अकबर की मां हमीदा बानू भी पढ़ती थी रामायण, दोहा के म्यूजियम में पिछले 24 साल से है… – भारत संपर्क

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अकबर की मां हमीदा बानू भी पढ़ती थी रामायण, दोहा के म्यूजियम में पिछले 24 साल से है… – भारत संपर्क
अकबर की मां हमीदा बानू भी पढ़ती थी रामायण, दोहा के म्यूजियम में पिछले 24 साल से है मौजूद

दोहा म्यूज़ियम

रामायण एक एक ग्रंथ के तौर पर सिर्फ हिन्दू धर्म का प्रिय महाकाव्य नहीं है. बल्कि इसे कई और धार्मिक संस्कृतियों और भाषाओं में अहमियत दी गई है. जिसे पढ़ना कईयों को पसंद है और कुछ के लिए प्रेरणा का स्त्रोत भी बना. मूल संस्कृत से फ़ारसी तक में इसका अनुवाद हुआ. कई खूबसूरत चित्रों की मदद से लिखा गया. पर आपको पता है कभी मुगल दरबार की शाही सदस्य और सम्राट अकबर की मां हमीदा बानू बेगम के पास भी रामायण का अपना एक हस्तलिखित ग्रंथ था. इसकी कॉपी कतर की राजधानी दोहा के इस्लामिक कला संग्रहालय में रखी हुई है.

यह भव्य हस्तलिपी रामायण का फ़ारसी संस्करण है जिसे 1594 में बनाया गया था. यह मध्य युग भारत की समृद्ध सांस्कृतिक मुठभेड़ों की गवाही देती है. अकबर के आदेश पर वाल्मिकी रामायण का फ़ारसी में अनुवाद किया गया था. अकबर की अपनी डीलक्स कॉपी को जयपुर मैन्यूस्क्रिप्ट के नाम से जाना जाता है. इसे देख उनके कई दरबारियों ने भी अपनी खुद की प्रतियां बनाईं.

कौन है हमीदा बानू

हमीदा बानो प्रसिद्ध मुगल सम्राट हुमायुं की दूसरी बेगम और तीसरे मुगल सम्राट अकबर की मां थी. उन्हें अकबर की तरफ से मरणोपरांत मरियम मकानी का सम्मान दिया गया था. उनकी रामायण की प्रति मूल रूप से 56 बड़े चित्रों के साथ 450 पन्नों से बनी थी. यह किताब नाजुक सोने की आकृतियों और फूलों के साथ खुलती है. अध्याय और दोहे संस्कृत शब्दों गाथा और श्लोक के साथ रखे गए हैं. उनमें से अधिकांश का समापन ‘और भगवान ही सबसे अच्छा जानता है’ के साथ होता. माना जाता है कि इसे लाहौर में कलाकारों के एक छोटे समूह ने मिलकर बनाया था.

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दोहा पहुंचने से पहले कई हाथों से गुजरी

1604 में हमीदा बानो एस्टेट ने इसे केंद्रीय मुगल पुस्तकालय में ट्रांसफक कर दिया और फिर यह मालिक से मालिक के पास चलता गया. इस दौरान पानी और कीड़ों से भी इसका सामना हुआ जिसकी वजह से बाहरी किनारे इसके फट गए और कुछ पन्ने भी गायब हो गए. फिर जाकर 2000 में कतरी शाही शेख सउद अल थानी के पास पहुंची. उन्होंने इसमें से गायब हो चुके अधिकांश चित्रों को नए सिरे से बनाया और इसमें शामिल किया. 1990 के दशक तक लगभग इस रामायण के बारे में किसी को जानकारी नहीं थी. दोहा रामायण 16वीं सदी की उत्तर भारत की भाषा की झलक भी हमें भी देता है. इससे पता चलता है कि कैसे मुगलों को रामायण में दिलचस्पी थी.

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