहार के पहले ही गेड़ी घरों में बनना शुरू हो जाता है। त्यौहार के दिन सुबह से ही तालाब के पनघट में किसान परिवार, बड़े बजुर्ग बच्चे सभी अपने गाय, बैल, बछड़े को नहलाते हैं। साथ ही खेती-किसानी, औजार, हल (नांगर), कुदाली, फावड़ा, गैंती को धोते हैं। घर के आंगन में कृषि औजारों की पूजा करते हैं। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों के पूजा के बाद नारियल, गुड़ के चीला, दूध का भोग लगाया जाता है। अपने-अपने घरों में अराध्य देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। गांवों के ठाकुरदेव की पूजा की जाती है। एवं गांव को बांधा जाता है। घरों के बाहर मुख्य द्वार पर नीम की टहनियों लटकाई जाती है।
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