कौन है खोकन चंद्र बर्मन जिसकी वजह से शेख हसीना को बांग्लादेश में मिल सकती है… – भारत संपर्क


शेख हसीना के खिलाफ खोकन की गवाही
बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ नरसंहार के आरोप में ट्रायल शुरू हो गया है. हसीना पर प्रधानमंत्री रहते हुए पिछले साल हजारों लोगों की हत्या करवाने का आरोप है. इस केस में प्रथम गवाह के रूप में खोकन चंद्र बर्मन को पेश किया गया है. बर्मन की गवाही अगर असरदार रहती है तो हसीना को इस केस में मौत की सजा सुनाई जा सकती है.
प्रथम आलो के मुताबिक रविवार को कोर्ट में खोकन चंद्र बर्मन गवाही देने के लिए उपस्थित हुए, जिसके बाद उन्हें कोर्ट की शुरुआती प्रक्रिया के लिए ले जाया गया. नरसंहार के केस में शेख हसीना, उनके तत्कालीन गृह मंत्री और तत्कालीन पुलिस के आईजी आरोपित हैं.
कौन है खोकन चंद्र बर्मन?
हिंदू आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले खोकन चंद्र बर्मन जुलाई आंदोलन में शामिल थे. इसी दौरान ढाका के जतराबारी पुलिस स्टेशन के पास उसे गोली मार दी गई. गोली सीधे खोकन के चेहरे पर लगी, जिससे उसके चेहरे का हुलिया बिगड़ गया. हालांकि, गोली लगने से खोकन की मौत नहीं हुई.
शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने खोकन को बचाने के लिए जान झोंक दी. खुद स्वास्थ्य सलाहकार खोकन को लेकर रूस गए. वहीं पर खोकन का इलाज कराया गया. खोकन वर्तमान में बांग्लादेश आंदोलन का सबसे जीवित और भुक्तभोगी गवाह है.
खोकन ढाका का रहने वाला है और वर्तमान में नाहिद इस्लाम की पार्टी के साथ जुड़ा है. खोकन को जुलाई आंदोलन में शामिल होने की वजह से सरकार की तरफ से पेंशन भी मिलता है. खोकन के इलाज पर बांग्लादेश की सरकार ने पूरा खर्च किया था. उसकी सुरक्षा भी बांग्लादेश की सरकार कर रही है.
खोकन ने गवाही में क्या कहा है?
स्थानीय मीडिया के मुताबिक खोकन ने अपनी गवाही में बताया है कि कैसे पुलिस मेरे सामने ही लोगों को गोली मार रही थी. खोकन ने जतराबारी पुलिस स्टेशन के पास हुई मौतों का सजीव चित्रण कोर्ट में किया.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त की रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार में करीब 1400 लोग मारे गए थे. इनमें 108 बच्चे थे. 15 हजार से ज्यादा लोग घायल हुए थे. हालांकि, अंतरिम सरकार अभी तक इन आंकड़ों की पुष्टि नहीं कर पाई है.
लंबे समय तक चले आंदोलन की वजह से आखिर में 5 अगस्त 2024 के दिन शेख हसीना को बांग्लादेश की सत्ता छोड़नी पड़ गई.