Ancient Mathematics Vs Vedic Math: प्राचीन गणित और वैदिक मैथ्स में क्या फर्क है?…


UGC के कदम से बच्चों में मैथ्स का डर होगा दूर!Image Credit source: Getty Image
Ancient Mathematics Vs Vedic Math:आधुनिक शिक्षा में गणित यानी Math का प्रभाव किसी से छिपा नहीं है. सांख्यिकी से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तक गणित की बादशाहत दिखाई पड़ती है, लेकिन मौजूद समय में प्रभावी मॉर्डन गणित की जटिलता कई मुश्किलें भी पैदा करती है. इस बीच विकल्प के तौर पर वैदिक गणित को लागू करने की मांग भारत में होती रही है, जिसे देखते हुए देश में वैदिक गणित पर कई पाठ्यक्रम भी शुरू किए गए हैं. वहीं बीते दिनों यूजीसी ने प्राचीन गणित आधारित पाठ्यक्रम लागू करने की घोषणा भी की है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वैदिक गणित और प्राचीन गणित अलग-अलग हैं?
आइए जानते हैं कि क्या वैदिक गणित और प्राचीन गणित अलग-अलग हैं? अगर हैं तो इनमें क्या फर्क है? दोनों गणित की विशेषताएं क्या हैं? साथ ही समझेंगे कि कैसे गणित हमारी जड़ों से जुड़ा हुआ है.
धार्मिक अनुष्ठान से हुई गणित की शुरुआत ?
गणित की जड़ें ‘गण’ धातु से जुड़ी हैं, जिसका अर्थ है गिनना. इसकी शुरुआत धार्मिक अनुष्ठानों से हुई. प्राचीन आर्य, जो बहुत धार्मिक थे, यज्ञों को सही समय, स्थान और दिशा में करना शुभ मानते थे. इन गणनाओं के लिए ही ज्योतिष और गणित का विकास हुआ. यज्ञों के लिए वेदियों को बनाने के लिए ज्यामिति (रेखागणित) का उपयोग होता था. इस तरह, गणित का जन्म धार्मिक जरूरतों को पूरा करने के लिए हुआ और बाद में यह विज्ञान की नींव बन गया .
प्राचीन गणित और वैदिक गणित में अंतर
अक्सर लोग प्राचीन भारतीय गणित और वैदिक गणित को एक ही मान लेते हैं, लेकिन दोनों में कुछ बारीक अंतर हैं.
धर्म और अनुष्ठान से जुड़ा है वैदिक गणित
वैदिक गणित को भारती कृष्ण तीर्थजी ने 1911 से 1918 के बीच खोजा था. इसलिए उन्हें वैदिक गणित का जनक भी कहते हैं. उन्होंने 1957 में लिखी एक किताब में 16 सूत्र (छोटे-छोटे फॉर्मूले) लिखे हैं. वैदिक गणित से मैथ्स के सवाल, मॉडर्न मैथ्स के मुकाबले बहुत जल्दी हल किया जा सकता है. इसे प्रैक्टिस करने से गणित के सवालों में कम गलतियों की गुंजाइश होती है. यह छात्रों की एकाग्रता और सीखने की क्षमता को बढ़ाता है. इससे तार्किक सोच और गणित की समझ बेहतर होती है. हालांकि इसका संबंध भी प्राचीन गणित से ही है, लेकिन ये प्राचीन गणित का एक अंग है.
वैज्ञानिक और व्यावहारिक उपयोग सिखाती है प्राचीन गणित
प्राचीन गणित की बात करें तो ये सिर्फ धार्मिक कार्यों तक सीमित नहीं है. बल्कि इसका उपयोग रोजमर्रा के जीवन और वैज्ञानिक खोजों में भी होने लगा. इसी काल में महान गणितज्ञों ने बीजगणित (अलजेब्रा) और अंकगणित (अरिथमेटिक) को और उन्नत बनाया . आर्यभट्ट (476 ईस्वी) ने ज्योतिषीय गणनाओं के लिए एक सांकेतिक भाषा का विकास किया, जिसमें अक्षरों का उपयोग संख्याओं को दर्शाने के लिए होता था . उन्होंने द्विघात समीकरणों को हल करने की विधि भी बताई, जिससे बीजगणित की नींव पड़ी. इसे प्राचीन गणित कहा जाता है. इसमें काल गणना से लेकर मुहुर्त, नक्षत्र अध्ययन शामिल है.
भारत की सबसे बड़ी देन है शून्य और दशमलव प्रणाली
- भारतीय गणित की सबसे बड़ी उपलब्धि शून्य (Zero) और दशमलव प्रणाली (Decimal System) है. इन दोनों ने मिलकर दुनिया में गणित की तस्वीर बदल दी.
- रोमन जैसी पुरानी प्रणालियों में बड़ी संख्याओं को लिखना बहुत मुश्किल था. लेकिन भारत में 1 से 9 तक के अंकों और शून्य के आविष्कार ने बड़ी से बड़ी संख्या को आसानी से लिखना संभव बना दिया. शून्य की अवधारणा हमारे दार्शनिकों ने ‘ओम’ की आकृति से ली, जो अनंत ब्रह्म की पूर्णता को दर्शाता है.
- शून्य और स्थानीय मान (place value) की इस प्रणाली को अरब के रास्ते पूरी दुनिया में अपनाया गया. अरब के लोग इसे हिन्दसां कहते थे, जिसका मतलब ‘भारत से प्राप्त’ है. फ्रांसीसी गणितज्ञ लैपलेस ने भी इस बात की पुष्टि की है कि भारत ने ही दुनिया को दस चिह्नों से सभी संख्याओं को व्यक्त करने की अद्भुत विधि दी. यह एक ऐसी उपलब्धि थी, जो आर्किमिडीज जैसे महान यूनानी विद्वान भी हासिल नहीं कर पाए थे.
- भारतीय विद्वानों ने अपने ज्ञान को मौखिक परंपराओं के जरिए आगे बढ़ाया, इसलिए कई महान गणितज्ञों और उनके आविष्कारों का लिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है. लेकिन यह निश्चित है कि इन महान संकल्पनाओं का जन्म भारत में हुआ और यहीं से ये इंडोचीन, कंबोडिया, जावा और सुमात्रा जैसे पूर्वी देशों में फैल गईं.
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