हेड ऑफ स्टेट्स: हॉलीवुड के पर्दे से निकलती अमेरिकी कूटनीति की नई पटकथा – भारत संपर्क

0
हेड ऑफ स्टेट्स: हॉलीवुड के पर्दे से निकलती अमेरिकी कूटनीति की नई पटकथा – भारत संपर्क
हेड ऑफ स्टेट्स: हॉलीवुड के पर्दे से निकलती अमेरिकी कूटनीति की नई पटकथा

क्या है हेड ऑफ स्टेट की कहानी?

प्राइम वीडियो पर हाल ही में रिलीज हुई फिल्म Head of States न केवल एक हाई-ऑक्टेन एक्शन फिल्म है, बल्कि यह पश्चिमी कूटनीतिक सोच, सत्ता की संरचना और वैश्विक गठबंधनों विशेष रूप से नाटो — को लेकर बनाए गए नेरेटिव की एक चतुर प्रस्तुति है. इस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा एक MI6 एजेंट की भूमिका में हैं जो ब्रिटिश प्रधानमंत्री की पूर्व प्रेमिका भी हैं. फिल्म का नायक एक एक्शन हीरो से अमेरिका का राष्ट्रपति बनता है और अंततः एक अंतरराष्ट्रीय संकट का नायक बनकर उभरता है.

फ़िल्म का मूल संदेश यह है कि चाहे दुनिया कितनी ही विघटित क्यों न हो जाए, अगर अमेरिका और ब्रिटेन साथ हैं, तो सब कुछ ठीक हो सकता है. यह स्क्रिप्ट इतनी जानी-पहचानी है कि अब यह क्लासिक बन चुकी है, वही पुरानी शराब, बस नई बोतल में.

1. नाटो के लिए नया विमर्श, पुराने डर की नई पैकेजिंग:

फिल्म की कहानी उस समय सेट की गई है जब अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के बीच अविश्वास की खाई चौड़ी हो चुकी है. यूरोपीय राष्ट्र नाटो से अलग होने की कगार पर हैं, और अमेरिका का राष्ट्रपति खुद एक झटके में अकेला रह जाता है. लेकिन जैसे ही दुश्मन सक्रिय होता है, वही पुराने नैरेटिव वापस लौट आते हैं लोकतंत्र खतरे में है, पश्चिमी मूल्य प्रणाली को बचाना है, और हम नहीं लड़े, तो दुनिया बर्बाद हो जाएगी.

यही नैरेटिव असल दुनिया में भी दोहराया जा रहा है. जब डोनाल्ड ट्रम्प फिर से राष्ट्रपति बने, तो यह माना जा रहा था कि वे नाटो को एक Obsolete Alliance कहकर किनारे लगा देंगे. लेकिन Head of States जैसी फिल्में यह दिखाती हैं कि कैसे अमेरिकी नेतृत्व हर बार, चाहे वह रियल हो या रील, संकट के समय नाटो को पुनर्जीवित कर देता है.

2.ब्रिटिश सांकेतिक राजनीति फिश एंड चिप्स से वैश्विक शक्ति तक:

फिल्म में प्रियंका चोपड़ा का किरदार न सिर्फ MI6 एजेंट है, बल्कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री की निजी पृष्ठभूमि से भी जुड़ी है. यह अमेरिका और ब्रिटेन के स्पेशल रिलेशनशिप की सांकेतिक प्रस्तुति है, जिसमें व्यक्तिगत रिश्ते तक को भू-राजनीतिक गठबंधन की मजबूती के रूप में दर्शाया जाता है.

Fish and Chips जैसे प्रतीकों के माध्यम से पश्चिमी जीवनशैली को नैतिक रूप से श्रेष्ठ बताया जाता है. फिल्म में यह तक कहा गया है कि अगर आप फिश एंड चिप्स के साथ विनेगर नहीं खाते, तो आप भरोसेमंद दोस्त नहीं हो सकते. यानी, पश्चिमी संस्कृति और मानदंडों को अपनाना दोस्ती की पहली शर्त है.

यह वही सोच है जो असल दुनिया में भी अमेरिका और ब्रिटेन की विदेशी नीति में झलकती है — हमारे जैसे बनो, तभी हमें स्वीकार हो.

3. ट्रम्प: रियलिटी टीवी से रीयल पॉलिटिक तक:

फिल्म के राष्ट्रपति का चरित्र एक पूर्व एक्शन हीरो है, जो जनता की भावनाओं का प्रतीक बनकर सत्ता तक पहुंचता है. यह कहानी सीधे डोनाल्ड ट्रम्प से मिलती-जुलती है, जिन्होंने एक रियलिटी टीवी स्टार से अमेरिकी राजनीति में धमाकेदार एंट्री की.

