IIT Kanpur Research For Ganga: आईआईटी कानपुर का कमाल, जासूसी सैटेलाइट फोटो की…


गंगा की हालत में क्या होगा सुधार?Image Credit source: Pixabay
IIT Kanpur Research For Ganga: साल 1965 में अमेरिका की ‘कोरोना’ सैटेलाइट ने जो सीक्रेट तस्वीरें खींची थीं, वह तस्वीरें अब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT)कानपुर और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के रिसर्चर्स के काम आ रही हैं. इन तस्वीरों से वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि गंगा का बहाव, उसका किनारा और आसपास की जमीन बीते 50 सालों में कैसे बदली है. कहीं बांधों ने रुकावट डाली, तो कहीं शहरों और खेती ने नदी का प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ा है.
इस रिसर्च से गंगा को उसका असली बहाव लौटाने और बेहतर ढंग से मैनेज करने की योजना बनेगी. खास बात यह है कि ये डेटा अब सिर्फ फाइलों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि गूगल अर्थ और डिजिटल डिस्प्ले पर भी उपलब्ध होगा.
क्या है प्लान?
1965 में अमेरिका की ‘कोरोना’ नाम की एक जासूसी सैटेलाइट ने गंगा की कुछ तस्वीरें खींची थीं. अब आईआईटी के रिसर्चर्स इन तस्वीरों को 2018-19 की तस्वीरों के साथ मिला रहे हैं. ऐसा करने से पता चलेगा कि 50 साल में नदी का बहाव और उसके आसपास की जमीन कैसे बदली है.
सरकार के मुताबिक, यह स्टडी गंगा को बचाने और ठीक करने में मदद करेगी. इस प्रोजेक्ट को ‘गंगा ज्ञान केंद्र’ का हिस्सा बनाया जाएगा, जहां सारी रिसर्च और जानकारी इकट्ठी होगी. 1965 की तस्वीरों में गंगा साफ दिखती है. लेकिन 2018-19 की तस्वीरों में नदी में बहुत बदलाव आ गए हैं. बांध, तटबंध और शहरों के फैलने से नदी का प्राकृतिक बहाव रुक गया है.
नदी का हाल जानने के लिए पूरे गंगा बेसिन की सीमाएं खींची जाएंगी. 1965-75 की तस्वीरों की तुलना अभी की तस्वीरों से करने पर पता चलेगा कि जमीन और नदी की बनावट में क्या-क्या फर्क़ आया है. यह सारा डेटा वेब-जीआईएस सिस्टम में डाला जाएगा, ताकि रिसर्च करने वालों को जानकारी मिल सके.
क्या होगा फायदा?
इस स्टडी से वैज्ञानिकों को यह पता चलेगा कि कहां-कहां बदलाव करके गंगा को प्राकृतिक बहाव वापस दिलाया जा सकता है और किस जमीन का सही तरीके से इस्तेमाल करके नदी का स्वास्थ्य सुधारा जा सकता है. सरकार के अनुसार, यह प्रोजेक्ट नदी की भू-आकृति में आए बदलावों को रिकॉर्ड नहीं कर रहा है, बल्कि यह भी दिखा रहा है कि कैसे तेजी से फैलते शहर और खेती नदी के प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ रहे हैं. इस स्टडी के नतीजों के आधार पर, एक एडवांस्ड वेब-जीआईएस लाइब्रेरी बनाई जा रही है, जो भविष्य की सरकारी नीतियों, नदी को मैनेज करने के तरीकों और बहाली के प्रोजेक्ट्स में मदद करेगी.
गूगल अर्थ पर भी होगा डेटा
‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ इन ‘कोरोना’ और जमीन से जुड़े डेटा को एक खास इंटरैक्टिव सिस्टम और गूगल अर्थ इंजन पर डालेगा. ये प्रोजेक्ट हरिद्वार, बिजनौर, नरोरा, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, भागलपुर और फरक्का के लिए डिजिटल डिस्प्ले भी बनाएगा, जो स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर फैसले लेने में काम आ सकते हैं. आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह प्रोजेक्ट गंगा को बचाने की दिशा में एक नए युग की शुरुआत है.
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