ICC के वारंट का कोई मतलब है भी या नहीं? गद्दाफी, अल बशीर, कोनी, पुतिन और अब नेतन्याहू… – भारत संपर्क

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ICC के वारंट का कोई मतलब है भी या नहीं? गद्दाफी, अल बशीर, कोनी, पुतिन और अब नेतन्याहू… – भारत संपर्क
ICC के वारंट का कोई मतलब है भी या नहीं? गद्दाफी, अल-बशीर, कोनी, पुतिन और अब नेतन्याहू

नेतन्याहू, पुतिन, गद्दाफी

6 महीने में 36 हजार मौतें (जिनमें 15 हजार से ज्यादा बच्चे), 10 हजार लोगों की गुमशुदगी, 80 हजार के घायल हो जाने के बाद इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट – अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीसी) इस ओर बढ़ रही है कि इजराइल में जो हुआ, गजा में जो कुछ भी मुसलसल हो रहा, उसे मानवता के खिलाफ एक जघन्य अपराध के तौर पर देखा जाना चाहिए और इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, रक्षा मंत्री योआव गैलेंट, हमास के तीन नेताओं को गिरफ्तार करना चाहिए.

इजराइल पहले भी संयुक्त राष्ट्र और दूसरे संस्थानों की तरफ से लगाए जाने वाले आरोपों को नकारता रहा है, इस दफा भी उसने ये कह इन आरोपों से पल्ला झाड़ लिया है कि “लोकतांत्रिक देश के नेताओं और हमास के हत्यारों को एक पंक्ति में रखा जाना सही नहीं है.” दिलचस्प बात ये है कि हमास की भी ऐसी ही कुछ आपत्ति है. हमास का कहना है कि आप हम “पीड़ितों की तुलना जल्लादों से न करें”. इस आरोप-प्रत्यारोप से इतर गजा की सच्चाई दूसरी है.

गजा, रफा और आईसीसी

गजा में हर घंटे 15 लोग मारे जा रहे हैं. इन 15 में कितने हमास के आतंकी हैं और कितने आम-आवाम लोग, ये कोई नहीं बता रहा. आतंक का सफाया करने के नाम पर अब इजराइली टैंक घनी आबादी वाले रफा में बम बरसा रहे हैं. यहां लाखों की तादाद में फिलिस्तीनी, शरणार्थी का जीवन गुजार रहे हैं. उधर, हर दूसरे दिन जंगबंदी की कोई न कोई लौ अमेरिका, पश्चिम एशिया, यूरोप के देशों से जलती तो है पर शाम तक बुझ जाती है.

गजा शहर, खान यूनिस, जबालिया कैंप में क्या हुआ, बहुत पीछे छूट चुका है. अब रफा में इजराइली और आईसीसी ही के कार्रवाई पर ही सबकी निगाहें टिक गई हैं. आईसीसी ने हमास के अधिकारियों (इस्माइल हानिया, याह्या सिनवार और मोहम्मद दैफ) पर आरोप लगाए हैं कि इन्होंने 8 युद्ध अपराधों को अंजाम दिया. इसमें लोगों को बंधक बनाने से लेकर बलात्कार और उत्पीड़न के जरिये मानवता के खिलाफ अपराध के मामले हैं. हमास ज्यादती और युद्ध अपराध के इन आरोपों को सिरे से नकारता है.

इजराइल का भी कुछ यही हाल है. नेतन्याहू और इजराइल के रक्षा मंत्री योआव गैलेंट को सात युद्ध अपराधों में आरोपी बनाया गया है और हमास ही की तरह इनके खिलाफ भी मानवता के खिलाफ अपराध करने के आरोप हैं. इजराइली पीएम पर भूख को युद्ध का एक हथियार बनाने और इसकी नौबत ला लोगों को मारने के गंभीर आरोप हैं. पर सवाल है कि इससे होगा क्या. क्या इनकी गिरफ्तारी होगी. छोटा जवाब है – नहीं.

नेतन्याहू गिरफ्तार हो जाएंगे?

नेतन्याहू और गैलेंट पर गिरफ्तारी या फिर मुकदमेबाजी का कोई खतरा इसलिए नहीं है क्योंकि इजराइल आईसीसी का सदस्य देश नहीं है. हां एक चीज जरुर है कि गिरफ्तारी की आशंका से ये नेता विदेश यात्रा थोड़ा संभल कर करते हुए दिख सकते हैं. साथ ही, मुमकिन है अमेरिका और यूरोप के देशों में फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन में चल रहा छात्रों का प्रदर्शन कुछ और उग्र हो और नतीजतन नेतन्याहू पर युद्ध रोकने, कम से कम संघर्ष विराम का कुछ दबाव बने.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्याल में अंतर्राष्ट्रीय विषयों को पढ़ाने वाले और समसामिक घटनाओं पर पैनी नजर रखने वाले प्रोफेसर अमिताभ सिंह कहते हैं कि “आईसीसी शीतयुद्ध के बाद बना था और उस समय यह समझ थी कि मानवता के खिलाफ अपराध, जनसंहार और युद्ध अपराध को रोकने के मामले में अब एक आम सहमति बनेगी पर साल दर साल हम देख रहे हैं कि ऐसा नहीं हो सका है.”

प्रोफेसर सिंह के मुताबिक “आईसीसी जो भी करता है वह एक तरह दबवा बनाने की रणनीति होती है. इसके जरिये वह ऐसी घटनाओं को खबरों में लाती है ताकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस पर गौर फरमाए.”

