चीन को धूल चटाएगा भारत, कजाकिस्तान के साथ मिलकर पूरा प्लान…- भारत संपर्क

भारत अब चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के मुकाबले एक वैकल्पिक और मजबूत व्यापारिक मार्ग की तलाश में है. इस दिशा में उसकी नजर अब कजाकिस्तान पर टिकी है. कजाकिस्तान के नेतृत्व में विकसित हो रहा ट्रांस-कैस्पियन इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट रूट (TITR) — जिसे आमतौर पर मिडिल कॉरिडोर कहा जाता है, भारत के लिए एक संभावित गेम-चेंजर साबित हो सकता है. यह कॉरिडोर भारत को न केवल चीन पर अपनी व्यापारिक निर्भरता से मुक्ति दिला सकता है, बल्कि मध्य एशिया और यूरोप के साथ व्यापार के नए द्वार भी खोल सकता है. मिडिल कॉरिडोर के ज़रिए भारत को एक ऐसा वैकल्पिक मार्ग मिल सकता है, जो भौगोलिक, रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से कहीं अधिक लचीला और संतुलित हो.
चीन के BRI से भारत को क्या दिक्कत है?
चीन का BRI प्रोजेक्ट वैसे तो एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ने के लिए बनाया गया था लेकिन इसका एक अहम हिस्सा, चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC), भारत के लिए विवाद का कारण है. ये कॉरिडोर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जिसे भारत अपनी ज़मीन मानता है. भारत पहले ही साफ कह चुका है कि वह CPEC का विरोध करता है, क्योंकि ये उसकी संप्रभुता के खिलाफ है. इसके अलावा, BRI की कर्ज़ आधारित पॉलिसी और चीन की इसमें भारी दखलंदाजी भी भारत को पसंद नहीं है. ऐसे में भारत अब नए और बेहतर विकल्प तलाश रहा है और कजाकिस्तान का मिडिल कॉरिडोर उसी दिशा में एक अहम कदम है.
क्या है मिडिल कॉरिडोर?
मिडिल कॉरिडोर यानी TITR एक ऐसा व्यापारिक रास्ता है, जो चीन, मध्य एशिया, कैस्पियन सागर, कॉकसस और यूरोप को जोड़ता है, वो भी रूस या चीन पर ज़्यादा निर्भर हुए बिना. ये रूट रेल और समुद्र के ज़रिए काम करता है करीब 4,250 किलोमीटर रेल और 500 किलोमीटर समुद्री रास्ता.
इसकी शुरुआत 2014 में तब हुई थी, जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया और उसके बाद कई देशों ने वैकल्पिक रास्ते तलाशने शुरू किए. फिर 2017 में बाकू-त्बिलिसी-कार्स रेलवे शुरू हुआ, जिसने इस रूट को और ताकत दी. अब चीन से तुर्की तक माल सिर्फ 12 दिन में और यूरोप के प्राग तक 18 दिन में पहुंच सकता है.
2024 में इस कॉरिडोर से माल ढुलाई में 62% की बढ़ोतरी हुई और कुल 45 लाख टन सामान इस रूट से भेजा गया. कंटेनर ट्रांसपोर्ट में 170% का उछाल आया और 56,500 TEU (ट्वेंटी-फुट इक्विवेलेंट यूनिट) कंटेनर भेजे गए. 2025 का लक्ष्य है 52 लाख टन और 70,000 TEU तक पहुंचने का.
कजाकिस्तान बना रहा है मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर
कजाकिस्तान इस रूट को और मजबूत बनाने के लिए बड़े स्तर पर काम कर रहा है. 2025 तक वह 13,000 किलोमीटर सड़कों और 6,100 किलोमीटर रेलवे लाइनों को अपग्रेड करेगा. इसके साथ ही छह हवाई अड्डों का विस्तार होगा और अकताऊ में एक नया कंटेनर हब बनाया जा रहा है, जिसकी क्षमता 2.4 लाख TEU होगी.
कजाकिस्तान के राष्ट्रपति कासिम-जोमार्त तोकायेव ने हाल ही में कहा कि उनका देश अब एक ऐसी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, जो भविष्य के लिए तैयार, टिकाऊ और ग्लोबल स्तर पर जुड़ी हुई हो. उनकी सरकार का फोकस बड़े और दूरदर्शी लक्ष्यों पर है. देश की GDP भी 2025 की पहली छमाही में 6% की दर से बढ़ी है, जो पिछले 12 सालों में सबसे तेज है.
भारत के लिए क्यों खास है यह रूट?
भारत का ज़्यादातर विदेशी व्यापार समुद्र के रास्ते होता है, खासकर स्वेज नहर के जरिए. लेकिन हाल ही में लाल सागर में हुए हूती हमलों और अशांति की वजह से स्वेज का रास्ता खतरे में पड़ गया है. नतीजा यह हुआ है कि जहाजों की लागत काफी बढ़ गई है ICRA के अनुसार, मालभाड़ा 122% तक बढ़ चुका है.
ऐसे में मिडिल कॉरिडोर एक सुरक्षित और तेज विकल्प बन सकता है, खासकर यूरोप और मध्य एशिया के साथ व्यापार करने के लिए. यह कॉरिडोर भारत को अपनी एक्सपोर्ट स्ट्रेटेजी को और मज़बूत करने का मौका देता है, और वह भी चीन या किसी एक रास्ते पर पूरी तरह निर्भर हुए बिना.
INSTC से कैसे जुड़ता है यह रूट?
भारत पहले से ही इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) का हिस्सा है, जो मुंबई को ईरान, कॉकसस और रूस के जरिए यूरोप से जोड़ता है. ये रूट करीब 7,200 किलोमीटर लंबा है. खास बात यह है कि INSTC और मिडिल कॉरिडोर (TITR) में कई जगह एक जैसे जंक्शन हैं जैसे कैस्पियन सागर और अजरबैजान.
यानि भारत, INSTC के ज़रिए माल को यूरोप भेजते हुए कुछ हिस्सों में TITR का भी इस्तेमाल कर सकता है. हालांकि INSTC में कुछ काम अभी बाकी है, जैसे ईरान में चाबहार-जाहेदान रेलवे, लेकिन भारत, ईरान और रूस मिलकर इस पर तेजी से काम कर रहे हैं. अगर ये दोनों रूट मिलकर काम करें, तो भारत को एक मजबूत, वैकल्पिक और सुरक्षित व्यापारिक रास्ता मिल सकता है.
भारत के लिए खुल जाएंगे कई नए रास्ते
कजाकिस्तान, अजरबैजान और जॉर्जिया जैसे देशों से भारत अपने रिश्ते मजबूत करता है, तो इसका फायदा केवल व्यापार तक सीमित नहीं रहेगा. ऊर्जा, खनिज और भू-राजनीतिक मामलों में भी भारत को मजबूती मिलेगी. भारत को मिडिल कॉरिडोर में औपचारिक रूप से शामिल होने की ज़रूरत नहीं है सिर्फ इस कॉरिडोर का इस्तेमाल बढ़ाना ही काफी होगा. जितने ज्यादा विकल्प भारत के पास होंगे, उतनी ही कम उसे चीन और स्वेज नहर जैसे सीमित रास्तों पर निर्भर रहना पड़ेगा.