बिहार: पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि ने बनाया अनोखा कीर्तिमान, रिकॉर्ड 14वीं…

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बिहार: पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि ने बनाया अनोखा कीर्तिमान, रिकॉर्ड 14वीं…
बिहार: पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि ने बनाया अनोखा कीर्तिमान, रिकॉर्ड 14वीं बार बदली राजनीतिक पार्टी, लिस्ट में कई और नेता भी हैं शामिल

पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि

पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि ने मंगलवार को बिहार की राजनीति में एक नया इतिहास बना दिया. नागमणि ने फिर एक बार दल बदलते हुए नई पार्टी के साथ अपने राजनीतिक सफर को शुरू किया. पूर्व मंत्री के इस कदम की चर्चा चारों तरफ हो रही है. बिहार के लेनिन के नाम से मशहूर जगदेव प्रसाद के बेटे नागमणि बिहार में शायद ही ऐसी कोई पार्टी बची होगी जिसमें वह शामिल न हुए हों. वो न सिर्फ बिहार बल्कि केंद्र की राजनीति में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं.

बिहार विधानसभा से पहले प्रशांत किशोर की जनसुराजल को छोड़कर उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया. बीजेपी में तो वह दूसरी बार शामिल हुए हैं, इसके अलावा वह दो बार राजद और जदयू एवं दो बार कांग्रेस में भी रह चुके हैं. नागमणि इससे पहले कांग्रेस, राजद, जदयू, रालोसपा, एनसीपी यहां तक की बीएसपी में भी रह कर राजनीति कर चुके हैं. इतना ही नहीं वह दल बदलने के साथ ही कई बार अपनी पार्टी भी बना चुके हैं.इन पार्टियों का वह दूसरे दलों में विलय भी कर चुके हैं.

1977 में पहली बार विधायक

राज्य की राजनीति में 1977 में पहली बार नागमणि को विधायक बनने में सफलता मिली थी. उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी का आगाज अपने पिता द्वारा गठित शोषित समाज दल से की थी. इसके बाद उन्होंने बिहार की राजनीति में कभी पीछे मुडकर नहीं देखा. राजनीतिक परिदृश्य के अनुरूप नागमणि को जब भी उचित लगा, उन्होंने पार्टी को बदलने में तनिक भी परहेज नहीं किया.

लंबी है दलों की सूची

शोषित समाज दल से राजनीति में एंट्री करने वाले नागमणि ने कांग्रेस, जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय जनता पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, फिर कांग्रेस, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, फिर जेडीयू और फिर भारतीय जनता पार्टी में सिलसिलेवार तरीके से जाकर अपनी सुविधा के अनुरूप राजनीति की.

दो बार बनाई पार्टी

अपनी पार्टी को बदलने की राजनीति के दौरान कम से कम दो बार ऐसे भी मौके आए, जब नागमणि ने अपनी पार्टी भी बनाई. 2015 में नागमणि ने समरस समाज पार्टी का गठन किया था, तब उन्होंने समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, जन अधिकार पार्टी, नेशनल पीपुल्स पार्टी और समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक के साथ मिलकर के एक सोशलिस्ट सेकुलर मोर्चा भी बनाया था. हालांकि इसके ठीक दो साल बाद ही 2017 में नागमणि ने अपनी समरस समाज पार्टी का उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक क्षमता पार्टी में विलय कर दिया. तब उपेंद्र कुशवाहा ने उनको रालोसपा का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाया था. इसके बाद 2017 में ही नागमणि ने शोषित इंकलाब पार्टी का गठन किया था. तब उन्होंने दावा किया था कि उनकी पार्टी बिहार में एक विकल्प बनेगी. हालांकि नागमणि का यह दावा भी नहीं टिक पाया और उन्होंने शोषित इंकलाब पार्टी का बहुजन समाज पार्टी में विलय कर दिया था.

चारों सदन के रह चुके हैं नेता

नागमणि राज्य के उन गिने चुने नेताओं में से एक हैं, जो विधानसभा, विधान परिषद, राज्यसभा और लोकसभा, चारों के ही सदस्य रह चुके हैं. इसके अलावा वह केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. 2003 में अटल बिहारी सरकार में वह केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रह चुके हैं.

आरसीपी सिंह भी सूची में शामिल

राज्य के दल बदलू नेताओं में नौकरशाह से राजनेता बने आरसीपी सिंह का नाम भी शामिल हैं. आरसीपी सिंह ने IAS रहते हुए अपनी नौकरी को छोड़ दिया था और जदयू में शामिल हो गए थे. नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को पार्टी का अध्यक्ष तब बना दिया था. आरसीपी मोदी सरकार में केंद्रीय इस्पात मंत्री भी बने. हालांकि इसके बाद नीतीश कुमार से इनके संबंध में खटास आ गई.

बीजेपी फिर जन सुराज

नीतीश कुमार के साथ संबंधों में आयी खटास के बाद आरसीपी सिंह ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया था. हालांकि बीजेपी के साथ आरसीपी सिंह ज्यादा वक्त तक नहीं निभा सके. इसके बाद आरसीपी ने आप सब की आवाज नाम से पार्टी भी लॉन्च की. कुछ दिन पहले उन्होंने अपनी पार्टी का जन सुराज में विलय कर दिया था. फिलहाल आरसीपी सिंह आगामी विधानसभा चुनाव को लेतर जन सुराज में पार्टी की रणनीति को बना रहे हैं.

विजय कुमार चौधरी ने भी बदले कई ठिकाने

सीएम नीतीश कुमार की पार्टी के अहम स्तंभ और नीतीश कुमार के सबसे अहम और खास सहयोगियों में शुमार होने वाले मंत्री विजय कुमार चौधरी का नाम भी उन नेताओं की सूची में शामिल है, जिन्होंने अपनी सुविधा के अनुसार पार्टी को बदला है. विजय चौधरी ने 1982 में अपने पिता के निधन के बाद सरकारी नौकरी से इस्तीफा दिया था और कांग्रेस के टिकट पर दलसिंहसराय से विधानसभा चुनाव लड़ा था. 1983 से 95 तक विजय कुमार चौधरी विधायक रहे. इस दौरान वह कांग्रेस विधायक दल के नेता रहे. 1995 और 2000 में भी उन्होंने चुनाव लड़ा लेकिन वह हार गए थे. 2000 से 2005 तक वह बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव रहे. 2005 में वह जदयू में शामिल हुए और आज के वक्त में वह जदयू के सबसे कद्दावार नेताओं में से एक हैं.

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