शहडोल लोकसभा सीट: 1996 में बीजेपी ने जमाए कदम, दिनों दिन मजबूत हो रही पार्ट… – भारत संपर्क

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शहडोल लोकसभा सीट: 1996 में बीजेपी ने जमाए कदम, दिनों दिन मजबूत हो रही पार्ट… – भारत संपर्क

नर्मदा की सुंदर किनारों पर बसा शहडोल कई मामलों में बेहद खास है. नर्मदा परिक्रमा की बात हो या आदिवासियों के उत्थान की बात सबसे पहले इसी संसदीय क्षेत्र का नाम सामने आता है. शहडोल लोकसभा सीट को उमरिया, अनूपपुर जिले को मिलाकर बनाया गया है. जिसमें कुछ हिस्से शहडोल और विदिशा जिले के भी आते हैं. इस क्षेत्र में सोन नदी और जुहिला नदी का संगम भी है जो कि बेहद खूबसूरत है. सोन नदी पर यहां बाणसागर बांध बनाया गया है. यह पर्यटकों को खुद ही अपनी ओर खींच लेता है. पूरे देश में टाइगर्स के लिए प्रसिद्ध बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व भी इसी संसदीय क्षेत्र में आता है.
मध्य प्रदेश के लिए जीवनदायिनी नर्मदा का उद्गम भी इसी क्षेत्र के अमरकंटक से हुआ है. यहां पर उन श्रद्धालुओं की आवाजाही भी खूब होती है जो कि नर्मदा परिक्रमा करते हैं. मध्य प्रदेश के रहवासियों में नर्मदा परिक्रमा की बहुत मान्यता है. यहां पर कई अतिप्रचीन शिव मंदिर और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर बने हुए हैं जो कि लोगों की आस्था के केंद्र हैं और दूर-दूर से लोग इनके दर्शन करने के लिए आते हैं. हिंदू मंदिरों के अलावा यह क्षेत्र जैन धर्मावलंबियों के लिए भी आस्था का केंद्र है. यहां पर हर साल हजारों की संख्या में जैन श्रद्धालु आते हैं. यहां पर कई प्रचीन जैन मंदिर मौजूद हैं.
झाबुआ के बाद पूरे मध्य प्रदेश में इसी क्षेत्र में सबसे ज्यादा आदिवासी रहते हैं. यहां पर रहने वाले आदिवासियों का जीवन-यापन खेती बाड़ी और पशु पालन ही है. यहां पर जंगलों के बीच में खेत बने हुए हैं जहां आए दिन जंगली जानवरों की हलचल की घटनाएं सामने आती रहती हैं. यहां के खेतों में तेंदुए, बाघ और अन्य खूंखार जानवर अक्सर देखे जाते हैं. धार्मिक स्थल की बात की जाए तो यहां पर अंतरा गांव में स्थित मां कंकाली का मंदिर है जो कि स्थानीय लोगों में विशेष आस्था का केंद्र है. वहीं सुहागपुर में बना भगवान शिव को समर्पित विराटेश्वर मंदिर भी अतिप्रचीन और सिद्ध है.
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राजनीतिक ताना-बाना
मध्य प्रदेश के शहडोल लोकसभा सीट को भी आठ विधानसभाओं से मिलकर बनाया गया है, जिसमें जयसिंह नगर, जैतपुर, कोटमा, अनूपपुर, पुष्पराजगढ़, बांधवगढ़, मानपुर, बडवारा शामिल है. इनमें से सिर्फ पुष्पराज गढ़ को छोड़कर सभी में बीजेपी ने अपना कब्जा जमाया हुआ है. कोटमा को छोड़कर सभी विधानसभाएं आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. यहां पर अगर चुनावी इतिहास की बात की जाए तो यहां पर किसी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं रहा है. हालांकि 1996 के बाद से यहां पर बीजेपी ने अपने पैर जमाए और उसे लगातार मजबूत किया. 2009 में कांग्रेस ने बीजेपी से यह सीट वापस छीन ली थी लेकिन, 2014 में बीजेपी ने इस फिर अपने नाम कर लिया. इसके बाद एक उपचुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां पर बीजेपी का बोलबाला ही रहा है.
पिछले चुनाव में क्या रहा?
2019 लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो यहां से बीजेपी ने हिमाद्री सिंह को टिकट दिया था, वहीं कांग्रेस ने प्रमिला सिंह को उनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में मैदान में उतारा था. चुनाव में सीपीआई और बीएसपी ने भी अपने-अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. इस चुनाव में करीब 12 लाख वोटर्स ने मतदान किया था. जिसमें से बीजेपी की हिमाद्री सिंह को 7.47 लाख वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस की प्रमिला को 3.44 लाख वोटों से ही संतोष करना पड़ा था. वहीं सीपीआई को करीब 33 हजार और बीएसपी को करीब 20 हजार वोट्स मिले थे. इस चुनाव में यहां पर नोटा को भी करीब 20 हजार लोगों ने चुना था.

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