कला,साहित्य और पुरातत्व की शोधपरख साधना में समर्पित रहे डॉ….- भारत संपर्क
कला,साहित्य और पुरातत्व की शोधपरख साधना में समर्पित रहे डॉ. बलदेव
कोरबा।प्राकृतिक संसाधनों और विलक्षण प्रतिभाओं से समृद्ध छत्तीसगढ़ अंचल के गाँव ‘नरियरा’ जिला बिलासपुर (अब जिला जांजगीर चांपा हो गया है) का एक शख़्स जो सांस्कृतिक और पुरातात्विक विषयों पर अपनी शोधपरख विवेचनाओं , समीक्षाओं और विशद लेखों से राष्ट्रीय स्तर पर केवल प्रश्न ही खड़ा नहीं करता है वरन उस पर राष्ट्रीय बहस और विमर्श खड़ा कर उन तथ्यों को प्रमाणित प्रतिष्ठित और स्थापित भी करता है।जिसने राष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक वैभव के साथ छत्तीसगढ़ को स्थापित , सम्मानित व गौरवान्वित कराने में अपने संपूर्ण जीवन को कला,साहित्य और पुरातत्व की शोधपरख साधना में समर्पित कर दिया उस शख़्सियत का नाम है डॉ. बलदेव साव। देश की शायद ही कोई ऐसी प्रतिष्ठित साहित्यक पत्रिका या अख़बार होगा जो डॉ. बलदेवसाव के लेख , रिपोर्टताज, समीक्षा ,कविता या निबंध को प्रमुखता से स्थान देकर उनसे पत्र व्यवहार न किया करता रहा हो। स्थानीय स्तर के नवसृजित साहित्यकार से लेकर राष्ट्रीयस्तर के मुर्धन्य नामचीन साहित्यकारों सबके साथ वार्तालाप,आचरण और पत्र व्यवहार किया करते थे। देश के ख्यतिलब्ध मुर्धन्यसाहित्यकारों में प्रमुख रूप से हीरानंद सच्चिदानंद वात्सायन अज्ञेय,रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’, शिव मंगलसिंह ‘सुमन’ ,रामकुमार वर्मा, आचार्य विनयमोहन शर्मा,रामविलासशर्मा, नामवर सिंह,बालकवि वैरागी, गोपाल दास नीरज,विद्यनिवासमिश्र,रामनारायण शुक्ल, भीष्मसाहनी,नीरजप्रभाकर क्षोत्रिय, बनारसीदास चतुर्वेदी,धर्मवीरभारती,प्रमोद वर्मा,रमेश चंद्रशाह,कपिला वात्सायन अज्ञेय, प्रतिष्ठित चित्रकार भाऊ समर्थ,डॉ. प्रेम शंकर, भारतरत्न शहनाईनवाज़ उस्ताद बिस्मिल्ला खां साहब, कथक सम्राट पद्मविभूषण पंडित बिरजु महराज जी, मशहूर चरित्र अभिनेता ए के हंगल,आदि विभूतियों से अच्छा सम्बंध रहा।सबसे पहले राष्ट्रीय पटल पर तब राष्ट्रीय बहस और विमर्श के केंद्र बिंदु पर आये जब डॉ. बलदेव पद्मश्री पंडित मुकुटधर पांडेय के काव्यसाधना पर काम कर रहे थे और मुकुटधर पांडेय को उन्होंने पहली बार छायावादके प्रवर्तक की संज्ञा से विभूषित किये और उनके शोधपरख लेख स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर के पत्रपत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित हुए । जबकि उस दौर में छाया वाद के कवियों की एक लम्बी सूची थी जिसमें प्रमुख नाम थे -जय शंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला,सुमित्रानंदनपंथ और महादेवीवर्मा ।डॉ. बलदेव के सम्पादकीय से प्रकाशित पद्मश्री मुकुटधर पांडेय सबसे महत्वपूर्ण काव्य संग्रह “ विश्व बोध” को ही एक प्रतिनिधि काव्यसंग्रह मानी जाती है।
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चक्रधर समारोह को राष्ट्रीय ख्याति दिलवाने में रहा विशेष योगदान
रायगढ़ कथक घराने तथा ऐतिहासिक गणेशमेला चक्रधर समारोह को राष्ट्रीय ख्याति दिलवाने में डॉ. बलदेव के लेखों का विशेष योगदान रहा। शास्त्रों और परम्परानुसार कथक के दो ही घराने माने जाते थे लखनऊ और बनारस लेकिन डॉ बलदेव के रायगढ़ कथक घराने पर विशद लेख ने संगीत जगत में काफ़ी बहस और विमर्श पैदा किया।प्रतिष्ठित संस्कृतिकर्मी और उच्च आइएएस अधिकारी अशोक बाजपेयी, कथक सम्राट पद्मविभूषण पंडित बिरजु महराज,तथा तत्कालीन केंद्रीय संस्कृति सचिव कपिलावात्सायन सहित देश के कई ख्यतिलब्ध कथकाचार्यों ने भी काफ़ी सवाल बहस विचार विमर्श उत्पन्न किये।लेकिन डॉ बलदेव अपने लेख और तर्कों पर अडिग रहे। आज भी राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय मंचो पर कई कथक नृत्यंगनाओं व कथकाचार्यों द्वारा रायगढ़ कथक घराने के नाम से सफल कला प्रदर्शन किये जा रहे है।
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समकालीन साहित्यकारों से रहा सीधा सरोकार
सागर वि. वि. के बी. ए, रविशंकर विश्वविद्यालय की कक्षा ए.एम. पाठ्यक्रमों में डाँ०बलदेव की किताबें रहीं ।गुरू घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर के बी.ए में सहायक पुस्तक के रूप में(छायावाद और पंडित मुकुटधर पाण्डेय-लेखक डाँ०बलदेव) शामिल हैं। उन्होंने इंग्लैड, बहरीन, ओमान तथा देश के प्रायः सभी बड़े शहरों की साहित्यकि यात्रायें भी की।डॉ बलदेव बहुत सहज व सरल थे। राष्ट्रीय साहित्य परिदृश्य में काफी सम्माननीय व्यक्ति थे । उनसे वरिष्ठ और समकालीन साहित्यकारों से सीधे सरोकार था । राष्ट्रीय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मुद्दों पर उनका जिक्र और हस्तक्षेप अवश्य होता था।