नशीली आंखों वाली वो तवायफ, पटना के नवाबों से लेकर अंग्रेज भी थे खूबसूरती पर…


फोटो क्रेडिट (Freepik)
बिहार के पटना में 19वीं और 20वीं सदी में एक तवायफ थी, जिसकी कला के किस्से हर कहीं मशहूर थे. खूबसूरती तो ऐसी मानो जैसे भगवान ने फुर्सत की घड़ी में उसे खुद तराशा हो. इस खूबसूरत तवायफ का नाम था जिया अजीमाबादी. जिया का की मां भी एक तवायफ थीं. उन्ही से जिया ने नृत्य, संगीत और शायरी की बारीकियां सिखी थीं.
जिया की महफिलें पटना के नवाबों, जमींदारों और अंग्रेज अफसरों के बीच मशहूर थीं. 18वीं और 19वीं सदी में जब मुगलों का पतन हुआ तो ब्रिटिश औपनिवेशिक काल का दौर शुरू हुआ. पटना तब बिहार का एक प्रमुख सांस्कृतिक और व्यापारिक केंद्र था. वहां तब तवायफों की परंपरा भी समृद्ध थी. यहां नवाबों, जमींदारों और अंग्रेज अफसरों की मौजूदगी ने तवायफों की महफिलों को बढ़ावा दिया.
जिया अजीमाबादी का दौर 1850 से 1870 के बीच का है. उस दौर में तवायफें केवल नाचने-गाने वाली नहीं थीं, बल्कि उनकी शायरी, अदब और आकर्षण उन्हें समाज के उच्च वर्ग में सम्मानित स्थान दिलाते थे. जिया अजीमाबादी को पटना की सबसे खूबसूरत तवायफों में एक माना जाता था. उनकी आंखों में एक अजब सा नशा था. चाल पर तो हर कोई जान फूंकता था. एक बार जो जिया से आंख मिला लेता, वो उसकी यादों में खो जाता. मुस्कान ऐसी ही कोई भी उसका कायल हो जाए. जब भी वो गजल गातीं, तो सुनने वाले सुध-बुध खो बैठते.
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हर कोई था जिया का दीवाना
जिया के पहनावे की भी खूब चर्चा थी. वो जरी की साड़ियां और भारी जेवर पहनती थीं. हालांकि, सादगी उसकी सुंदरता को सबसे ज्यादा बढ़ाती थी. कहा जाता है कि उनकी खूबसूरती केवल चेहरे तक सीमित नहीं थी, बल्कि उनके व्यक्तित्व में एक ऐसी कशिश थी जो नवाबों से लेकर साधारण शायरों तक को उनका दीवाना बना देती थी.
प्यार की खातिर जान कुर्बान
अजीमाबादी की जिंदगी में प्रेम तब आया, जब उसकी मुलाकात एक युवा शायर और जमींदार के बेटे, मिर्जा हसन से हुई. उनसे वो बेपनाह मोहब्बत करती थीं. प्यार भी ऐसा कि उसकी खातिर जहर खाकर अपनी जान तक कुर्बान कर दी.