Aashram 3 Part 2 Review: च्विंगम सी खिंची बॉबी देओल की सीरीज का रस बने भोपा और… – भारत संपर्क
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आश्रम 3 पार्ट 2 रिव्यू
आपने कभी च्विंगम खाई है… ये भी कैसा सवाल है… खाई ही होगी. च्विंगम के साथ एक दिक्कत है, अगर ज्यादा देर तक जबान पर रखकर चबाते रहो तो इसका रस खत्म होने लगता है. इसलिए कहते हैं कि जब कोई चीज बहुत ज्यादा खिंच जाती है तो उसका स्वाद नीरस हो जाता है. कहानियों के साथ भी यही दिक्कत है. अगर बहुत खिंच जाएं तो सारा मजा खराब होने लगता है. बॉबी देओल की सीरीज ‘आश्रम’ का पहला पार्ट जब आया था तो इसने लोगों को एक ऐसी दुनिया के दर्शन करवाए जो टीवी पर सुनी और अखबारों में पढ़ी तो थी, लेकिन कभी देखी नहीं थी. बाबा निराला के ‘आश्रम’ से ‘स्वर्गलोक’ बनने के इस सफर में लगभग 5 साल बीत गए. दुनिया ने तबाही देखी और वापस पटरी पर भी आ गई, लेकिन प्रकाश झा का ‘आश्रम’ वहीं का वहीं रहा.
सीरीज के पहले दो पार्ट मजेदार थे. एक बाबा, उसके भक्त, उसकी जपनाम वाली दुनिया में एक पहलवान का आना, बाबा का उसपर नजर पड़ना, भक्ति और भरोसे का ताना बाना बुनना और पहलवान पम्मी को अपने मायाजाल में फंसाकर बाबा का उसका फायदा उठाना. बात यहां तक भी ठीक थी कि पम्मी को बाबा के इस वहशीपन का पता लगता है और वो उसके जाल से निकलकर भाग जाती है. अब पम्मी का एक ही लक्ष्य है… बदला. लेकिन फिर कहानी कहां भटक जाती है…? इस सवाल के जवाब में सीरीज का फिनाले आ गया लेकिन अबतक ये बात ना मेकर्स समझा पाए ना दर्शक समझ पाए.
कहानी वहीं से शुरू होती है जहां इसे छोड़ा था
सीधी-सीधी बात करते हैं… Aashram के तीसरे सीजन का पार्ट टू कल यानी 26 फरवरी की रात 10 बजे Amazon MX Player पर रिलीज किया गया. सीरीज के इस पार्ट में खाली 5 एपिसोड हैं. ये देखकर हम काफी खुश हो गए कि चलो छोटी सीरीज है, हालांकि, इस बात का पता हमें बाद में चला कि सीरीज में आगे दिखाने के लिए कुछ बचा ही नहीं था इसलिए मेकर्स ने इसे शॉर्ट में निपटा दिया. खैर… तो कहानी वहीं से शुरू होती है जहां इसे छोड़ा गया था. अब अगर आपको याद नहीं है कि कहां से सिरा निकला था तो मेकर्स ने सीरीज के तीसरे सीजन के पहले पार्ट की तरह ही यहां भी एक रीकैप दिया है.
पम्मी (Aditi Pohankar) जेल में है. उसपर बाबा को झूठे केस में फंसाने और अपने भाई और पिता की हत्या करने का आरोप लगा है. बाबा निराला अपने स्वर्ग लोक की कल्पना में दिन रात बिता रहा है. उसके साथ सब सही है लेकिन पम्मी का मोह उसे जीने नहीं दे रहा. पम्मी की मां की मौत उसकी आखिरी उम्मीद भी तोड़ देती है और वो ठानती है कि अब वो बाबा के इस लोक का सर्वनाश करके ही दम लेगी. वो बाबा के आगे नतमस्तक हो जाती है और बाबा निराला (Bobby Deol) उसको ऐसे गले लगाते हैं जैसे इसी दिन के लिए उन्होंने धरती पर जन्म लिया था. बाबा निराला की ये दुनिया जब से गढ़ी गई इसमें एक ही किरदार था जिसकी आंखों के आगे कोई पर्दा नहीं था और वो था बाबा का परम दोस्त भोपा स्वामी (Chandan Roy Sanyal), लेकिन इस सीजन में इनका भी बंटा धार हो गया.
