श्री पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर में आषाढ़ गुप्त नवरात्र…- भारत संपर्क



छत्तीसगढ़ बिलासपुर सरकण्डा स्थित श्री पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर में आषाढ़ गुप्त नवरात्र उत्सव हर्षोल्लास के साथ धूमधाम से मनाया जा रहा है। पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने बताया कि त्रिदेव मंदिर में नवरात्र के छठवे दिन प्रातःकालीन श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का विशेष पूजन श्रृंगार छिन्नमस्ता देवी के रूप में किया जाएगा।श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महारुद्राभिषेक, महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवी का षोडश मंत्र द्वारा दूधधारिया पूर्वक अभिषेक किया गया।परमब्रह्म मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी का पूजन एवं श्रृंगार किया गया।प्रतिदिन मध्यान्ह कालीन पीताम्बरा हवनात्मक महायज्ञ मे श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी मंत्र के द्वारा आहुतियाँ दी जा रही है।
पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने बताया कि छिन्नमस्ता दस महाविद्या देवियों में से छठी देवी हैं। इनके एक हाथ में स्वयं का ही कटा हुआ सिर रखा होता है।माता छिन्नमस्ता काली का एक बहुत ही विकराल स्वरूप हैं। हालांकि, इन्हें जीवनदायिनी माना जाता है।छिन्नमस्ता देवी अपने मस्तक को अपने ही हाथों से काट कर, अपने हाथों में धारण करती हैं। मार्कण्डेय पुराण और शिव पुराण के अनुसार, जब देवी ने चण्डी का रूप धरकर राक्षसों का संहार किया था, तो चारों ओर उनका जय घोष होने लगा। परन्तु देवी की सहायक योगिनियाँ जया और विजया की खून की प्यास शान्त नहीं हो पाई थी। इस पर उनकी रक्त पिपासा को शान्त करने के लिए माँ ने अपना मस्तक काटकर अपने रक्त से उनकी रक्त प्यास बुझाई। इस कारण माता को छिन्नमस्तिका नाम से पुकारा जाने लगा। छिन्नमस्तिका देवी को तन्त्र शास्त्र में प्रचण्ड चण्डिका और चिन्तापूर्णी माता जी भी कहा जाता है।
एक बार मां पार्वती अपनी दो सहचरियों के साथ भ्रमण पर निकलीं,इस दौरान माता पार्वती की रास्ते में मंदाकिनी नदी में स्नान करने की इच्छा हुई, मां पार्वती ने अपनी सहचारियों से भी स्नान करने को कहा, परंतु दोनों ने स्नान करने से इनकार कर दिया और कहा कि उनको भूख लग रही है,इस पर माता पार्वती ने उनको कुछ देर आराम करने को कहा और स्नान करने चली गईं।मां काफी देर तक स्नान करती रहीं, इसी बीच दोनों सहचरी कहती रही कि उनको भूख लग रही है. लेकिन माता ने दोनों की बात को अनसुना कर दिया,इस पर दोनों सहचरियों ने माता से कहा कि मां तो अपने शिशु का पेट भरने के लिए अपना रक्त तक पिला देती है,परंतु आप हमारी भूख के लिए कुछ भी नहीं कर रही हैं. यह बात सुनकर मां पार्वती को क्रोध आ जाता है और नदी से बाहर आकर खड्ग का आह्वान करके अपने सिर को काट देती हैं, जिससे उनके धड़ से रक्त की तीन धाराएं निकलती हैं दो धाराएं दोनों सहचरियों के मुंह में गिरती हैं,तीसरी धारा मां के स्वयं के मुख में गिरती है, इससे सभी देवताओं के बीच कोहराम मच जाता है।जिसके बाद भगवान शिव कबंध का रूप धारण कर देवी के प्रचंड रूप को शांत करते हैं। तब से मां पार्वती के इस रूप को छिन्नमस्ता माता कहा जाने लगा।
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