Explained : क्या सच में बिक रहा 87 साल पुराना ‘हल्दीराम’, या…- भारत संपर्क

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Explained : क्या सच में बिक रहा 87 साल पुराना ‘हल्दीराम’, या…- भारत संपर्क
Explained : क्या सच में बिक रहा 87 साल पुराना 'हल्दीराम', या कहानी में आने वाला है फिर कोई ट्विस्ट?

Haldiram’s को बेचने की चर्चा फिर आम है. (Photo : Haldiram)

‘हल्दीराम’…ये वो नाम है जो भारत के मिडिल क्लास को जहां ‘प्रीमियम’ कस्टमर होने का एहसास कराता है. वहीं आम और गरीब लोगों के लिए हर गली-मुहल्ले, रेलवे स्टेशन से लेकर बस स्टैंड तक पर सिर्फ 5 और 10 रुपए में उपलब्ध हो जाता है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश का शायद ही ऐसा कोई कोना हो, जहां ‘हल्दीराम’ का नाम ना हो. लेकिन इस नाम का असली वारिस अंत में कौन बनेगा, इसका पेंच एक बार फिर फंस गया है, क्योंकि इससे पहले ‘हल्दीराम’ को ना तो टाटा मना पाए हैं और ना ही पेप्सी.

साल 1937 से बाजार में मौजूद ‘हल्दीराम’ ब्रांड को एक बार फिर खरीदने की चर्चा है. दुनिया का सबसे बड़ा प्राइवेट इक्विटी फंड ‘ब्लैकस्टोन’, अबू धाबी इंवेस्टमेंट अथॉरिटी और सिंगापुर के जीआईसी के साथ मिलकर हल्दीराम स्नैक्स फूड प्राइवेट लिमिटेड में कंट्रोलिंग स्टेक करीब 74 से 76 प्रतिशत खरीदने का इच्छुक है.

ब्लैकस्टोन ने इस डील के लिए हल्दीराम की वैल्यूएशन 8.5 अरब डॉलर तक की है. इससे पहले टाटा ग्रुप के भी हल्दीराम को खरीदने की चर्चा थी. तब ‘हल्दीराम’ अपने लिए 10 अरब डॉलर की वैल्यूएशन चाहता था. हालांकि ब्लैकस्टोन ने अभी ‘नॉन-बाइंडिंग’ ऑफर रखा है. इसका मतलब ये है कि ब्लैकस्टोन ‘हल्दीराम’ को खरीद सकती है, लेकिन वह इसके लिए बाध्य नहीं है. ना ही ‘हल्दीराम’ ये डील करने के लिए बाध्य है, लेकिन अगर ये डील होती है तो भारत में ये अब तक की सबसे बड़ी प्राइवेट इक्वटी डील होगी.

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‘हल्दीराम’ का बिजनेस अभी 3 हिस्सों में बंटा है. मतलब ये कि इनका ब्रांड नाम और लोगो एक है, लेकिन ऑपरेशन अग्रवाल परिवार के ही 3 अलग-अलग फैक्शंस संभालते हैं. इसमें एक फैक्शन कोलकाता का है, जबकि एक दिल्ली और एक नागपुर का.

हल्दीराम में अगर ब्लैकस्टोन इंवेस्ट करती है, तो पहले नागपुर और दिल्ली के बिजनेस आपस में विलय करेंगे. इसके बाद जो नई कंपनी बनेगी, उसका 74 से 76 प्रतिशत ब्लैकस्टोन कंसोर्टियम खरीद सकता है. ‘हल्दीराम’ का दिल्ली का बिजनेस मनोहर अग्रवाल और मधुसूदन अग्रवाल के पास है. जबकि नागपुर का बिजनेस कमलकुमार शिवकिशन अग्रवाल के पास है.

नई कंपनी का नाम हल्दीराम स्नैक्स फूड प्राइवेट लिमिटेड होगा. इसमें नागपुर का हल्दीराम फूड्स इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड और दिल्ली का हल्दीराम स्नैक्स प्राइवेट लिमिटेड बिजनेस मर्ज हो जाएगा. नई कंपनी में सिर्फ नमकीन और एफएमसीजी प्रोडक्ट्स को ही शामिल किया जाएगा और हल्दीराम का करीब 1800 करोड़ का रेस्टोरेंट बिजनेस इससे अलग रहेगा.

वहीं कोलकाता वाला बिजनेस भी इस डील का हिस्सा नहीं होगा. नई कंपनी में दिल्ली के अग्रवाल परिवार की 55 प्रतिशत और नागपुर के परिवार की 45 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी.

ना खरीद पाए टाटा और ना पेप्सी

‘हल्दीराम’ ब्रांड नाम के तहत 500 तरह के प्रोडक्ट तैयार होते हैं. इसमें सोनपपड़ी से लेकर सूखे समोसे, मठरी, नमकीन भुजिया, चॉकलेट, रेडी टू कुक, रेडी टू ईट, बिस्किट, कुकीज और नॉन-कार्बोनेटेड ड्रिंक्स शामिल हैं. इस ब्रांड नाम को खरीदने की कोशिश 2016-17 से चल रही है, वहीं परिवार की नई पीढ़ी इस बिजनेस को आगे करने में बहुत रुचि भी नहीं रखती है और खुद डे-2-डे ऑपरेशंस से बाहर होना चाहती है. तभी हल्दीराम ग्रुप ने पिछले साल पहली बार कंपनी में सीईओ के पद पर के.के. चुटानी को नौकरी दी, जो इससे पहले डाबर इंटरनेशनल जैसा ऐसा ही फैमिली बिजनेस प्रोफेशनली चला चुके हैं.

साल 2016-17 में जनरल एटलांटिक, बेन कैपिटल, कैपिटल इंटरनेशनल, टीए एसोसिएट्स, वारबर्ग पिनकस, एवरस्टोन जैसी प्राइवेट इक्विटी ने अग्रवाल परिवार से ‘हल्दीराम’ में अल्पांश या कंट्रोलिंग स्टेक खरीदने को लेकर बात की थी. इसके बाद 2018-19 में कैलोग्स ने भी लगभग एक साल तक अग्रवाल परिवार के साथ बातचीत की, लेकिन बात बनी नहीं.

इसके बाद पेप्सिको की इंद्रा नूयी ने भी हल्दीराम के साथ बायआउट को लेकर बातचीत की, जो मार्केट में ‘लेज’ नाम से उसकी सीधी कॉम्पिटिटर है. पिछले साल टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड भी हल्दीराम में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी लेने के लिए बातचीत कर रहा था. लेकिन बातचीत नहीं बनी, क्योंकि वैल्यूएशन को लेकर मामला अटक गया.

क्यों खास होती है ‘हल्दीराम’ की भुजिया?

हल्दीराम की शुरुआत 1937 में हुई थी. गंगा बिशन अग्रवाल ने तब बीकानेर में अपनी मिठाई और नमकीन की दुकान खोली थी. बीकानेर से वह दिल्ली चले आए और यहीं अपने कारोबार का इस्तेमाल किया. हल्दीराम को पहचान उसकी ‘भुजिया’ ने दिलाई, क्योंकि ये बाजार में मौजूद अन्य के मुकाबले काफी क्रिस्प थी. इसकी वजह ये थी गंगा बिशन अग्रवाल ने अपनी रेसिपी में चना दाल के बेसन के साथ-साथ मोंठ दाल के बेसन को भी इस्तेमाल करना शुरू किया, जिसने हल्दीराम की भुजिया को यूनिक टेस्ट दिया.

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