किसानों के लिए चमगादड़ों का मल बनी संजीवनी, गुफा में जाकर…- भारत संपर्क
किसानों के लिए चमगादड़ों का मल बनी संजीवनी, गुफा में जाकर करते हैं इकठ्ठा, खाद के रूप में करते हैं उपयोग
कोरबा। गेराव के किसानों के लिए चमगादड़ का मल किसी संजीवनी से कम नहीं है। इससे किसानों की फसल लहलहा उठती है। खास बात यह है कि इसे गुफा में जाकर ग्रामीण पहले इक_ा करते हैं फिर इसका इस्तेमाल खेतों में किया जाता है।जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम गेराव एक ऐसा स्थान है, जहां आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का अद्भुत मेल देखने को मिलता है। चारों ओर घने जंगल और दुर्गम पहाड़ों से घिरा यह गांव न सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां की कृषि पद्धति और धार्मिक मान्यताएं इसे विशेष बनाती हैं। इस गांव के किनारे स्थित एक घने जंगल वाले पहाड़ी पर गुफा है, जिसे “बिठराही गुफा” के नाम से जाना जाता है, ग्रामीणों के लिए ये एक देवस्थान भी है। गुफा तक पहुंचने का सफर आसान नहीं है। इस अद्भुत परंपरा को लेकर गांव के खेम सिंह राठिया, धन सिंह और फूल सिंह ने बताया कि हाथों में जलती लकड़ी, बड़े-बड़े टॉर्च और धारदार औजार लेकर घने जंगल से होकर गुफा तक जाना पड़ता है। रास्ते में जंगली जानवरों से बचाव के लिए ये लोग ऊंची आवाज में चिल्लाते रहे. गुफा तक पहुंचने के बाद ग्रामीण हाथ जोडक़र देवता से प्रार्थना करते हैं और वहां से चमगादड़ों का मल इक_ा करते हैं।इस स्थान की सबसे खास बात ये है कि इसमें मौजूद चमगादड़ों का मल, जिसे ग्रामीण कठिन पहाड़ी चढ़ाई और खतरनाक गुफा में जाकर इक_ा करते हैं। ग्रामीण इसे अपनी खेती के लिए सर्वोत्तम जैविक खाद मानते हैं। घंटों की मशक्कत के बाद जब ये लोग गुफा से चमगादड़ों का मल लेकर लौटते हैं, तो उसे सीधे खेतों में डालते हैं। स्थानीय किसान दावा करते हैं कि इस खाद के इस्तेमाल से उनकी जमीन की उर्वरक क्षमता बढ़ती है और फसल अच्छी होती है। गांव के किसान खेम सिंह राठिया बताते हैं कि वे एक एकड़ जमीन में करीब 20 किलो चमगादड़ों का मल डालते हैं। इसके बाद किसी अन्य रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती. हमारी जमीन उपजाऊ बनी रहती है