कांग्रेस के ‘मिशन सीमांचल’ में कितना फिट बैठेंगे पप्पू यादव? बीजेपी नहीं…

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कांग्रेस के ‘मिशन सीमांचल’ में कितना फिट बैठेंगे पप्पू यादव? बीजेपी नहीं…
कांग्रेस के 'मिशन सीमांचल' में कितना फिट बैठेंगे पप्पू यादव? बीजेपी नहीं नीतीश के लिए बनेंगे चुनौती

कांग्रेस पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और पप्पू यादव

बिहार में कांग्रेस का फोकस सीमांचल के इलाके पर है, जिसे वो मजबूत करने में जुट गई है. इस कड़ी में पांच बार के सांसद रहे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है. साथ ही पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी का भी कांग्रेस में विलय कर दिया है. माना जा रहा है कि कांग्रेस उन्हें पुर्णिया लोकसभा सीट से उम्मीदवार बना सकती है. पप्पू यादव नब्बे के दशक से मधेपुरा, सुपौल, पूर्णिया जैसे कोशी व सीमांचल के इलाके में एक्टिव रहे हैं. कांग्रेस में उनके शामिल होने से सीमांचल में कांग्रेस को सियासी तौर पर क्या फायदा होगा?

पप्पू यादव पांच बार लोकसभा सांसद रहे हैं, जिसमें दो बार मधेपुरा से तो तीन बार पुर्णिया से जीते हैं. मधेपुरा कोसी में तो पुर्णिया सीमांचल में आता है. सीमांचल के इलाके में पुर्णिया, किशनंगज, अररिया और कटिहार लोकसभा सीट आती है, जहां पर 40 से 70 फीसदी आबादी मुस्लिम समुदाय की है. असदुद्दीन ओवैसी बिहार में अपनी सियासी जड़े मजबूत करने में लगे हैं. जिसके चलते कांग्रेस सतर्क हो गई है और अपनी पकड़ को हर हाल में बनाए रखना चाहती है. 2019 में कांग्रेस सिर्फ एक सीट किशनगंज ही जीत सकी थी. इसके अलावा विपक्ष बिहार में कोई दूसरी सीट नहीं जीत सका था.

2019 में क्या था समीकरण

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू-एलजेपी का गठबंधन था. बीजेपी ने सीमांचल की महज अररिया सीट पर चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज करने में सफल रही थी. एनडीए में रहते हुए जेडीयू ने तीन सीट पर चुनाव लड़ा था, जिसमें कटिहार और पूर्णिया सीट मिली थी. किशनंगज सीट कांग्रेस के हाथों हार गई थी. कांग्रेस कटिहार सीट पर बहुत मामूली वोटों से हार गई थी. कांग्रेस सीमांचल में अपने सियासी आधार को दोबारा से मजबूत करना चाहती है, जिसके लिए हर संभव कोशिश में जुटी है. टीवी-9 और पोलस्ट्रेट के सर्वे में बिहार में एनडीए को जिन दो सीटों पर हार का अनुमान बताया गया है, वो कटिहार और किशनगंज है, जो सीमांचल की हैं.

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सीमांचल पर टिकी उम्मीद

बिहार में सीमांचल के इलाके से कांग्रेस की उम्मीदें टिकी हुई हैं. यही कारण है कि राहुल गांधी ने अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान सबसे ज्यादा सीमांचल में समय बिताए हैं. राहुल ने अपनी एक मात्र रैली पूर्णिया में की थी. 2019 में मोदी-नीतीश की जोड़ी ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था. बावजूद इसके एक मात्र सीट किशनगंज कांग्रेस जीतने में कामयाब रही थी. पप्पू यादव की पूरी राजनीति भी सीमांचल केंद्रित रही है. वे पूर्णिया सीट से दो बार निर्दलीय और एक बार सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीते हैं. इससे सीमांचल की सियासत में पप्पू यादव की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है.

पप्पू यादव का सियासी सफर

पप्पू यादव की छवि एक समय बाहुबली की थी, लेकिन अब उन्हें राबिनहुड के तौर पर देखा जाता है. वो लोगों के दुख-सुख में पहुंचने वाले नेताओं में है. पप्पू यादव फुल टाइम पॉलिटिक्स करते हैं. 2014 में मधेपुरा से पप्पू यादव और उनकी पत्नी रंजीता रंजन सुपौल सीट से कांग्रेस की सांसद रही हैं. पप्पू यादव का अच्छा-खासा अपना सियासी जनाधार है. अब पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. वो पुर्णिया लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतर सकते हैं. इस तरह सिर्फ पुर्णिया में प्रभावकारी साबित होने के साथ-साथ सीमांचल की बाकी सीटों पर भी वो असर डालेंगे.

जेडीयू की सीमांचल रणनीति

बिहार में एनडीए से हुए सीट बंटवारे में जेडीयू के ज्यादा उम्मीदवार सीमांचल से ही चुनाव लड़ेंगे, उसमें कटिहार और किशनगंज शामिल है. जेडीयू सीमांचल-कोसी में जिन सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उसमें सुपौल, किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और मधेपुरा लोकसभा सीट शामिल है. पप्पू यादव की अपनी अच्छी-खासी पैठ है. ऐसे में पप्पू यादव बीजेपी से ज्यादा जेडीयू का काम बिगाड़ने का काम कर सकते हैं. इसकी वजह यह है कि पप्पू यादव की पकड़ सिर्फ यादव वोटों पर ही नहीं है बल्कि दलित और अतिपिछड़े वर्ग के बीच है.

पप्पू यादव ने कहा सीट जीत कर दूंगा

पप्पू यादव ने कांग्रेस में शामिल होने से पहले ही कह चुके थे कि मैंनें कांग्रेस नेतृत्व और सभी लोगों से कहा हूं आपको पप्पू यादव से क्या बेनिफिट हो सकता है. यह कोसी सीमांचल के मिट्टी और मां से पूछ लीजिए, मुझे मेरी मां और यहां की मिट्टी खून से कोई अलग नहीं कर सकता है. मैं बार-बार कहता हूं पूर्णियां के कॉज पर कोई समझौता नहीं होगा, मधेपुरा, सुपौल सहरसा दे दीजिए मैं हर हाल में यह सीट जीत कर दूंगा. कांग्रेस नेतृत्व को बता चुका हूं कि मधेपुरा और सुपौल दीजिए जीत की पक्की गारंटी देता हूं, लेकिन पूर्णियां पर कोई समझौता मंजूर नहीं है. पूर्व सांसद पप्पू यादव सीमांचल से लेकर कोसी तक की सीटें जिताने का दावा कर रहे हैं. राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने बुधवार को अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया है. सीमांचल में नीतीश कुमार की जेडीयू सबसे बड़ी चुनौती है तो दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी की मुस्लिम सियासत को भी काउंटर करने की स्टैटेजी है. कांग्रेस सीमांचल में अपनी सियासी पकड़ बनाए रखने की कवायद में है, जिसके लिए राजनीतिक बिसात बिछानी शुरू कर दी है. इसी कड़ी में पप्पू यादव की एंट्री कराई गई है और अब देखना है कि 2024 में कांग्रेस के लिए कितने मददगार वो साबित होते हैं.

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