Explainer : जिस जिस ने खरीदा इलेक्टोरल बॉन्ड, सुप्रीम कोर्ट…- भारत संपर्क

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Explainer : जिस जिस ने खरीदा इलेक्टोरल बॉन्ड, सुप्रीम कोर्ट…- भारत संपर्क
Explainer : जिस-जिस ने खरीदा इलेक्टोरल बॉन्ड, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद क्या अब उसे भरना पड़ेगा Tax?

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी चंदे को असंवैधानिक बताया है

सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने 15 फरवरी को एक बड़ा फैसला सुनाया. साल 2018 में राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए लाई गई इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम को उसने ‘असंवैधानिक’ बताते हुए खारिज कर दिया. साथ ही इसे जनता के सूचना के मौलिक अधिकार के विरुद्ध बताया जो उन्हें भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत मिलता है. इस फैसले के बाद से उन लोगों की चिंता बढ़ी हुई है, जिन्होंने इसे खरीदकर इनकम टैक्स क्लेम हासिल किया है. ऐसे में क्या अब उन्हें इन बॉन्ड्स के एवज में टैक्स भरना होगा? चलिए समझते हैं…

सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया है, उसके हिसाब भारतीय स्टेट बैंक के चुनावी बॉन्ड जारी करने पर तत्काल रोक लगा दी गई है. साथ ही अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए सभी इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग से शेयर करने के लिए कहा गया है. साथ ही ये बताने को भी कहा गया है कि किस पार्टी को चुनावी बांड से कितना चंदा मिला. चुनाव आयोग को भी ये जानकारी 6 मार्च तक सार्वजनिक करने के निर्देश दिए गए हैं. लेकिन इस मामले में चिंता इलेक्टोरल बांड के खरीदारों की है.

मिलती है 100% टैक्स छूट

चुनावी बांड को 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए की वैल्यू के हिसाब से खरीदा जाता है. सिर्फ एसबीआई इसे जारी करती है और खरीदार की पहचान गुप्त रखी जाती है. चुनावी बॉन्ड की वैलिडिटी सिर्फ 15 दिन होती है. अगर खरीदार इसे 15 दिन के भीतर किसी पार्टी को नहीं देता है, या इसे पाने वाली पार्टी इसे कैश नहीं कराती है, तो ये पैसा प्रधानमंत्री राहत कोष में चला जाता है.

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इन दोनों ही स्थिति में दान में दी गई कुल राशि पर 100 प्रतिशत की टैक्स छूट का फायदा उठाया जा सकता है. इनकम टैक्स कानून की धारा-80जीजीबी और धारा-80जीजीसी के मुताबिक राजनीतिक दलों को दिए गए चंदे पर 100 प्रतिशत कर छूट मिलती है. अब जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवैध घोषित कर दिया है, तो क्या इसके एवज में ली गई टैक्स छूट रिफंड करनी होगी?

क्या वापस करना पड़ेगा टैक्स क्लेम?

सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड की पहचान गुप्त रखने और उसकी वैधता को लेकर फैसला सुनाया है. इसमें इसके टैक्स के पहलू पर बातचीत नहीं की गई है. ऐसे में एक्सपर्ट्स का कहना है कि पहले इसकी जानकारी सार्वजनिक होने और उसके बाद सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स (सीबीडीटी) के इसे लेकर स्पष्टीकरण आने का इंतजार करना होगा.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में धारा-80GGB और धारा-80GGC के तहत मिलने वाली छूट के संदर्भ में कोई बात नहीं कही गई है. ना ही इसे लेकर कोई आपत्ति दर्ज की गई है. ऐसे में इलेक्टोरल बॉन्ड पर मिली टैक्स छूट को लेकर स्पष्टीकरण का इंतजार करना ही मुनासिब होगा.

वहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले अप्रैल 2023, जुलाई 2023, अक्टूबर 2023 और जनवरी 2024 में जो इलेक्टोरल बॉन्ड जारी हुए, वो पार्टियों द्वारा भुनाए जा चुके हैं, क्योंकि इनकी मियाद ही 15 दिन की होती है. वहीं इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त टैक्सपेयर्स को अगर इन चंदों पर टैक्स क्लेम लेना होता है, तो उनका नाम गुप्त रखने की शर्त वैसे ही खारिज हो जाती है, क्योंकि व्यक्ति या कंपनियों को आईटीआर में भले राजनीतिक दलों के नाम नहीं उजागर करने होते हैं, लेकिन जिनको उन्होंने चंदा दिया होता है. उन राजनीतिक दल के पैन नंबर और उन्हें दिए बॉन्ड की जानकारी देनी होती है.

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