अमेरिकन नहीं…इंडियन हैं Bose Speakers, क्यों फाउंडर ने अपने कॉलेज को डोनेट कर… – भारत संपर्क

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अमेरिकन नहीं…इंडियन हैं Bose Speakers, क्यों फाउंडर ने अपने कॉलेज को डोनेट कर… – भारत संपर्क
अमेरिकन नहीं...इंडियन हैं Bose Speakers, क्यों फाउंडर ने अपने कॉलेज को डोनेट कर दी कंपनी?

Bose Corporation के फाउंडर अमर बोस

सोचो आप लॉन्ग ड्राइव पर हों और गाड़ी में बूफर ना बजे. आप बस या ट्रेन से सफर कर रहे हों और आपके पास ईयरबड्स या हेडफोन ना हों. ऐसा सोचना भी आपके लिए आज की तारीख में मुश्किल है. ऑडियो सुनने के लिए आज हमारे पास ब्लूटूथ स्पीकर्स से लेकर ईयरबड्स और हेडफोन जैसे कई ऑप्शन मौजूद हैं. इसी तरह के स्पीकर्स और हेडफोन बनाने वाली कंपनी बोस कॉरपोरेशन के बारे में भी आपने सुना होगा, क्या आपको इसका इंडिया से कनेक्शन पता है? क्यों इसके फाउंडर ने अपनी कंपनी अपने कॉलेज को डोनेट कर दी?

Bose का इंडिया कनेक्शन

Bose Speakers बनाने वाली कंपनी बोस कॉरपोरेशन की शुरुआत 1964 में हुई. कंपनी ने 1966 में अपने पहले स्पीकर्स बाजार में उतारे और अपने इनोवेशन के दम पर आते ही बाजार में तहलका मचा दिया. लेकिन इतने अनोखे स्पीकर बनाने की असली शुरुआत 1956 में हुई, जब बोस कॉरपोरेशन के फाउंडर अमर बोस की PhD डिग्री कंप्लीट हुई. उन्होंने जश्न मनाने के लिए एक महंगा सा स्टीरियो सिस्टम खरीदा, लेकिन साउंड क्वालिटी ने उनका मन खट्टा कर दिया.

दरअसल अमर बोस ऐसा साउंड सिस्टम चाहते थे, जो कॉन्सर्ट हॉल के जादू को घर ले आए. इसलिए वह अपने कॉलेज मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में खाली टाइम में एकोस्टिक पर रिसर्च करने लगे. यही 1966 में उनके पहले स्पीकर को लॉन्च करने की वजह बनी.

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अमर बोस के पिता नैनी गोपाल बोस भारतीय थे. बंगाली परिवार से आने वाले अमर बोस की मां अमेरिकी थी. उनके सरनेम के नाम पर ही कंपनी का नाम बोस कॉरपोरेशन पड़ा. आज दुनिया जिस स्पीकर ब्रांड नाम की दीवानी है, वो असल में एक भारतीय बंगाली परिवार का सरनेम हैं.

क्या खास था बोस के स्पीकर में?

ये बात जानना और भी दिलचस्प है कि बोस के स्पीकर में ऐसा क्या खास था, जिसने मार्केट में आते ही तबाही मचा दी. अमर बोस स्पीकर बनाने से पहले अमेरिकी सेना और सरकारी एजेंसियो के लिए पावर रेग्युलेटर्स बनाते थे. लेकिन एकोस्टिक को लेकर उनका पैशन उन्हें स्पीकर डिजाइन तक ले आया. उन्होंने कॉन्सर्ट हॉल के कई स्पीकर्स को एक जगह सिंक करके साउंड सुनाने वाली टेक्नोलॉजी को ही अपने स्पीकर में उतारा. इसलिए उनकी कंपनी ने जब 1966 में अपना पहला स्पीकर Bose 2201 लॉन्च किया, तो उसमें एक ही स्पीकर में 22 अलग-अलग स्पीकर्स थे.

आज हम और आप जिस नॉइस कैंसलिंग टेक्नोलॉजी का इतना नाम सुनते हैं. उस टेक्नोलॉजी का इनोवेशन भी बोस कॉरपोरेशन को ही जाता है. ये टेक्नोलॉजी हवाई जहाज पायलटों के लिए तैयार की गई थी. 1986 में डिक रुटन और जेना येगर नाम के दो पायलट एक नॉन-स्टॉप अराउंड द वर्ल्ड फ्लाइट पर निकले, तब उन्होंने बोस के इसी टेक्नोलॉजी से बने हेडफोन का इस्तेमाल किया. इन डिवाइसेस ने उन दोनों पायलट की सुनने की क्षमता को बचाए रखा.

क्यों MIT को डोनेट कर दी कंपनी?

अमर बोस ने 2013 में अपने निधन से करीब 2 साल पहले यानी 2011 में अपनी कंपनी के मेजरॉटी नॉन-वोटिंग शेयर अपने कॉलेज एमआईटी को डोनेट कर दिए. इसके पीछे मकसद था कि कंपनी के इन शेयर्स पर जो भी डिविडेंड आएगा, उससे एमआईटी एजुकेशन और रिसर्च मिशन पर काम करेगा. बोस परविार की फेलोशिप का खर्च भी इसी से निकलेगा.

इसके लिए एक शर्त रखी गई कि एमआईटी बोस कॉरपोरेशन के इन शेयर्स को बेच नहीं सकेगा. वह कंपनी के मैनेजमेंट में और ऑपरेशन में कोई दखल नहीं देगा. डॉक्टर अमर बोस के इस कदम के बाद आज बोस कॉरपोरेशन में सबसे बड़ा शेयर होल्डर एमआईटी है.

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