क्या सच में भारत ने दिया दुनिया को दशमलव? जानें किसने की थी इसकी खोज


सांकेतिक तस्वीर
1970 में आई मनोज कुमार की मूवी ‘पूरब और पश्चिम’ का एक गाना तो आपने सुना होगा जिसके बोल हैं ‘भारत का रहने वाला हूं…’ इस गाने में एक वाक्य है जिसमें कहा गया है कि ‘देता न दशमलव भारत तो यूं चांद पर जाना मुश्किल था…’ चलिए इस मशहूर गाने की इस लाइन को समझने की और कोशिश करते हैं. इस लाइन को सुनने के बाद आपके दिमाग में दो-तीन अहम सवाल जरूर उठ रहे होंगे जिनमें से पहला सवला है-
क्या ये सच है?
दूसरा सवाल, अगर हां तो दशमलव की खोज किसने की?
तीसरा सवाल, आखिर यह दूसरे देशों तक कैसे पहुंचा?
चलिए एक-एक करके तीनों सवालों का जवाब और उसके पीछे की पूरी कहानी से पर्दा उठाने की कोशिश करते हैं. सबसे पहले तो यह जान लीजिए की दशमलव और शून्य की खोज भारत देश में ही हुई थी. जिसमें सबसे पहले गणितज्ञ के रूप में आर्यभट्ट का नाम आता है. दशमलव मैथड की शुरुआत आर्यभट्ट से मानी जाती है. उन्होंने संख्याओं को एक स्थानिक मान के साथ लिखने की प्रोसेस शुरू की थी. यही दशमलव मैथड का आधार बना.
1, 10, 100 संख्या लिखने का तरीका बनाया
आर्यभट्ट ने ‘आर्यभटीय’ में सभी संख्याओं को लिखने का तरीका विकसित कर लिया. इसमें उन्होंने 1, 10, 100, 1000 जैसी संख्याओं को लिखने का तरीका निकाला. उनकी इसी मैथड के बाद भारतीय गणितज्ञों ने दशमलव प्रणाली स्पष्ट रूप से परिभाषित किया.
आर्यभट्ट के बाद इतिहास में दूसरे बड़े गणितज्ञ का नाम है ब्रह्मगुप्त. ब्रह्मगुप्त भी महान गणितज्ञ हुए जिनके सिद्धांतों को आज भी गणित में इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने उस दौरान एक ग्रंथ लिखा था जिसे ‘ब्रह्मास्फुटसिद्धांत’ नाम दिया गया. इसी ग्रंथ में उन्होंने शून्य और दशमलव प्रणाली के नियम स्पष्ट किए हैं. इन्होंने ही बताया था कि किसी संख्या का गुणा अगर शून्य में किया जाए तो उसका उत्तर शून्य ही होगा.
अरब और यूरोप तक पहुंची भारतीय गणित
ब्रह्मगुप्त की यही प्रणाली एक समय के बाद अरब और यूरोपीय देशों तक जा पहुंची. इसी से आधुनिक गणित की शुरुआत हुई. यह शुरुआत 8वीं शताब्दी में हुई जब अरब के जानकारों ने भारतीय गणित ग्रंथों को ट्रांसलेशन किया. 8वीं शताब्दी में अरब गणितक्ष अल ख्वारिज्मी का नाम सामने आता है जिन्होंने दशमलव मैथड को अपनाया और इस्लामी कंट्रीज में इसे लोकप्रिय बना दिया. इतना ही नहीं, फ्रांसीसी गणितज्ञ पियरे साइमन लाप्लास ने भी भारतीय गणित के ग्रंथों के बारे में लिखा है कि भारतीयों ने संख्याओं को अभिव्यक्त करने के लिए सरल पद्धति डेलवप की है जो पूरे विश्व में उपयोग की जा रही है.