एक समय था जब ट्रम्प ने नाटो को पुराना और अनुपयोगी गठबंधन कहा था. उन्होंने कहा था कि अमेरिका को इसकी ज़रूरत नहीं है, खासकर तब, जब यूरोपीय देश अपनी रक्षा पर पर्याप्त खर्च नहीं करते. लेकिन आज वही ट्रम्प नाटो के बचाव में खड़े हैं. ठीक वैसे ही फिल्म में राष्ट्रपति अंततः सभी यूरोपीय सहयोगियों को एक साथ लाकर दुश्मन का खात्मा करते हैं.

असल जीवन में भी ट्रम्प अब रूस के परमाणु खतरे, चीन की आक्रामकता और मध्य-पूर्व की अस्थिरता को देखकर नाटो की भूमिका को अनिवार्य मानने लगे हैं.

4. असली दुश्मन कौन? अंत में आया वही मोड़:

फिल्म की शुरुआत में दुश्मन के रूप में रूसी एजेंट्स को दिखाया जाता है. यह पश्चिमी सिनेमा का पारंपरिक हथकंडा है . शीत युद्ध से लेकर आज तक रूसी खलनायक एक स्थायी आइकन बना हुआ है. लेकिन अंत में मोड़ आता है, असली विलेन कोई विदेशी नहीं, बल्कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति ही निकलता है, जो सत्ता हथियाने की साजिश करता है.

यह मोड़ पश्चिमी राजनीति की एक गहरी विडंबना को उजागर करता है. लोकतंत्र को बाहर से नहीं, बल्कि भीतर से ही सबसे बड़ा खतरा है. यही विडंबना ट्रम्प के कार्यकाल में भी सामने आई थी जब 6 जनवरी 2021 को अमेरिकी संसद पर हमले ने दिखा दिया कि लोकतंत्र की रक्षा सिर्फ विदेशी ताकतों से नहीं आंतरिक कट्टरता और सत्ता लोलुपता से भी करनी होती है.

5. नाटो के बहाने अमेरिकी आधिपत्य का विस्तार-

फिल्म की पटकथा में बार-बार यह दर्शाया गया है कि यदि अमेरिका और ब्रिटेन साथ न खड़े हों, तो पूरी दुनिया अराजकता में डूब जाएगी. यह विचारधारा सिर्फ सिनेमाई कल्पना नहीं, बल्कि वास्तविक नीति निर्माण का भी हिस्सा बन गई है.

सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, यूक्रेन — हर बार अमेरिका ने लोकतंत्र बचाने के नाम पर हस्तक्षेप किया, और बाद में यह सामने आया कि इन कार्यवाहियों के पीछे आर्थिक, सामरिक और रणनीतिक हित ज़्यादा महत्वपूर्ण थे.

फिल्म में दिखाया गया है कि अगर कोई देश पश्चिमी मानदंडों के मुताबिक न चले, तो उनके खिलाफ सैन्य बल का प्रयोग जायज ठहराया जा सकता है. यह विचार गहरे अमेरिकी सैन्य-औद्योगिक नैरेटिव को दर्शाता है, जिसे फिल्म मनोरंजन के माध्यम से आम दर्शकों तक पहुंचाने का काम करती है.

कुल मिलाकर Head of States कोई साधारण एक्शन फिल्म नहीं है. यह एक संपूर्ण कूटनीतिक नैरेटिव है जिसे मनोरंजन के ज़रिए पेश किया गया है. प्रियंका चोपड़ा की भूमिका, ब्रिटिश प्रतीकवाद, अमेरिका का आत्मघोषित डिफेंडर ऑफ डेमोक्रेसी बनना, और अंत में एक आंतरिक खलनायक का सामने आना — यह सब कुछ मिलकर दर्शाते हैं कि पश्चिमी विश्व किस प्रकार से अपने भू-राजनीतिक हितों को नई कहानियों में ढालकर, जनता को एक जरूरी युद्ध के लिए मानसिक रूप से तैयार करता है. जब ट्रम्प जैसे नेता इस नैरेटिव को अपनाते हैं, तब यह स्पष्ट हो जाता है कि चाहे मंच कोई भी हो फिल्म या सत्ता- स्क्रिप्ट वही पुरानी है, बस निर्देशक और अभिनेता बदल जाते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रवींद्र जडेजा ने बदला टेस्ट क्रिकेट का इतिहास, इंग्लैंड में ऐसा करने वाले ए… – भारत संपर्क| जूता उठाकर सिर पर रखा तो मिली मांफी, शिवपुरी में युवक को किस बात की मिली ता… – भारत संपर्क| Best Course: बीटेक कंप्यूटर साइंस या बीटेक डेटा साइंस, किसमें स्कोप ज्यादा?…| श्रावण मास का तृतीय सोमवार पारद शिवलिंग की पूजा करने वाले…- भारत संपर्क| *Breaking jashpur:- थाना प्रभारी नारायणपुर निरीक्षक रामसाय पैंकरा की बिजली…- भारत संपर्क