खराब खेल से नहीं ‘नेगेटिव’ सोच से हारेगा इंग्लैंड, पूरी सीरीज में की एक जैस… – भारत संपर्क

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खराब खेल से नहीं ‘नेगेटिव’ सोच से हारेगा इंग्लैंड, पूरी सीरीज में की एक जैस… – भारत संपर्क

कप्तान बेन स्टोक्स भारत में इंग्लैंड की किस्मत बदलने में नाकाम रहे हैं.Image Credit source: AFP
धर्मशाला टेस्ट में इंग्लैंड की टीम पहली पारी में सिर्फ 218 रन पर सिमट गई. वो भी तब जबकि उसके सलामी बल्लेबाज़ों ने बगैर विकेट खोए 64 रन बनाए थे. मैच में दूसरे दिन का खेल खत्म होने तक भारतीय टीम 8 विकेट पर 473 रन बना चुकी है. कुलदीप यादव 27 और जसप्रीत बुमराह 19 रन बनाकर नॉट आउट लौटे हैं. इस बात पर गौर कीजिएगा कि जिस पिच पर इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स बगैर खाता खोले आउट हुए उस पर जसप्रीत बुमराह 19 रन बनाकर खेल रहे हैं. चलिए मान लेते हैं कि ये महज संयोग है. चलिए और उदाहरण रखते हैं- जिस पिच पर ऑली पोप 11 रन, जो रूट 26 रन और जॉनी बेयरस्टो 29 रन बनाकर आउट हो गए वहां कुलदीप यादव 27 रन बनाकर खेल रहे हैं.
कुछ और उदाहरण देखिए- इंग्लैंड की टीम ने 175 के स्कोर पर 3 विकेट, 183 और 218 के स्कोर पर 2-2 विकेट खोए. यानी साझेदारियां हुई ही नहीं. जबकि भारतीय टीम में सिर्फ ध्रुव जुरेल और आर अश्विन का विकेट ही ऐसा था जो एक ही स्कोर पर गिर गया. बाकि भारत की पूरी बल्लेबाजी के दौरान छोटी-बड़ी साझेदारियां लगातार होती रहीं. मजे की बात ये है कि ये दोनों ही काम एक ही पिच पर हो रहे थे. जिस पिच पर इंग्लैंड की टीम खेल रही थी उसी पर भारतीय टीम भी खेल रही है. फिर खिलाड़ियों के प्रदर्शन में इतना बड़ा अंतर कैसे? ऐसा भी नहीं कि ये अंतर पहली बार देखने को मिला बल्कि सीरीज में ज्यादातर मौके पर कहानी कुछ ऐसी ही दिखी. दरअसल, इसके पीछे खराब खेल से कहीं ज्यादा इंग्लैंड और उसके कप्तान की ‘निगेटिव’ सोच जिम्मेदार है. बेन स्टोक्स पूरी सीरीज में बल्ले से भी फ्लॉप साबित हुए.
‘बैजबॉल’ के चक्कर में बंटाधार
इंग्लैंड की टीम जब भारत के दौरे पर आई तो सारी चर्चा इसी मुद्दे पर थी कि क्या वो बैजबॉल का अंदाज जारी रखेगी. तमाम खिलाड़ियों ने कहा था कि भारतीय पिचों पर ‘बैजबॉल’ खेलना संभव नहीं है. ‘बैजबॉल’ यानी टेस्ट क्रिकेट की परंपरागत अंदाज से बिल्कुल उलट आक्रामक बल्लेबाजी. इंग्लैंड के कोच ब्रैंडन मैककुलम का ‘निकनेम’ बैज है और उन्हीं के नाम पर ये अंदाज विकसित हुआ. इसके नतीजे भी इंग्लैंड की टीम को मिले. लेकिन ऐसी पिचों पर जहां स्पिन गेंदबाजी बहुत ज्यादा महत्व नहीं रखती. खैर, भारतीय पिचों के मिजाज से बेपरवाह बेन स्टोक्स ने उसी अंदाज में सीरीज की शुरूआत की. पहले टेस्ट मैच में इंग्लैंड को 28 रन से जीत मिली.
