मसाले से सब्जी बना लहसुन, कोर्ट के फैसले के बाद किसानों को क्या होगा फायदा?… – भारत संपर्क

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने लहसुन पर एक बड़ा फैसला सुनाया है, जिससे प्रदेश के कई किसानों को सीधे तौर पर लाभ मिलेगा. इससे किसानों के बीच खुशी का माहौल है. हाई कोर्ट से साफ किया है कि लहसुन जो है, वह सब्जी की कैटेगरी में आता है, न कि मसाले की. इस क्लेरिटी के साथ किसानों को अब लहसुन बेचने के लिए कृषि उपज मंडी के चक्कर काटने की जरूरत नहीं है. वह अपनी लहसुन की फसल को सीधे सब्जी मंडी में बेच सकते हैं.
यह मामला काफी पुराना है. अगर हम नियमों की बात करें तो कृषि उपज मंडी उपविधि अधिनियम- 1972 के तहत अनाज, फल और सब्जी को बेचने की व्यवस्था बताई गई है. इस लिस्ट में लहसुन को मसालों की श्रेणी में रखा गया था. इस वजह से किसानों को मजबूरी में लहसुन की फसल को कृषि उपज मंडी में बेचना पड़ता था. इसमें किसानों को बिकने तक अपनी फसल के साथ रहना पड़ता था और कृषि उपज मंडी में नीलामी की व्यवस्था के तहत ही बेचा जाता था.
किसानों को क्या परेशानी?
2007 में मंदसौर के लहसुन व्यापारी मुकेश सोमानी ने कृषि उपज मंडी बोर्ड में अपील की थी कि लहसुन को कृषि उपज मंडी में बेचने की अनुमति दी जाए. इसके बाद इस लड़ाई में आलू-प्याज कमीशन एसोशिएशन की एंट्री भी हो गई. आलू-प्याज कमीशन एसोशिएशन ने सालों पुरानी व्यवस्था का हवाला दिया तो मंडी बोर्ड ने लहसुन बेचने को स्वैच्छिक कर दिया. इस फैसले के खिलाफ फिर अपील की गई. इसमें कहा गया कि लहसुन की तरह जो भी अन्य मसाले किसान उगा रहे हैं, उन्हें भी सब्जी मंडी में बेचने के लिए अपील की जाने लगेगी.
इस अपील के बाद मंडी प्रशासन कन्फ्यूज हो गया और लहसुन को कृषि उपज मंडी में ही खरीदने के आदेश दे दिए, जिसके बाद आलू-प्याज कमीशन एसोशिएशन के वकील अजय बागड़िया हाई कोर्ट पहुंचे.
किसान क्यों हो रहे खुश?
किसानों का कहना है कि कृषि उपज मंडी में लहसुन लेकर जाने और बेचने में काफी अड़चनें आई हैं. किसानों के अनुसार, मंडी में अनाज के साथ रहना पड़ता है. इसके बाद उन्हें मंडी के आढ़ती दो दिन बाद अकाउंट में पैसा भेजते हैं. वहीं मंडी के व्यापारी किसानों के रहने खाने-पीने की व्यवस्था करते हैं. जब तक कि उनका माल न बिक जाए. कृषि उपज मंडी में खुद दाम लगाए जाते हैं. उसी के हिसाब से फसल बेचना पड़ता है.