एक मंदिर के लिए भिड़ रहे थाईलैंड और कंबोडिया, ये है पूरी कहानी, भारत और चीन के लिए भी… – भारत संपर्क


कंबोडिया- थाईलैंड के बीच क्यों हो रही जंग
इंडो चाइना प्रायद्वीप में स्थित कंबोडिया की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार पर्यटन है. यहां दो ऐसे मंदिर हैं, जिनकी विशालता और प्राचीनता को देखने पूरे विश्व से पर्यटक आते हैं. खासतौर पर भारतीयों के लिए ये मंदिर तीर्थ हैं. इनमें पहला मंदिर हैं अंग्कोरवाट का मंदिर जो 1.6 वर्ग किमी में फैला है. इसे 12वीं शताब्दी में खमेर राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने 1150 में बनवाया था. तब यह विष्णु को समर्पित मंदिर था. लेकिन, बाद में यह बौद्ध मंदिर के रूप में बदल दिया गया. यह मंदिर दुनिया में खमेर वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है. हिंदुओं और बौद्धों दोनों की इस मंदिर पर श्रद्धा है. इसी तरह कंबोडिया में प्रेह विहेयर मंदिर भी है, जो सूर्य को समर्पित है. यह थाईलैंड की सीमा पर प्रीह विहार प्रांत में बना है.
यह मंदिर भी खमेर साम्राज्य द्वारा बनवाया गया और 525 मीटर ऊंची एक चट्टान की चोटी पर बना है. इस मंदिर को लेकर कंबोडिया और थाईलैंड में विवाद बहुत पुराना है. दोनों इसे अपने-अपने क्षेत्र में बताते हैं. इसके स्वामित्व को लेकर दोनों देशों में कई बार टकराव हुआ है. खमेर साम्राज्य चूंकि थाईलैंड और कंबोडिया दोनों देशों में फैला था इसलिए इसका मालिकाना हक विवादों में रहा. फ्रांस ने जब कंबोडिया को आजादी दी तब इसे कंबोडिया के प्रीह विहार प्रांत में रखा. 800 मीटर के दायरे में फैले इस मंदिर को 1962 में हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने अपने फैसले में इसे कंबोडिया का बताया. इसे लेकर झगड़े शुरू हुए. 2008 में इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया.
कंबोडिया झुका नहीं
फिर विवाद बढ़ा तो इंटरनेशनल कोर्ट ने 2013 में फैसला दिया कि यह कंबोडिया का है. एक तरफ थाईलैंड से कंबोडिया की तनातनी दूसरी तरफ वियतनाम भी कंबोडिया पर हमला कर चुका है. 25 दिसंबर 1978 को कंबोडिया पर वियतनाम ने हमला किया था. उस समय माना जा रहा था कि यह हमला चीन ने करवाया है. मालूम हो कि तब भारत के विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चीन के दौरे पर गए हुए थे. हमले की सूचना मिलते ही वे दौरा अधूरा छोड़ कर लौट आए थे. जब अमेरिका वियतनाम से लड़ रहा था तब कंबोडिया की नरोत्तम सिंघानुक सरकार ने तटस्थ रुख अपनाया इस वजह से अमेरिका ने कंबोडिया पर भी हमला कर दिया था. लेकिन, कंबोडिया को वह दबा नहीं सका.
कंबोडिया और थाईलैंड में पर्यटन उद्योग
प्रेह विहेयर मंदिर को लेकर थाईलैंड और कंबोडिया आपस में भिड़े हैं. दोनों मुल्कों की पहचान बौद्ध देश के रूप में है. दक्षिण पूर्व एशिया में बसे थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस और वियतनाम की आर्थिक स्थिति कोई मजबूत नहीं है. लेकिन, इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिका की भी हिम्मत नहीं है कि इन देशों की तरफ आंख उठा सके. महाबली अमेरिका को वियतनाम ने वर्षों पानी पिलाया. पड़ोसी चीन भी इन देशों को सामने से टार्गेट नहीं करता. यह अलग बात है कि वह पीठ पीछे इन देशों के विरुद्ध षड्यंत्र रचता रहता है. वियतनाम अपनी मेहनत और अपनी कृषि उपज से आज काफी समृद्ध है. अमेरिका, कनाडा और योरोप में इनके चावल की मांग काफी है. थाईलैंड में समृद्धि आई पर्यटन उद्योग से. वहां देह व्यापार को कानूनी मान्यता है. कंबोडिया और थाईलैंड की पहचान अपने-अपने पर्यटन स्थलों के कारण है.