बेन स्टोक्स और ब्रैंडन मैक्कलम को शायद इसी जीत ने ‘कन्फ्यूज’ कर दिया. उन्होंने अगले टेस्ट मैच में भी उसी अंदाज को ‘फॉलो’ किया. अगला टेस्ट मैच भारत ने 106 रन से जीता. इसके बाद भी इंग्लिश टीम को अक्ल नहीं आई. इसके बाद दोनों टीमें राजकोट के मैदान में उतरीं. इस बार भारत ने इंग्लैंड को 434 रन से हराया. सीरीज का चौथा टेस्ट मैच रांची में था. वहां भी भारतीय टीम ने 5 विकेट से जीत हासिल की. पांच टेस्ट मैच की सीरीज में पहला मैच गंवाने के बाद लगातार तीन मैच जीत चुकी भारतीय टीम 112 साल के इतिहास को बदलने की दहलीज पर है. चौथा टेस्ट मैच जीतते ही भारतीय टीम ये कारनामा कर लेगी. मैच के दूसरे दिन के खेल के खत्म होने के बाद ये बात पूरे भरोसे से कही जा सकती है कि इस टेस्ट मैच में अब कोई चमत्कार ही इंग्लैंड की हार को टाल सकता है.
सुधार की बजाए उटपटांग बयान
लगातार हार के बाद बतौर कप्तान बेन स्टोक्स को टीम की रणनीति पर काम करना चाहिए था. लेकिन बेन स्टोक्स बयानों में उलझे रहे. विशाखापट्टनम टेस्ट में इंग्लैंड को जीत के लिए चौथी पारी में 399 रन चाहिए थे. वो रन तो नहीं बने लेकिन बेन स्टोक्स ने बयान दिया कि ड्रेसिंग रूम में हमने तय किया था कि अगर 600 रन भी ‘चेज’ करने होंगे तो हम करेंगे. इसके बाद रांची टेस्ट की पिच को देखकर बेन स्टोक्स ने कहाकि ऐसी पिच उन्होंने अपने करियर में देखी ही नहीं. ऐसे बेतुके बयान इतने बड़े खिलाड़ी को देने से बचना चाहिए था. उनके बयानों में बहुत ‘निगेटिवटी’ भी दिखाई दी. सच्चाई ये है कि इस टेस्ट सीरीज में भारतीय टीम ने कोई भी मैच ‘रैंक-टर्नर’ पिच पर नहीं खेला है. हर जगह तेज गेंदबाजों के लिए कुछ फायदा जरूर था.
खैर, अब उनके प्रदर्शन की भी कर लेते हैं. अब तक पांच टेस्ट मैच की 9 पारियों को मिलाकर भी वो 200 रन नहीं बना पाए हैं. 9 पारियों में उनके खाते में सिर्फ एक अर्धशतक है. गेंदबाजी उन्होंने पूरी सीरीज में नहीं कि सिवाय धर्मशाला टेस्ट की पहली पारी में, जहां उन्होंने पहली ही गेंद पर भारतीय कप्तान रोहित शर्मा को आउट किया. और तो और ‘बैजबॉल’ के दबाव में जो रूट जैसा दिग्गज बल्लेबाज पूरी सीरीज में रनों के लिए तरसता रहा. रांची टेस्ट में उनके नॉट आउट शतक को छोड़ दें तो पूरी सीरीज में उनका दूसरा सबसे बड़ा स्कोर 29 रन है. और ये भी ध्यान देने वाली बात है कि रांची टेस्ट में उन्होंने जो शतक लगाया वो उन्होंने अपने पुराने अंदाज से खेलकर लगाया. जहां उन्होंने क्रीज पर करीब 6 घंटे बल्लेबाजी की, 274 गेंद खेलकर 122 रन बनाए.
इस सीरीज को लेकर एक बात और याद रखी जाएगी. इस सीरीज में भारतीय टीम के लिए 5 खिलाड़ियों ने ‘डेब्यू’ किया. ऐसा इसलिए क्योंकि इस सीरीज में विराट कोहली, केएल राहुल, श्रेयस अय्यर, मोहम्मद शमी जैसे खिलाड़ी नहीं थे. विराट तो पूरी सीरीज नहीं खेले. बेन स्टोक्स एक बहुत कम अनुभवी टीम से हारकर घर वापस जाएंगे. इस हार के बाद बेन स्टोक्स, ब्रैंडन मैककुलम और इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड को दोबारा सोचना होगा- ‘बैजबॉल’ का आगे क्या करना है?

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