ICC: कुछ पुराने हाई-प्रोफाइल मामले

दरअसल, आईसीसी की वारंट वाली पूरी बातचीत को एक चुटकी नमक ही नहीं बल्कि नमक की पूरी डिबिया के साथ लेने की जरुरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि इजराइल और हमास के नेता इसके दायरे में आने वाले पहले आरोपी नहीं हैं. रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से लेकर सूडान, लीबिया और युगांडा के शासकों पर मानवता के खिलाफ जंग छेड़ने के गंभीर आरोप लगे लेकिन इन नेताओं से संबंधित आरोप कभी भी किसी नियत मकाम तक नहीं पहुंचे.

आईसीसी की कार्रवाई पर पश्चिम के देशों का दोहरा रवैया भी कई बार आलोचकों के निशाने पर रहा है. पिछले साल मार्च ही का महीना था, अमेरिका से लेकर यूरोप के कई मुल्कों में खुशी का आलम था क्योंकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ आईसीसी ने गिरफ्तारी का वारंट जारी किया था. लेकिन आज जब वही आईसीसी इजराइल के खिलाफ आगे बढ़ रहा है तो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का रुख अलग है.

राष्ट्रपति पुतिन पर आरोप थे कि उन्होंने यूक्रेनी बच्चों को अगवा किया. रूस भी मजेदार देश है, तब उसने गिरफ्तारी का वारंट जारी करने वाले अदालत के प्रोसिक्यूटर ही के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया था. उस बात को साल भर हो गए. क्या हुआ? राष्ट्रपति पुतिन मजे से चीन की यात्रा कर रहे हैं और बहुध्रुवीय दुनिया बनाने के लिए चीन और रूस की पीठ थपथपा रहे हैं.

पुतिन का मामला तो हाल फिलहाल का है. कोई कह सकता है कि अभी इतनी भी जल्दबाजी क्या. तो चलिए कुछ पुराने मामलों को देखते हैं, क्या वहां आईसीसी कुछ कर पाया. अफ्रीका के सबसे कुख्यात लोगों में जिसका नाम शुमार है, ऐसे जोसेफ कोनी के खिलाफ साल 2005 में आईसीसी ने गिरफ्तारी का वारंट जारी किया. कोनी कभी उत्तरी युगांडा में लॉर्ड्स रेजिस्टेंस आर्मी के नेता हुआ करते थे. इसी दौरान उन्होंने कुछ ऐसे फैसले लिए जिसको युद्ध अपराध के तौर पर देखा गया.

कोनी पर मानवता के खिलाफ 12 अपराध करे के जो मामले तब शुरू हुए, अब तक यह केस ट्रायल ही के फेज में है. हत्या और बलात्कार के मामले झेल रहे कोनी पर 21 युद्ध अपराध के भी केस हैं. कोनी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तलाशी अभियान भी चल चुका है. 50 लाख डॉलर का इनाम घोषित होने के बावजूद भी कोनी इस अदालत की पकड़ से बाहर है.

अफ्रीका ही का एक और देश है सूडान. यहां के पूर्व राष्ट्रपति उमर अल-बशीर पर दरफूर में हुए संघर्ष के दौरान नृशंसता बरतने के आरोप हैं. बशीर के नाम का गिरफ्तारी का वारंट निकला हुआ है. कब का? तो 2009 और 2010 में अल-बशीर के नाम गिरफ्तारी का वारंट निकला. पांच मामले मानवता के खिलाफ अपराध के और तीन जनसंहार से जुड़े हुए हैं मगर आईसीसी अब भी बशीर को लेकर बस पांव ही घसीट रहा है.

एक और मिसाल देखिए. लीबिया के लंबे अरसे तक तानाशाह रहे मोअम्मर गद्दाफी को कौन भूल सकता है. अरब स्प्रिंग के दौरान जन आंदोलनों को दबाने के लिए गद्दाफी ने लोगों पर अत्याचार किया. आईसीसी की नजर में इनमें से दो मामले मानवता के खिलाफ अपराध के थे. आईसीसी ने गद्दाफी के खिलाफ जून 2011 में वारंट जारी किया. लेकिन नवंबर 2011 में गद्दाफी की मौत के बाद इस मामले को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया.

ICC के साथ क्या कोई समस्या है?

गद्दाफी का तो निधन हो गया. लेकिन इसी मामले में गद्दाफी के बेटे सैफ अल-इस्लाम के खिलाफ भी दो और लोगों के साथ आरोप पाए गए थे. लेकिन आज घटना के एक दशक बीत जाने के बाद भी आईसीसी की गिरफ्त से ये बाहर हैं. तो सवाल है कि पिछले 20 सालों में आईसीसी अगर अपना काम मजबूती और कुशलता से नहीं कर पाया है तो उसका जिम्मेदार कौन है, किसी खास देश का अड़ंगा या फिर समस्या कहीं और है?

प्रोफेसर सिंह कहते हैं कि अव्वल तो भारत, अमेरिका, चीन, रूस, इजराइल जैसे अहम और ताकतवर देश इसके सदस्य नहीं हैं. दूसरा जो सदस्य हैं, उन पर भी आईसीसी का फैसला बाध्यकारी नहीं है. वे अपनी स्वेच्छा से इन फैसलों को मानने और न मानने को लेकर स्वतंत्र हैं. न सिर्फ आईसीसी बल्कि आईसीजे भी इसी वजह से पंगु हो चुका है. इजराइल-हमास के मामले में भी आईसीसी किसी अंतिम नतीजे पर जब पहुंचेगी तब पहुंचेगी लेकिन तात्कालिक तौर पर इसका कुछ खास असर नहीं दिख रहा.

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