बाबा पर भारी पड़ गए भोपा स्वामी
बाबा पम्मी को वापस आश्रम लेकर आते हैं और इस बात से भोपा हैरान रह जाता है. भोपा, बाबा से कहता है कि वो लड़की ‘भस्मासुर’ है. जिस दिन उसने पम्मी को हाथ लगाया उसी दिन आश्रम खत्म हो जाएगा. कमाल की बात है कि ये डायलॉग पूरे पांच एपिसोड का सार है. ये सीरीज शुरू से ही बॉबी देओल की रही है, लेकिन इस बार चंदन रॉय यानी भोपा ने पूरी लाइमलाइट चुरा ली है. भोपा पम्मी को बाबा से दूर रखने की कोशिश में कब खुद पम्मी के करीब आ जाता है उसे पता नहीं चलता. ये मिलन तन का तो होता ही है लेकिन मन में भी भोपा पम्मी से एक अलग ही रिश्ता जोड़ बैठता है. पम्मी और भोपा की ये केमेस्ट्री देख आप हैरान रह जाएंगे. दोनों के बीच के सीन्स आपको भटकाने के लिए काफी हैं. लेकिन समस्या वही है कि ये कहानी को भी भटका देते हैं.
भोपा बहुत समझदार किरदार है, ऐसे में भोपा का पम्मी के करीब आ जाना और फिर कुछ ऐसा कर जाना जिसकी उम्मीद उसके जैसे किरदार से कभी नहीं लगाई जा सकती थी… ये एक अजीब बात लगती है. कहानी इसी सीजन में खत्म हो जाती है ये एक अच्छी बात है, लेकिन वजह इसकी ये है कि कहानी में आगे दिखाने के लिए कुछ बचता ही नहीं. भोपा जिस पम्मी के लिए बाबा को खबरदार करता है उसी के लिए हर हद पार करने के लिए तैयार हो जाता है वो भी तब जब वो जानता है कि ये एक ट्रैप है. बात करें पम्मी की तो एक्टिंग में अदिती का जवाब नहीं है, वो शानदार हैं लेकिन जिस तरह उनका किरदार इस सीजन में चीजें करता है वो बहुत बचकानी लगती हैं. पम्मी की पूरी लड़ाई जिस बात से शुरू हुई थी अब उसे वही करने में कोई दिक्कत नहीं… वो भी एक नहीं कई-कई बार.
सौ-दौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली
सबसे ज्यादा मूर्ख किरदार है बाबा निराला का, जिसे धोखा देने वाली एक लड़की का ऐसा मोह है कि उसे कुछ दिखाई ही नहीं देता. कुल मिलाकर कहें तो सीरीज में जितनी शानदार तरीके से कहानी को पहले सीजन में बुना गया था उसे इस सीजन में निहायत बेवकूफी भरा बना दिया जाता है. किरदारों के केरेक्टर आर्क ही बदलकर ऐसा बना दिए गए हैं कि आप जिससे नफरत करते थे उसेसे आपको हमदर्दी हो जाती है.
प्रकाश झा पॉलिटिकल कहानियों को पर्दे पर दिखाना जानते हैं, हैरानी होती है ये देखकर कि आखिर पॉलिटिक्स की नब्स पहचानने वाले प्रकाश इस सीरीज में क्यों चूंक जाते हैं? उन्होंने इस सीजन में कहानी की सिरा ही बदल दिया है. सीरीज में मोंटी और भुपेंदर के बाबा निराला और भोपा स्वामी बनने के सफर को भी दिखाया गया है. हैरानी तभी होती है जब ऐसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने के बाद भी आपको एक किरदार से हमदर्दी जताने के लिए मजबूर किया जाता है कि आखिरी में जब उस किरदार के साथ कुछ अच्छा होता है तो आपको लगता है कि ये कैसा मजाक था, ये तो वही बात हो गई कि सौ-दौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली.
देखें या नहीं?
सीरीज अच्छी थी इसमें कोई दो राय नहीं. एक्टिंग, डायरेक्शन सब सही है, लेकिन इस बार सीरीज का फिनाले कुछ ऐसा है कि आपके दिल में दर्द होने लग जाएगा कि कहां कि कहानी कहां आकर खत्म हुई है. सीरीज वन टाइम वॉच है. बॉबी से ज्यादा अदिती और चंदन की केमेस्ट्री के लिए सीरीज देखी जा सकती है, हां ज्यादा उम्मीदें पालकर मत देखिएगा, क्योंकि इस बार प्रकाश झा और बाबा निराला के आश्रम से आपको खाली हाथ ही लौटना पड़ेगा.