Bihar Voter List: बिहार में 2005 के बाद फिर बदलने जा रहा ट्रेंड! चुनाव में…

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Bihar Voter List: बिहार में 2005 के बाद फिर बदलने जा रहा ट्रेंड! चुनाव में…
Bihar Voter List: बिहार में 2005 के बाद फिर बदलने जा रहा ट्रेंड! चुनाव में कम होंगे वोटर्स

बिहार में चुनाव आयोग का मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण

चुनाव आयोग ने कल रविवार को बताया कि बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के पहले चरण की प्रक्रिया के खत्म होने के बाद 7.24 करोड़ फॉर्म जमा किए गए. यह संख्या बिहार में एसआईआर प्रक्रिया शुरू होने से एक दिन पहले 24 जून को रजिस्टर्ड वोटर्स की कुल संख्या से 65 लाख यानी 8% कम है. जबकि पिछले साल देश में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान रजिस्टर्ड वोटर्स की संख्या से यह 48 लाख यानी 6.2% कम है. 5 साल पहले 2020 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान रजिस्टर्ड वोटर्स की संख्या की तुलना में 12 लाख (1.6%) कम है.

बिहार में वोटर्स की संख्या में साफ तौर पर गिरावट दिख रही है, साल 2005 में हुए 2 विधानसभा चुनावों के बाद से राज्य में लगातार 2 चुनावों के बीच ऐसा पहली बार हो रहा है. हालांकि चुनाव आयोग की ओर से फाइनल वोटर लिस्ट 30 सितंबर को पब्लिश की जानी है. गिरावट का यह ट्रेंड दोनों तरह के चुनावों में बना रहा. राज्य में लगातार 2 विधानसभा चुनाव हुए या फिर विधानसभा और लोकसभा चुनाव कराए गए.

2005 के बाद के हर चुनाव में बढ़े वोटर्स

राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए रजिस्टर्ड वोटर्स के आंकड़े यह तस्दीक करते हैं कि ये हर बार आम तौर पर बढ़ता ही जाता है. अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स ने साल 1977 (2000 में झारखंड का हिस्सा बने विधानसभा क्षेत्रों को हटाने के बाद), में तीसरे परिसीमन के बाद पहले चुनाव; और 2004 (झारखंड बनने के बाद पहले लोकसभा चुनाव) के बाद से राज्य में हुए सभी विधानसभा चुनावों के लिए वोटर्स की संख्या की पड़ताल की. फरवरी और अक्टूबर 2005 के बीच हुए 2 विधानसभा चुनावों को छोड़कर, इस अवधि में सभी लगातार चुनावों के बीच राज्य में रजिस्टर्ड वोटर्स की संख्या में इजाफा ही हुआ है.

साल 2005 के दोनों चुनावों के बीच, वोटर्स की संख्या 5.27 करोड़ से घटकर 5.13 करोड़ (2.5%) हो गई. 2005 के ट्रेंड से पता चलता है कि बिहार में रजिस्टर्ड वोटर्स की संख्या में गिरावट असंभव नहीं है. हालांकि, राज्य में अब यह एक दुर्लभ घटना होगी यदि फाइनल वोटर लिस्ट 2020 के विधानसभा चुनाव (7.36 करोड़) या 2024 के लोकसभा चुनाव (7.73 करोड़) की तुलना में रजिस्टर्ड वोटर्स की संख्या कम आती है.

वयस्कों लोगों की संख्या में इजाफा

वास्तविकता यही है कि 24 जून को 7.89 करोड़ वोटर्स थे और ये 27 जुलाई को 7.24 करोड़ वोटर्स हो गए यानी कि इसमें 8% की गिरावट आ गई. फरवरी और अक्टूबर 2005 के चुनावों के बीच हुई 2.5% की गिरावट की तुलना में एक साल से भी कम अवधि में आनुपातिक रूप से अधिक गिरावट है.

खास बात यह है कि बिहार जैसे उच्च प्रजनन दर वाले राज्य में रजिस्टर्ड वोटर्स की संख्या में गिरावट 2005 में भी (2003 में अंतिम एसआईआर होने के 2 साल और एक लोकसभा चुनाव के बाद) आश्चर्यजनक है. इसकी उच्च प्रजनन दर को देखते हुए, 2001 और 2011 की जनगणना के बीच बिहार में वयस्कों लोगों की संख्या में 28.5% का इजाफा हुआ, जबकि इस अवधि में राज्य से प्रवास की दर में भी तेजी आई थी.

अगले एक महीने में बढ़ सकते हैं वोटर्स24 जून को 7.89 करोड़ वोटर्स थे और ये 27 जुलाई को 7.24 करोड़ वोटर्स हो गए यानी कि इसमें 8% की गिरावट आ गई. फरवरी और अक्टूबर 2005 के चुनावों के बीच हुई 2.5% की गिरावट की तुलना में एक साल से भी कम अवधि में आनुपातिक रूप से अधिक गिरावट है.

हालांकि, 2025 में कराए गए एसआईआर प्रोसेस में अब तक देखी जा रही गिरावट में सुधार के लिए अभी कुछ वक्त है. 27 जुलाई को चुनाव आयोग की ओर से जारी प्रेस नोट में कहा गया कि 1 अगस्त से 1 सितंबर तक दावों और आपत्तियों के जरिए वास्तविक मतदाताओं को वोटर लिस्ट में फिर से शामिल किया जा सकता है. 1 अक्टूबर या उससे पहले 18 साल वाले युवा वोटर्स को भी इस अवधि में वोटर लिस्ट में जोड़ा जा सकता है.

साल 2005 में वोटर्स की संख्या में गिरावट का एक संभावित कारण यह हो सकता है कि चुनाव आयोग ने उस साल के 2 विधानसभा चुनावों के बीच मतदाता फोटो पहचान पत्र (Electors Photo Identity Card, EPIC) जारी करने के लिए एक नया अभियान शुरू किया था. 23 जुलाई, 2005 को चुनाव आयोग की ओर से कहा गया, “इस अभियान के तहत, सभी चुनाव ऑफिसों में स्थायी ऑनलाइन ईपीआईसी केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतम वोटर्स को कवर करने के लिए अतिरिक्त टीमें तैयार की जा रही हैं. चुनाव आयोग की कोशिश ईपीआईसी कार्यक्रम के तहत अधिक से अधिक क्षेत्रों को कवरेज किया जा सके ताकि वोटिंग के समय मतदाता पहचान के लिए वैकल्पिक दस्तावेजों को निर्धारित करने की जरूरत न पड़े.” इस अभियान की शुरुआत और 3 सितंबर को चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बीच, ईपीआईसी कवरेज 57% से बढ़कर 67% हो गया था.

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