कैसा होगा नया देश फ़िलिस्तीन, क्या दो-राज्य समाधान ही है आखिरी विकल्प? – भारत संपर्क

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कैसा होगा नया देश फ़िलिस्तीन, क्या दो-राज्य समाधान ही है आखिरी विकल्प? – भारत संपर्क
कैसा होगा नया देश फ़िलिस्तीन, क्या दो-राज्य समाधान ही है आखिरी विकल्प?

गाजा में जॉर्डन और UAE राहत सामग्री एयरड्रॉप कर रहे हैं, जिन्हें लेने के लिए लोगों का हुजून उमड़ रहा है.

जंग से बदतर जिंदगी और भूख से तड़पते बच्चे… इजराइल के ताबड़तोड़ हमलों ने गाजा को बदहाल कर दिया है. यहां की खंडहर इमारतें बर्बादी की कहानी कह रही हैं. चेहरे पर दर्द नहीं डर दिखता है, न जानें कब कहां से कोई मिसाइल, रॉकेट या बम गिर जाए इसका अंदाजा ही नहीं. हमास अपनी जिद पर अड़ा है और इजराइल इस उग्रवादी संगठन को जड़ से उखाड़ने का संकल्प ले चुका है. इस बीच जो खबर आ रही है वो एक ऐसी राहत बन सकती है जिसका गाजा में रहने वाले लोग दशकों से इंतजार कर रहे हैं.

यह राहत है दो राज्य समाधान. संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीनी मुद्दे पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन अरब-इजराइल संघर्ष के लिए दो-राज्य समाधान पर चर्चा एक बार फिर पुर्नजीवित हो रही है. अगर ऐसा होता है तो दोनों देशों के लोगों को अपना अपना क्षेत्र मिल जाएगा और 1947 से हिंसा के जख्म सह रही ये जमीन फिर से गुलजार होने की उम्मीद में कहकहा उठेगी. इसमें एक राज्य होगा मौजूदा इजराइल और दूसरा होगा स्वतंत्र फिलिस्तीनी देश.

क्या है दो राज्य समाधान?

इतिहास ने गाजा की जमीन को कई जख्म दिए हैं. यह सिलसिला बरसों पुराना है. इसी से निजात के लिए दो राज्य समाधान की परिकल्पना की गई थी. दरअसल एक समय था जब एक ही जमीन पर यहूदी और फिलिस्तीनी लोग एक साथ रहते थे.1967 में एक समाधान प्रस्तुत किया गया. इसके तहत अरब इजराइल युद्ध से पहले की सीमाओं के भीतर ही एक फिलस्तीनी राज्य स्थापित करने पर सहमति बनी. 1993 में हस्ताक्षरित ओस्लो समझौते में 1999 तक फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का प्रावधान है. बाद में इसे बढ़ाकर 2005 कर दिया गया. दरअसल 2003 में अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र ने एक रोडमैप बनाया और फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना की बात कही. इसके बदले में इंतिफादा को समाप्त करने और फिलिस्तीनी क्षेत्रों में बस्तियों के निर्माण पर रोक लगाने की बात कही गई थी.

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भुखमरी का आलम ये है कि बच्चों की शरीर की एक-एक हड्डियां नजर आ रही है. एक मां के लिए इससे बड़ा दर्द और क्या होगा कि वो अपने बच्चे को इस हाल में देख रही है.

मामला 1948 से बिगड़ा था

कहानी 1967 से काफी पहले 1948 में ही बिगड़ गई थी. BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1947 में प्रस्ताव 181 को अपनाया था. इसे विभाजन प्रस्ताव के तौर पर जाना जाता है. इसमें कहा गया था कि फिलिस्तीन में एक यहूदी राज्य और एक अरब राज्य की स्थापना होगी. इसमें येरूशलम को एक अलग अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के अधीन रखा गया था. इसी प्रस्ताव के तहत इजराइल अस्तित्व में आया. यहूदी नेताओं ने इसे स्वीकार कर लिया. इसके तहत उन्हें 56 प्रतिशत भूमि दी गई, मगर अरब लीग को ये स्वीकार नहीं था. 14 मई 1948 को इजराइल राज्य का ऐलान हुआ और एक दिन बाद ही अरब राज्यों और इजराइल के बीच युद्ध छिड़ गया. इजराइल युद्ध में जीता और 77 प्रतिशत जमीन पर कब्जा कर लिया. एक नई सीमा बनी जिसे ग्रीनलाइन कहा गया.

तो कैसा होगा नया फिलिस्तीन?

