Aligarh Lok Sabha Seat: क्या अलीगढ़ लोकसभा सीट पर बदलेगा चुनाव परिणाम, या B… – भारत संपर्क
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और शिक्षा के केंद्र के रूप में दुनियाभर में मशहूर अलीगढ़ उत्तर प्रदेश का एक चर्चित जिला है. यह शहर अपनी प्राचीन विरासत के लिए भी जाना जाता है. भले ही इस क्षेत्र को मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र माना जाता हो, लेकिन 1957 के बाद से आज तक यहां से एक भी मुस्लिम उम्मीदवार विजयी नहीं हुआ है. फिलहाल अलीगढ़ संसदीय सीट पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है. साल 2024 के चुनाव में बीजेपी की नजर यहां पर चुनावी जीत की हैट्रिक लगाने पर होगी.
18वीं सदी से पहले अलीगढ़ को कोल या कोइल के नाम से जाना जाता था. प्राचीन ग्रंथों में, कोल को एक जनजाति या जाति, किसी स्थान या पर्वत का नाम या फिर ऋषि या राक्षस का नाम माना जाता है. जिले का शुरुआती इतिहास अस्पष्ट है. बताया जाता है कि 18वीं सदी में शिया कमांडर नजाफ खान ने कोल क्षेत्र पर कब्जा जमा लिया, और इसे अलीगढ़ का वर्तमान नाम दिया. यहां के मशहूर अलीगढ़ किले को फ्रांसीसी इंजीनियरों द्वारा बनाया गया था. अलीगढ़ जिले के तहत 7 विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें खैर, बरौली, अतरौली, छर्रा, कोल, अलीगढ़ और इग्लास शामिल हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में सभी सातों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है.
पिछले चुनाव में क्या रहा था परिणाम
2019 के चुनाव में अलीगढ़ संसदीय सीट को देखें तो यहां पर भारतीय जनता पार्टी के सतीश कुमार गौतम ने बाजी मारी थी. चुनाव में 14 उम्मीदवार मैदान में थे. लेकिन बीजेपी और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार के बीच कड़ा मुकाबला था. चुनाव में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन था और यह सीट बहुजन समाज पार्टी के खाते में आई थी. लेकिन बीजेपी के सतीश कुमार गौतम ने 656,215 वोट हासिल कर बीएसपी के डॉक्टर अजित बालियान को हरा दिया. अजित को 426,954 वोट मिले थे. गौतम ने यह चुनाव 229,261 मतों के अंतर से जीता था.
चुनाव में कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह चौधरी तीसरे स्थान पर रहे थे और उन्हें 50,880 वोट मिले. अलीगढ़ सीट पर तब के चुनाव में कुल वोटर्स की संख्या 18,47,005 थी जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 9,91,883 थी वहीं महिला वोटर्स की संख्या 8,54,984 थी. इसमें से 11,63,184 (63.3%) वोटर्स ने वोट डाले. नोटा के पक्ष में 6,268 (0.3%) वोट डाले गए. वोट पाने के हिसाब से नोटा चौथे स्थान पर रहा था.
संसदीय इतिहासः 1991 के बाद से BJP का गढ़
अलीगढ़ संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास को देखें तो मुस्लिम क्षेत्र वाले इस सीट पर अब तक एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को जीत नहीं मिल सकी है. बड़ी बात यह है कि 1991 के बाद से अब तक हुए 8 चुनाव में 6 बार बीजेपी को जीत मिल चुकी है. अलीगढ़ सीट पर 1952 और 1957 के चुनाव में कांग्रेस को बड़े अंतर से जीत मिली थी. तब यहां 2-2 सांसदों के लिए चुनाव हुआ करते थे. लेकिन इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को लगातार 5 बार हार ही मिलती चली गई.
1962 से लेकर के 1980 तक हुए चुनाव कांग्रेस को हार मिलती रही. 1962 में आरपीआई ने चुनाव जीता तो 1967 और 1971 में भारतीय क्रांति दल के खाते में जीत गई. फिर 1977 और 1980 के चुनाव में जनता दल ने जीत हासिल की. लेकिन 1984 के चुनाव में कांग्रेस को सहानुभूति लहर का फायदा मिला और अलीगढ़ में भी जीत के साथ वापसी की. फिर 1989 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर सत्यपाल मलिक ने जीत हासिल की.
इसके बाद देश में राम मंदिर को लेकर आंदोलन चला और बीजेपी के रूप में नए दावेदार का उद्भव हुआ. 1991 के चुनाव से यह सीट बीजेपी के लिए गढ़ बन गई. शीला गौतम ने 1991 के बाद 1996, 1998 और 1999 में लगातार 4 चुनाव में जीत हासिल की और बीजेपी का कब्जा बनाए रखा. 2004 में बीजेपी को हार मिली और कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह चुनाव जीत गए. 2009 में बहुजन समाज पार्टी के राज कुमार चौहान यहां से सांसद चुने गए. फिर 2014 में मोदी लहर में अलीगढ़ सीट भी बीजेपी के कब्जे में आ गई. सतीश कुमार गौतम बीजेपी के टिकट पर चुने गए. उन्होंने बीएसपी के अरविंद कुमार सिंह को 2,86,736 मतों के अंतर से हराया था. 2019 के चुनाव में भी सतीश कुमार गौतम बड़े अंतर से चुनाव जीतने में कामयाब रहे, लेकिन 2014 की तुलना में हार-जीत का अंतर कम हो गया था.
यहां काम नहीं आते जातिगत समीकरण
अलीगढ़ कल्याण सिंह की धरती की वजह से जानी जाती है. बुद्धिजीवियों की इस धरती पर ब्राह्मण के साथ ही राजपूत वोटर्स की भी अच्छी खासी संख्या है. हालांकि यहां पर जातिगत समीकरण ज्यादा काम नहीं करते हैं. ब्राह्मण चेहरे सतीश गौतम को 2019 के चुनाव में 50 फीसदी से भी अधिक वोट मिले थे. सतीश गौतम को 2014 में मिले 48 फीसदी वोट की तुलना में 56 फीसदी वोट आए थे.
जिले में 2019 के चुनाव के समय करीब 20 फीसदी मुस्लिम आबादी थी, और करीब 80 फीसदी वोटर्स हिंदू थे. तब यहां मुसलमानों की संख्या करीब 4.5 लाख थी. जबकि लोध वोटर्स की संख्या करीब 2.5 लाख रही थी. जाट वोटर्स भी यहां मजबूत स्थिति में हैं.