फेडरल रिजर्व के फैसले का दिखा असर, Sensex Nifty ने बनाया…- भारत संपर्क


शेयर मार्केट ने बनाया नया रिकॉर्ड
लंबे समय से दुनिया को अमेरिकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत ब्याज दरों को लेकर लिए जाने वाले फैसले का इंतजार था. अब जब दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी के केंद्रीय बैंक ने इस बारे में फैसला ले लिया है, तो उसका असर दुनियाभर के शेयर बाजारों पर दिख रहा है. यही वजह है कि गुरुवार को भारतीय स्टॉक मार्केट का एक नया रिकॉर्ड हाई लेवल देखा गया.
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 कंपनियों वाला शेयर इंडेक्स सेंसेक्स 350 पॉइंट से ज्यादा बढ़कर 77,102.05 अंक पर खुला. वहीं ये जल्द ही 77,145.46 पॉइंट के हाई लेवल पर पहुंच गया. इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के निफ्टी इंडेक्स ने भी ऊंचाई का नया रिकॉर्ड बनाया और 23,480.95 पॉइंट पर खुला.
फेडरल रिजर्व का फैसला और बाजार
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपनी दो दिन की बैठक के बाद 12 जून को देर रात एक बयान जारी किया. इसमें साफ कर दिया गया कि अभी वह नीतिगत ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करने जा रहा है और ये 5.25 से 5.50 प्रतिशत के दायरे में बनी रहेंगी. जबकि लंबे समय से अटकलें थीं कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व जून में अपनी ब्याज दरों में बदलाव कर सकता है.
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इससे पहले जब कनाडा और यूरोप के केंद्रीय बैंकों ने नीतिगत ब्याज दरों को लेकर ऐलान किया था, तो उसमें रेपो रेट को मामूली तौर पर बदला गया था. इसलिए कयास लगाए जा रहे थे कि अमेरिका भी ऐसा कदम उठा सकता है. हालांकि इस पूरे घटनाक्रम के बीच भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भी रेपो रेट को 6.50 प्रतिशत पर लगातार 8वीं बार स्थिर रखा.
बाजार में दिख रहा मिला-जुला रुख
खैर अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ये भी कहा है वह पूरे साल में एक ही बार ब्याज दरों में बदलाव कर सकता है. ऐसे में अब इस साल दिसंबर में ब्याज दरों में बदलाव की उम्मीद बंध गई है. ठीक इसी प्रकार के संकेत भारतीय रिजर्व बैंक ने भी दिए हैं. रिजर्व बैंक का अनुमान है कि अक्टूबर-दिसंबर तिमाही तक महंगाई 4 प्रतिशत के स्तर पर आ सकती है. ऐसे में उसके भी रेपो रेट में दिसंबर में ही कटौती की संभावना है. इन दोनों ही बातों से बाजार में निवेशकों की धारणा को बल मिला है, जिसकी वजह से घरेलू शेयर बाजार में मिला-जुला रुख देखा जा रहा है.
आखिर कैसे पड़ता बाजार पर असर?
अब समझने वाली बात ये है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले का असर भारत के शेयर बाजार पर कैसे पड़ता है. तो सबसे पहले हम आपको बता दें कि भारतीय शेयर बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक और विदेशी संस्थागत निवेशक (FPIs और FIIs) बहुत अहम भूमिका निभाते हैं. एक बार में बड़ी वॉल्यूमें शेयरों में निवेश और शेयरों से निकासी करते हैं. चूंकि भारत के शेयर बाजार अभी दुनिया में सबसे अधिक रिटर्न देने वाले बाजारों में से एक हैं, तो यहां एफपीआई और एफआईआई की पूंजी का अच्छा फ्लो है.
ऐसे में अगर अमेरिकी फेडरल रिजर्व अपनी ब्याज दरों में बदलाव करता, तो बड़ी मात्रा में भारतीय शेयर बाजारों से पूंजी के निकासी की आशंका रहती. इसकी वजह से बाजार में एक वैक्यूम क्रिएट होता और मार्केट में गिरावट का दौर जारी होता. हालांकि फिलहाल इन सभी अटकलों पर विराम लग गया है.