दो राज्य समाधान की चर्चा 1967 में फिर शुरू हुई जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 242 जारी किया. इसके तहत इजराइल को 1967 के युद्ध में कब्जे वाले क्षेत्रों से हटना है. 1968 में, सुरक्षा परिषद ने अपने प्रस्ताव संख्या 252 में, इज़राइल से यरुशलम की स्थिति को बदलने वाले अपने सभी उपायों को वापस लेने का आह्वान किया था. इसमें इज़राइल द्वारा यरुशलम में उठाए गए सभी कदम और कार्रवाइयां अमान्य मानी गई थीं. अगर नए फिलिस्तीन राज्य का निर्माण होता है तो ग्रीन लाइन में बदलाव किया जाएगा.जिसके एक तरफ इजराइल है और दूसरी ओर मिस्र, जॉर्डन, लेबनान और सीरिया है. दरअसल अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने हाल ही में कहा है कि 1967 से पहले की रेखाएं ही वास्तविक सीमा के तौर पर मानी जाएगीं. इसके तहत इजराइल की सीमा वही मानी जाएगी जो 1948 के युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र की सहमति से तय की गई थीं. इस पर अरब देशों और इजराइल ने भी हस्ताक्षर किए थे. इजराइल और फिलस्तीन के बीच वार्ता में इसी रेखा को महत्वपूर्ण माना गया है.

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इजराइली हमलों ने गाजा में तबाही मचा दी है. आलम ये है कि लोग मुफलिसी की जिंदगी बसर करने को मजबूर हो गए हैं.

तो बाधा क्या है?

2002 में, इज़राइल ने अपनी बस्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क़ब्ज़े वाले पश्चिमी तट पर एक अलगाव दीवार का निर्माण शुरू किया था. यह दीवार 700 किलोमीटर से भी ज़्यादा लंबी है. यह दीवार न केवल ग्रीन लाइन पर बनाई गई है, बल्कि इसका 85 प्रतिशत हिस्सा पश्चिमी तट की भूमि पर स्थित है. ग्रीन लाइन और दीवार के बीच के क्षेत्र को “सीम ज़ोन” कहा जाता है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, यह दीवार पूर्वी येरुशलम सहित 9.4 प्रतिशत फिलिस्तीनी क्षेत्र को अलग-थलग कर देगी, तथा पश्चिमी तट की 10 प्रतिशत भूमि को जब्त कर लेगी. 2004 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने एक फैसला जारी करते हुए कहा कि इस दीवार का निर्माण अवैध है और इसे गिराने की मांग की थी.

फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को यह व्यवस्था मंजूर

दो राज्य समाधान को फिलिस्तीन मुक्ति संगठन सहमति देता है. इसमें हमास और इस्लामिक जिहाद को छोड़कर अधिकांश फिलिस्तीनी गुट और दल शामिल हैं. हमास को इजराइल को मान्यता दिए बिना 1967 की सीमाओं पर फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना पर कोई आपत्ति नहीं है. दूसरी ओर, 1993 में इजराइल ने ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसके तहत फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना होनी थी. 2009 में, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने सार्वजनिक रूप से इजराइल के साथ-साथ एक फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के विचार का समर्थन किया था. हालांकि पिछले साल इजराइली संसद नेसेट ने नेतन्याहू की उस घोषणा का समर्थन किया था जिसमें उन्होंने फिलिस्तीन की स्थापना को अस्वीकार कर दिया था.

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गाजा में तबाही. (फाइल फोटो)

फिलिस्तीनी प्राधिकरण का क्या है कहना?

फिलिस्तीनी प्राधिकरण ने कहा कि पश्चिमी तट के कुछ हिस्सों को अपने में मिलाने की इजराइल की योजना फिलिस्तीनी राष्ट्रीय परियोजना के लिए अस्तित्वगत खतरा है तथा दो-राज्य समाधान का अंत है. 2020 के इजराइल-अमीराती सामान्यीकरण समझौते के बाद, विलय को निलंबित करने का निर्णय लिया गया है. समझौते की घोषणा के बाद, पश्चिमी तट के लिए बाइबिल के नाम का इस्तेमाल करते हुए, नेतन्याहू ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ पूर्ण समन्वय में, यहूदिया और सामरिया में हमारी संप्रभुता का विस्तार करने की मेरी योजना में कोई बदलाव नहीं आया है. लेकिन इस वर्ष इजरायल द्वारा विलय की बात पुनः शुरू हो गई.

इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के मध्य पूर्व कार्यक्रम सलाहकार जोस्ट हिल्टरमैन के हवाले से बीबीसी ने लिखा है कि इजराइली बस्तियां 1967 की सीमाओं के आधार पर दो-राज्य समाधान प्राप्त करने की संभावना को प्रभावित करती हैं. हिल्टरमैन ने कहा कि पश्चिमी तट पर इजराइली बस्तियों के विस्तार को देखते हुए यह बिल्कुल स्पष्ट नहीं है कि एक व्यवहार्य फिलिस्तीनी राज्य का निर्माण अभी भी संभव है.

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