भारत की सभ्यता और चाइनीज मूल
इसमें कोई शक नहीं कि इन देशों की आबादी मुख्य रूप से चाइनीज मूल की है. पर सभ्यता और संस्कृति में ये भारत के करीब रहे. चोल साम्राज्य के समय बहुत से लोग यहां चले गए और विष्णु मत का प्रचार किया. हालांकि, अरबी इतिहासकारों ने कंबोडिया को कांबोज साम्राज्य से जोड़ा है. कांबोज लोग कश्मीर से कंबोडिया गए होंगे. वे शिव के उपासक थे इसलिए शैव मत वहां पहले फैला. इसलिए यह बात आज तक स्पष्ट नहीं हो पाई है कि कंबोडिया , थाईलैंड के लोग भारत मूल के हैं या चीनी मूल के. उनकी एथिनिक पहचान उनको चीन के करीब ले जाती है तो सांस्कृतिक पहचान भारत के. भारत की सभ्यता और संस्कृति का यहां इतना अधिक असर है कि अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के समय थाईलैंड की महारानी अयोध्या गई थीं.
धर्म कोई भी हो पहचान हिंदू की
मगर दक्षिण पूर्व एशिया में स्थित म्यांमार, वियतनाम, कंबोडिया , थाईलैंड, लाओस और मलेशिया में से सभी की स्थिति भिन्न है. मलेशिया मुस्लिम बहुल राष्ट्र है जबकि शेष चारों देशों में बौद्ध धर्म है. पांचवीं से 12 वीं शताब्दी के बीच भारत से तेलुगू और तमिल भाषी काफी लोग यहां जाकर बस गए. भारत का चोल साम्राज्य तो इतना शक्तिशाली था कि इन सभी देशों में भारतीय संस्कृति उनकी दिनचर्या का अंग बन गई. मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों का मुख्य धर्म इस्लाम है लेकिन वहां के लोगों के नाम हिंदुओं जैसे हैं. मलेशिया में लंबे समय तक महातिर मोहम्मद का शासन रहा. महातिर शब्द महा स्थिवर से आया है. इसी तरह इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो था, जो महाभारत का एक पात्र है. इन दोनों देशों में राम लीलाएं भी होती हैं.
इंडो-चाइना क्षेत्र
बाकी के चारों देशों का मुख्य धर्म बौद्ध है. बौद्ध धर्म की उत्पत्ति ही भारत से हुई है. इसलिए यहां की सभ्यता और संस्कृति से काफी सामान्य है. इन देशों में सदियों पुराने मंदिर आज भी देखे जा सकते हैं. इसके अलावा इनकी भौगोलिक स्थिति भी बहुत महत्त्वपूर्ण है. खासकर कंबोडिया , थाईलैंड और वियतनाम इंडो चाइना प्रायद्वीप पर स्थित हैं. इसलिए भारत और चीन दोनों के लिए इनका महत्व है.
