छिंदवाड़ा: आदिवासी बेटा बना डिप्टी कलेक्टर, MPPSC में लहराया परचम, बताए अपन… – भारत संपर्क

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छिंदवाड़ा: आदिवासी बेटा बना डिप्टी कलेक्टर, MPPSC में लहराया परचम, बताए अपन… – भारत संपर्क

निशांत बने डिप्टी कलेक्टर
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट क्षेत्र के कारेआम रातेड़ गांव के रहने वाले 25 वर्षीय छात्र निशांत भूरिया ने अपने गांव का नाम रोशन कर दिया है. उन्होंने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) 2022 की परीक्षा में अनुसूचित जनजाति श्रेणी में पहला स्थान और देशभर में 19वां स्थान हासिल किया है. भारिया जनजाति से आने वाले निशांत न सिर्फ अपने समाज के बल्कि पूरे पातालकोट क्षेत्र के लिए प्रेरणा बन गए हैं. उन्हें डिप्टी कलेक्टर का पद मिला है.
भारिया जनजाति मध्य प्रदेश की सबसे पिछड़ी हुई जनजातियों में से एक मानी जाती है, जिसका संबंध पातालकोट क्षेत्र से है. यह जनजाति आज भी मुख्यधारा से काफी हद तक कटी हुई है. निशांत भूरिया का जन्म जबलपुर में हुआ, लेकिन उनके माता-पिता पातालकोट के मूल निवासी हैं. उनके पिता मुकेश भूरिया ने मजदूरी की तलाश में गांव से जबलपुर की ओर पलायन किया और आज जबलपुर में महज 6 हजार रुपये महीने की नौकरी करते हैं. निशांत की मां संतोषी भूरिया गृहणी हैं. निशांत अपनी कामयाबी का श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं.
सरकारी स्कूल से पढ़ाई की
निशांत ने बताया कि उनकी घर की स्थिति ठीक नहीं थी और इसलिए उनके पिता ने पातालकोट से पलायन किया और काम की तलाश में शहर आ गए. निशांत की पूरी पढ़ाई सरकारी स्कूल से ही हुई है. शुरुआती शिक्षा जबलपुर के सरकारी स्कूल लज्जा शंकर झा मॉडल हाई स्कूल में हुई. इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग का एंट्रेंस एग्जाम क्लियर किया और जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में सिविल इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया. ग्रेजुएशन के बाद उन्हें पहले पोस्ट ऑफिस में नौकरी मिली, फिर पटवारी के रूप में कार्य किया. पटवारी रहते हुए निशांत ने MPPSC की तैयारी शुरू की और 2022 की परीक्षा में अनुसूचित जनजाति में पहला और ओवरऑल 19वां स्थान हासिल किया.
समर्पण और रणनीति जरूरी
निशांत भूरिया का सफर आसान नहीं था. उन्होंने मुश्किल हालातों में अपनी मेहनत जारी रखी. उनके शिक्षक और मार्गदर्शक सिद्धार्थ गौतम का इसमें अहम योगदान रहा. निशांत और उनके भाई को निशुल्क शिक्षा देकर सिद्धार्थ गौतम ने उनका हौसला बढ़ाया. गौतम का मानना था कि दोनों भाइयों में अद्भुत क्षमता है और वह कामयाब हो सकते हैं. निशांत का कहना है कि MPPSC जैसी परीक्षा में सफलता के लिए समर्पण और सही रणनीति जरूरी है. अगर कोई पूरी लगन से तैयारी करें, तो सिर्फ एक साल में सफलता पाई जा सकती है.
पारंपरिक पकवान बनाना शौक
निशांत भूरिया ने अपने समाज के लिए काम करने का संकल्प लिया है. वह चाहते हैं कि भारिया जनजाति के लोगों को शिक्षा और अन्य मुख्यधारा की सुविधाओं से जोड़ा जाए. उन्होंने कहा कि वह जनजातीय समुदाय के जीवन स्तर को सुधारने के लिए लगातार कोशिश करेंगे. उनका कहना है कि वह अपनी जड़ों से अलग नहीं हुए हैं. आदिवासी व्यंजन और महुआ से जुड़े पारंपरिक पकवान बनाना उनका शौक है. यह शौक उनके समाज और संस्कृति से उनके गहरे जुड़ाव को दर्शाता है. भारिया जनजाति के लोगों को आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं मिलते.
मेहनत से सब हासिल किया जा सकता है
भील जनजाति, जो मध्य प्रदेश की अन्य जनजातियों की तुलना में ज्यादा विकसित मानी जाती है. उनके विपरीत भारिया जनजाति अब भी पिछड़ी हुई है. निशांत का कहना है कि उनकी सफलता से यह भ्रम टूटेगा कि जनजातीय समुदाय के लोग उच्च पदों तक नहीं पहुंच सकते. निशांत भूरिया की सफलता संघर्ष, दृढ़ निश्चय और सही मार्गदर्शन का नतीजा है. उन्होंने यह साबित कर दिया कि मुश्किल हालात भी किसी के सपनों की राह में बाधा नहीं बन सकते. उनकी यह उपलब्धि न सिर्फ भारिया जनजाति, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा है. निशांत की कहानी यह संदेश देती है कि शिक्षा और मेहनत से किसी भी ऊंचाई को छुआ जा सकता है.
भारिया आदिवासी समाज के 12 गांव
कहा जाता है कि यह जगह समुद्र तल से लगभग 750 से लेकर 950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह स्थान 79 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. यहां पर भूरिया आदिवासी समाज रहता है, जोकि भारत में पाए जाने वाली चुनिंदा विशेष पिछड़ी जनजाति में से एक है. यह मध्य प्रदेश में पाई जाने वाली तीन आदिवासी जनजातियों बैगा, सहरिया और भारिया में से एक है. यहां भारिया आदिवासी समाज के 12 गांव हैं, जो अपनी संस्कृति, अपना इतिहास, अपनी भौगोलिक स्थिति में हर मायने में अलग है. जंगलो में होने वाले फल ढ़ाक, आचार, सागौन, महुआ, आंवला चिरौंजी और जड़ी बूटियों से ही ये लोग अपना जीवन यापन करते हैं.

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