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जिले के किसान कर रहे श्री पद्धति से धान की खेती, कम पानी, बीज और अल्प लागत में पा रहे बंपर पैदावार

कोरबा। जिले में कृषि विभाग किसानों को आधुनिक और लाभकारी श्री पद्धति से धान की खेती करने के लिए लगातार प्रेरित कर रहा है। यह वैज्ञानिक विधि कम पानी, कम बीज और कम लागत में धान की बंपर पैदावार देने का एक प्रभावी तरीका सिद्ध हो रही है। कृषि विभाग द्वारा जिले के कई क्षेत्रों में लगभग 20 हेक्टेयर के प्लॉट पर किसानों को इस पद्धति का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे उन्हें इसके व्यावहारिक लाभों को समझने में मदद मिल रही है। इस विधि से खेती करने में न केवल पानी और बीज की बचत होती है, बल्कि फसल की पैदावार भी कई गुना बढ़ जाती है। पूर्व के वर्षों में जिन किसानों ने श्री पद्धति का अनुभव किया है, वे इसके उल्लेखनीय लाभ को देखते हुए अब स्वयं ही इस विधि को अपना रहे हैं। श्री पद्धति, जिसे सिस्टम ऑफ राइस इंटेंसिफिकेशन (एसआरआई) भी कहा जाता है। धान की खेती की एक वैज्ञानिक और टिकाऊ विधि है। इसका मुख्य उद्देश्य कम संसाधनों जैसे पानी, बीज और लागत का उपयोग करके अधिकतम उपज प्राप्त करना है। इस विधि को 1980 के दशक में मेडागास्कर में फ्रांसीसी जेसुइट फादर हेनरी डी लौलानी ने विकसित किया था और अब यह भारत सहित दुनियाभर में किसानों द्वारा सफलतापूर्वक अपनाई जा रही है। इस पद्धति के कुछ प्रमुख सिद्धांत इसे पारंपरिक तरीकों से अलग बनाते हैं और इसे अधिक उत्पादक बनाते हैं। इसमें बहुत कम उम्र के (आमतौर पर 8-12 दिन पुराने, 2-3 पत्तियों वाले) पौधों की रोपाई की जाती है, जिससे जड़ों का विकास बेहतर होता है और उनमें अधिक कल्ले निकलने की क्षमता बढ़ती है।पारंपरिक गुच्छे के बजाय एक स्थान पर केवल एक ही पौधा रोपा जाता है। साथ ही पौधों को पंक्तियों में और पौधे से पौधे के बीच पर्याप्त दूरी (आमतौर पर 25 गुणा 25 सेमी या उससे अधिक) पर लगाया जाता है। इससे पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह और पोषक तत्व मिलते हैं। पारंपरिक विधि के विपरीत, जिसमें खेत को लगातार पानी से भरा रखा जाता है, एसआरआई विधि में खेत को बारी-बारी से गीला और सूखा किया जाता है इससे मिट्टी में हवा का संचार बेहतर होता है, जो जड़ों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है और मीथेन गैस के उत्सर्जन को कम करता है। मिट्टी के स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार के लिए जैविक खाद का अधिक से अधिक उपयोग किया जाता है।

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