होटल का खाना, Swiggy Zomato से डिलीवरी, ऐसे लगा रही आपकी बचत…- भारत संपर्क
बाहर के खाने पर बढ़ा लोगों का खर्च Image Credit source: Unsplash
रमेश ने 90 के दशक में जब नौकरी करना शुरू किया था, तब परिवार के साथ रेस्टोरेंट में जाकर बाहर खाना खाना एक फैमिली आउटिंग होती थी और ऐसा महीने में कभी-कभार या दो-तीन महीने में एक बार होता था, क्योंकि उसके लिए तब सेविंग करना काफी जरूरी था.
इसलिए आज जब रमेश अपने बच्चों को आए दिन बाहर का खाना खाते देखता है या स्विगी-जोमैटो से फूड डिलीवरी मंगवाते हुए देखता है, तो उसकी टेंशन बढ़ जाती है. उसे लगता है कि बच्चों की सेविंग का क्या हाल होता होगा? क्या आप जानते हैं कि बाहर का खाना किस तरह आपकी बचत को चपत लगा रहा है? चलिए समझते हैं ये पूरा ट्रेंड…
लोगों का खाना पकाना हुआ कम
हाल में सांख्यिकी मंत्रालय और आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने कुछ आंकड़े जारी किए हैं, जो आपको लोगों की आदतों के बारे में बताते हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि 10 साल पहले की तुलना में लोगों के खाना पकाने में कमी आई है, जबकि बाहर के खाने या प्रोसेस्ड खाने पर उनका खर्च बढ़ा है. इसके आगे और भी बढ़ने की संभावना भी रिपोर्ट में जताई गई है.
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इतना ही नहीं देश में स्विगी और जोमेटो जैसी फूड डिलीवरी कंपनियों की सर्विस बढ़ने, जेप्टो और ब्लिंकइट जैसी क्विक ई-कॉमर्स सर्विस के पॉपुलर होने से लोगों का इन चीजों पर खर्च बढ़ा है. इसकी बड़ी वजह लोगों के लाइफ स्टाइल में बदलाव, इनकम में बढ़ोतरी, फूड हैबिट्स का बदलना और न्यूक्लियर फैमिली में कपल्स का वर्किंग होना है.
50 प्रतिशत तक हो रहा खर्च
रिपोर्ट बताती है कि देश के शहरी इलाकों में इनकम पिरामिड के टॉप लेवल पर रहने वाले लोगों के घरों में फूड बजट का आधे से ज्यादा पैकेज्ड फूड, रेस्टोरेंट के खाने और फूड डिलीवरी पर खर्च हो रहा है. जबकि ठीक 10 साल पहले ये खर्च महज 41.1 प्रतिशत था.
इसी तरह मिडिल क्लास के लोग पहले अपने फूड बजट का करीब 16 प्रतिशत प्रोसेस्ड फूड पर खर्च करते थे. जबकि अब ये खर्च 25 प्रतिशत बढ़ चुका है.
ग्रॉसरी में सब्जी, नमक, चीनी का खर्च हुआ कम
ईटी की एक एनालिसिस के मुताबिक 10 साल पहले की तुलना में अब लोगों के ग्रॉसरी बजट में नमक, चीनी, सब्जी, दाल और अनाज पर होने वाले खर्च में कमी आई है. जबकि पैकेज्ड फूड, मिल्क, मिल्क प्रोडक्ट्स, फल और ड्राई फ्रूट्स का खर्च बढ़ा है.
लोगों की बचत को लग रही चपत
लोगों के इस खर्च का असर उनकी बचत पर पड़ रहा है. खासकर 30 साल से कम उम्र की जेनरेशन देश की इकोनॉमी को अब सेविंग के बजाय स्पेंडिंग इकोनॉमी बना रही है. कई आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं कि देश में सेविंग का ट्रेंड कमजोर हो रहा है.
मोतीलाल ओसवाल की एक स्टडी के मुताबिक भारत की टोटल फाइनेंशियल सेविंग जीडीपी के 5 प्रतिशत के लेवल पर आ गई है, जबकि उनके बीच लोन लेने का ट्रेंड बढ़ रहा है.
इंवेस्टमेंट एडवाइजर मल्टीपल की एक रिपोर्ट के मुताबिक जेनरेशन जी ( Gen Z) अब सेविंग से ज्यादा एक्सपीरियंस पर ध्यान दे रहे हैं. उनकी इनकम का 20 प्रतिशत तक खर्च लाइफस्टाइल पर हो रहा है.
इसी तरह सीईआईसी का डेटा बताता है कि 2012-13 में लोगों के बीच बचत करने की सकल औसत दर (ग्रॉस सेविंग रेट) 34 प्रतिशत थी. जबकि 2021 में घटकर ये 29.14% रह गई. 2022 में ये मामूली तौर पर बढ़ी, लेकिन 2023 में इसमें फिर से घटने का ट्रेंड दिखने लगा और अभी ये 30.2% रह गया है.
यहां ग्रॉस सेविंग रेट का मतलब लोगों की डिस्पोजल इनकम और कंजप्शन में आने वाला वो अंतर है, जो डोमेस्टिक सेविंग का हिस्सा होता था.