रेत घाटों की निगरानी में भगवान भरोसे,चोरों को मिल रहा फायदा- भारत संपर्क
रेत घाटों की निगरानी में भगवान भरोसे,चोरों को मिल रहा फायदा
कोरबा। जिले में रेत का अवैध खनन और परिवहन बदस्तूर जारी है। शहर में कोई भी रेत घाट स्वीकृत नहीं है लेकिन इसके बावजूद निर्माण कार्यों के लिए कभी रेत की किल्लत भी नहीं रही। अब नया मामला रेत घाटों की निगरानी को लेकर सामने आया है। जिसमें जिम्मेदार कोताही बरत रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि विभाग ने कभी भी रेत घाटों का सत्यापन कर यह जांच करना जरूरी नहीं समझा कि जिस स्थान के लिए रेत खनन की स्वीकृति दी गई है, संबंधित ठेकेदार या पंचायत की ओर से खनन उसी क्षेत्र में हुआ है या इससे ज्यादा क्षेत्रफल में किया गया है। यह स्थिति तब है जब प्रशासन की ओर से रेत के अवैध खनन और परिवहन की रोकथाम को लेकर टॉस्क फोर्स कमेटी का गठन किया गया है। इसमें राजस्व विभाग और खनिज विभाग के अलावा परिवहन व पुलिस को भी शामिल किया गया है। लेकिन रेत घाटों की निगरानी न तो कभी खनिज विभाग की ओर से की गई और न ही राजस्व विभाग ने कभी इसकी जानकारी ली। दोनों की संयुक्त टीम घाटों की जानकारी लेने कभी पहुंची ही नहीं है।शहर में रेत घाट नहीं होने के बाद भी रेत परिवहन करने वाली गाडिय़ां 24 घंटे रेत ढोने का काम कर रही है। दिन में उन क्षेत्रों से रेत आ रहा है जहां रेत खनन की अनुमति नहीं है, रात में भी अवैध रेत खनन का काम जोर-शोर से चल रहा है। इस कार्य में बिना नंबर की गाडिय़ों का इस्तेमाल ज्यादा किया जा रहा है। इधर खनिज विभाग का कहना है कि शहर में दो रेत घाट स्वीकृत कराने की प्रक्रिया चल रही है। इसके जल्द पूरा होने की उम्मीद है। नए वित्तीय वर्ष में यहां से रेत खनन हो सकेगा।
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जिले में सात रेत घाट स्वीकृत
कोरबा जिले में जिला प्रशासन की ओर से सात रेत घाट स्वीकृत किये गए हैं जिसमें चुईया, दुल्लापुर, कुदुरमाल, धंवईपुर, तरदा, सिरली-1 और कुटेसरनगोई शामिल हैं। कुटेसरनगाई घाट का संचालन अरूण सिंघानिया नाम का व्यक्ति करता है जबकि 6 अन्य घाटों का संचालन ग्राम पंचायत से किया जाता है।
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धीरे-धीरे सीसीटीवी से निगरानी बंद
पूर्व में गौण खनिज के खनन वाले स्थलों पर जिला प्रशासन की ओर से सीसीटीवी कैमरे लगवाए गए थे। कैमरों की निगरानी भी प्रशासन की ओर से किया जाता था। यह जानने की कोशिश होती थी कि प्रतिदिन कितने टन चूना पत्थर या साधारण पत्थर का खनन किया जा रहा है। लेकिन धीरे-धीरे यह निगरानी बंद हो गई। इसके बाद जिला प्रशासन के किसी भी अफसर ने खदानों की निगरानी करना जरूरी नहीं समझा। अब स्थिति ये है कि खदान से पत्थर या चूना पत्थर रोजाना कितना निकल रहा है यह उपलब्ध नहीं है।