खमेर के बाद आए फ्रांसीसी
इनमें कंबोडिया आर्थिक रूप से कमजोर है. उसका क्षेत्रफल भी छोटा है और आबादी पौने दो करोड़ के आसपास है. लेकिन, चीन ने इस देश को अपने पाले में लाने के लिए बहुत प्रयास किए. कभी वियतनाम और कंबोडिया को भिड़वाया तो कभी लाओस से. ताजा तनाव थाईलैंड से है. कंबोडिया पर हिंदुओं के शैव और वैष्णव मत का बहुत असर रहा और खमेर राजवंश के बाद यहां बौद्ध धर्म फैला. अंग्कोरवाट का प्रसिद्ध विष्णु मंदिर भी यहीं हैं और विवाद का विषय बना शिव मंदिर भी. ये दोनों मंदिर यूनेस्को के संरक्षण में हैं. हर वर्ष हजारों पर्यटक इन मंदिरों को देखने आते हैं. सातवीं से 15 वीं शताब्दी तक यहां खमेर वंश का पूर्ण शासन रहा. फिर खमेर वंश बिखरने लगा. पर 19 वीं शताब्दी तक उसका शासन कुछ प्रदेशों पर था. 1863 में यह देश फ्रांस का उपनिवेश बना. 1955 में स्वतंत्र हुआ.
परंपरा में वैष्णव
इस बीच यहां काफी उथल-पुथल रही. इंडो-चीन के इस द्वीप पर थाईलैंड और वियतनाम के लोग बसने लगे. यहां की संस्कृति पर उनका असर पड़ा. थाईलैंड की पूर्वी सीमा पर लाओस और कंबोडिया और पश्चिमी सीमा पर म्यांमार और दक्षिणी सीमा पर मलेशिया है. इसका प्राचीन नाम स्याम है. थाईलैंड पर हिंदू धर्म का गहरा असर है. यहां के राजा को विष्णु का अवतार समझा जाता रहा है. आज भी यहां संसदीय राजतंत्र है. यहां का राज परिवार अजुध्या नाम के शहर में रहता है. हालांकि, अब यहां हिंदू आबादी लगभग शून्य है. कुल आबादी का 93.46 प्रतिशत बौद्ध हैं और 5.37 प्रतिशत मुसलमान, 1.13 प्रतिशत ईसाई हैं. लेकिन, परंपरा में यह वैष्णव मत के रीति-रिवाज मानता हैं. इसकी अर्थव्यवस्था में पर्यटन सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है.
देह व्यापार को छूट
बैंकॉक भले यहां की राजधानी हो लेकिन पटाया और फुकेट आकर्षण के मुख्य केंद्र हैं. इसलिए भी कि यहां देह व्यापार को खुली छूट है. ऐसा शायद इसलिए भी है क्योंकि यहां चीनी और पुर्तगाली सभ्यता का मिश्रण है. चियांग माई में कई मंदिर है, जो यहां की पुरानी हिंदू सभ्यता के दर्शन कराते हैं. यहां भी पर्यटक खूब आते हैं. इसी पर्यटन उद्योग ने आज थाईलैंड की गरीबी को दूर किया है. एक बार तो थाईलैंड के प्रधानमंत्री ने अपने देश की बालिकाओं को मां कह कर संबोधित किया था. उन्होंने कहा था, हमारी इन बेटियों ने ही थाईलैंड को गरीबी से दूर किया है. वहां अधिकांश लड़कियों को पर्यटकों की सेवा में लगा दिया जाता है. इसी के बूते आज थाईलैंड अपने पड़ोसियों की तुलना में अधिक संपन्न है. फिर भी मलेशिया आर्थिक रूप से इस पूरे क्षेत्र का सबसे समृद्ध देश है.
भारत-चीन किसकी तरफ
अभी तक इन दोनों देशों की झड़प में 16 लोग मारे जा चुके हैं. इनकी झड़प भारत और चीन दोनों ही देशों को परेशान करने वाली है. दोनों में लेबर सस्ती है और पर्यटन का बाजार है. लेकिन, कंबोडिया में वेश्यावृत्ति अवैध है. उसका पर्यटन उसकी संरक्षित इमारतों के बूते है. ये दोनों इमारतें मंदिर हैं. अंग्कोरवाट का मंदिर तो दुनिया में सबसे विशाल है. मदुरई का मीनाक्षी मंदिर भी उससे छोटा है. इसलिए अपने प्रेह विहेयर मंदिर को थाईलैंड से बचाना उसकी प्राथमिकता है.