सारे दुर्गा उत्सव एक तरफ और बंगाली स्कूल का दुर्गा उत्सव एक…- भारत संपर्क

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सारे दुर्गा उत्सव एक तरफ और बंगाली स्कूल का दुर्गा उत्सव एक…- भारत संपर्क

दुर्गा पूजा बिलासपुर का सबसे बड़ा सार्वजनिक उत्सव

बिलासपुर छत्तीसगढ़ का दूसरा बड़ा शहर है और इसे अपने स्थानीय संस्कृति पर गर्व है, जिसके बावजूद यहां दुर्गा पूजा सबसे बड़ा सार्वजनिक उत्सव है । व्यक्तिगत उत्सवों की बात करें तो जो स्थान दीपावली और होली को है, उससे भी बड़ा पर्व बिलासपुर में दुर्गा उत्सव है, जहां प्रांत, भाषा का भेद मिट जाता है और छत्तीसगढ़ का हर बाशिंदा स्वस्फूर्त दुर्गा पूजा में बने भव्य पंडालों में देवी मां के दर्शन करने सड़को पर उमड़ आता है। इन चार दिनों में बिलासपुर की सड़के आम लोगों की भीड़ से गुलजार होती है। सड़क पर लोग चलते नहीं रेंगते हैं । ऐसा नजारा बंगाल में तो आम है लेकिन बंगाल से सैकड़ो किलोमीटर दूर बिलासपुर में भी वैसा ही भाव हो तो यह अचरज में डालता है। बिलासपुर में ऐसे तो सभी क्षेत्रों में दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है लेकिन जो बात बंगाली स्कूल के दुर्गा पूजा में है वह बात कहीं नहीं। पुराने लोग जो शहर छोड़ गए, उन्हें आज भी बंगाली स्कूल में आयोजित दुर्गा पूजा शहर खींच लाती है

चुचुहिया पारा से हुई थी शुरुआत, तब ट्रेन से आई थी देवी प्रतिमा

बंगाल में दुर्गा पूजा की भव्य परंपरा रही है। रेलवे की स्थापना के साथ बड़ी संख्या में बंगाली समाज के लोग बिलासपुर पहुंचे, जिन्होंने बिलासपुर में भी दुर्गा पूजा की शुरुआत की। उन दिनों प्रतिमा बंगाल से ट्रेन के माध्यम से लाई जाती थी। सबसे पहले बंगाली समिति द्वारा 1924 में चुचुहिया पारा में दुर्गा पूजा की शुरुआत की गई। यह वही जगह है जहां अब भी शीतला पूजा आयोजित होती है। खास बात यह है कि अविभाजित मध्य प्रदेश का यह सबसे प्रथम दुर्गा उत्सव था। दूसरा दुर्गा पूजा 1925 में जबलपुर में शुरू किया गया। बिलासपुर में सर्वप्रथम दुर्गा पूजा की शुरुआत डॉक्टर पी आर बनर्जी ने दयालबंद क्षेत्र में की। उस दौरान दुर्गा मां की प्रतिमा बंगाल से ही मंगाई जाती थी। बाद में बंगाल के कारीगर बिलासपुर आकर प्रतिमा बनाने लगे। चुचुहिया पारा से शुरुआत होने के बाद में समिति को बंगाली स्कूल में दुर्गा पूजा आयोजित करने का अधिकार मिला।

101 साल पुरानी है परंपरा, जहां बंगालियों का आज भी जमता है अड्डा

आयोजन के 100 साल पूरे हो चुके हैं। बेंगोली एसोसिएशन के आयोजन का यह 101वा वर्ष है। यहां की स्थल सजावट , झांकी या मूर्ति की बनावट भले ही खास ना हो लेकिन सबसे पुरानी पूजा होने से इसका आकर्षण ही अलग है। यहां पूरी तरह बंगाल की परंपराओं का पालन कर देवी की आराधना की जाती है। हर दिन सुबह और शाम बंगाली भद्र लोक नए परिधानों में सज धज कर पंडाल पहुंचते हैं, जहां माता के आशीर्वाद और पुष्पांजलि के बाद अड्डा जमता है। इसका रस ऐसा कि बिलासपुर छोड़ चुके लोग भी केवल बंगाली स्कूल के दुर्गा पूजा में शामिल होने के लिए यहां पहुंच जाते हैं। इस वर्ष सभी 7 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक भव्य रूप से बंगाली परंपराओं के साथ दुर्गा पूजा मनाने की तैयारी है।

दुर्गा पूजा पर लगता है मेला और मीना बाजार

बांग्ला स्कूल के दुर्गा पूजा के अवसर पर मिलने वाला मां का भोग आकर्षण का केंद्र होता है, जो 56 भोग से भी सुस्वादिष्ट होता है। इस अवसर पर यहां लगने वाला मेला भी आकर्षण का बड़ा केंद्र है। बताते हैं कि शुरुआती दिनों में बंगाली समाज की महिलाएं ही तरह-तरह के व्यंजन बनाकर यहां स्टॉल लगाया करती थी, जिसने धीरे-धीरे एक बृहद मेले का स्वरूप ले लिया। जिसमें झूले से लेकर खाने पीने के स्टाल, क्रोकरी से लेकर खिलौने, कपड़े और न जाने क्या-क्या बिकते हैं । यहां काली मंदिर के पास मैदान में मीना बाजार भी लगता है, जिसकी तैयारी भी चल रही है

बोधन के साथ होगा दुर्गा उत्सव आरंभ

बिलासपुर में ऐसे तो छोटे-बड़े सैकड़ो आयोजन होते हैं लेकिन अगर बंगाल के पारंपरिक दुर्गा पूजा उत्सव को आप देखना चाहते हैं तो फिर आपको बिलासपुर के बंगाली समिति के आयोजन में शामिल होना पड़ेगा। यहां का बोधन कार्यक्रम भी विशेष होता है ।इस बार इस कार्यक्रम में रेलवे के डीआरएम और सीएमएम भी शामिल होंगे। इन दिनों पंडाल सज्जा अंतिम दौर में है। मेले के लिए दुकानें लगने लगी है। पास में ही रामलीला का आयोजन हो रहा है। यह पूरा क्षेत्र किसी तीर्थ स्थल और पर्यटन स्थल की तरह जगमगाने को पूरी तरह तैयार है।

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