*Breaking jashpur:-राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र पहाड़ी कोरवाओं के नाम पर सड़कों…- भारत संपर्क

जशपुरनगर:-छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में विशेष पिछड़ी जनजाति पहाड़ी कोरवाओं के नाम पर चलाई जा रही पीएम जनमन योजना में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का आरोप सामने आया है। करोड़ों रुपये की लागत से बनीं सड़कें निर्माण के कुछ ही महीनों के भीतर टूटने और उखड़ने लगी हैं, जिससे स्थानीय ग्रामीणों में भारी नाराजगी है।
यह गंभीर सवाल उठाता है कि क्या वाकई ये योजनाएं जनजातीय समुदाय के विकास के लिए हैं या फिर ये सिर्फ ठेकेदारों और अधिकारियों के बीच बंदरबांट का ज़रिया बन चुकी हैं?
दो चरणों में बन रहीं 17 सड़कें, लेकिन ज़मीन पर बिखर रहा भरोसा
प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत जिले में पीएम जनमन योजना के अंतर्गत दो चरणों में सड़क निर्माण कराया जा रहा है:
पहला चरण: 9 सड़कों पर अनुमानित लागत ₹34.34 करोड़
दूसरा चरण: 7 सड़कों पर अनुमानित लागत ₹15.54 करोड़
हालांकि ज़्यादातर सड़कों का निर्माण हाल ही में पूरा हुआ है, लेकिन सड़कों की गुणवत्ता इतनी खराब है कि वे जगह-जगह से उखड़ रही हैं और दरारों से पट चुकी हैं। इससे सरकार की निगरानी और ठेकेदारों की नीयत दोनों पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
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*विभाग की दलील: “बरसात के बाद मरम्मत होगी!*
जब मीडिया ने घटिया निर्माण पर सवाल उठाया तो विभागीय अधिकारियों ने मरम्मत का आश्वासन देते हुए कहा कि
> “बरसात के बाद काम दोबारा कराया जाएगा।”
लेकिन ग्रामीण इस दलील से सहमत नहीं हैं।
उनका सीधा सवाल है—“जब अभी सड़कें टूट रही हैं, तो आने वाले पांच सालों तक क्या हर साल इसकी मरम्मत होती रहेगी?”
*ग्रामीणों का आरोप: “विकास नहीं, लूट की योजना है!*
ग्रामीणों का आरोप है कि पहाड़ी कोरवाओं के नाम पर केवल कागज़ी विकास हो रहा है।
योजनाओं का असली मकसद समुदाय का उत्थान नहीं, बल्कि सरकारी बजट का बंदरबांट है।
*सरकार से मांग: जांच हो, दोषियों पर कार्रवाई हो!*
ग्रामीणों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने सरकार से मांग की है कि:
सभी निर्माण कार्यों की स्वतंत्र तकनीकी जांच कराई जाए
घटिया काम के लिए ज़िम्मेदार ठेकेदारों और अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हो
योजनाओं को वास्तव में लाभकारी बनाने के लिए जन सहभागिता सुनिश्चित की जाए
*निष्कर्ष!*
पहाड़ी कोरवाओं जैसे वंचित समुदायों के नाम पर योजनाएं बनाना आसान है, लेकिन अगर वो ज़मीन पर केवल भ्रष्टाचार की फसल उगा रही हों, तो सरकार की साख और संवेदनशीलता—दोनों पर सवाल उठना लाज़िमी है।
यदि समय रहते गुणवत्ता, जवाबदेही और पारदर्शिता पर ध्यान नहीं दिया गया, तो ये सड़कें विकास का रास्ता नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार की खाई बन जाएंगी।