वाराणसी में ठाकुर-राजभर आमने-सामने, क्षत्रिय महासभा ने किया बड़ा ऐलान, छितौ… – भारत संपर्क

गांव वालों ने लगाया बैनर.
वाराणसी के चौबेपुर थाना क्षेत्र के छितौना गांव में राजनीतिक दलों और जातीय संगठनों ने ऐसा माहौल बना दिया है कि गांव का सामाजिक सौहार्द खतरे में पड़ गया. 5 जुलाई को हुई दो पड़ोसियों के बीच मारपीट की घटना को राजनीतिक दलों और जातीय संगठनों ने जातीय संघर्ष का रूप दे दिया. आधा बिस्वा जमीन पर बांस के झुरमुट का ये झगड़ा ठाकुर बनाम राजभर का संघर्ष ले लिया है.
10 से ज़्यादा लोगों के ख़िलाफ मुकदमा और आधा दर्जन लोगों के गंभीर रूप से घायल होने के साथ ही दो युवाओं को इस मामले में जेल भी जाना पड़ा है. लेकिन अभी भी इस झगड़े को लगातार बढ़ाने में राजनीतिक दल और जातीय संगठन लगे हुए हैं.
सुभासपा के कार्यकर्ताओं के खिलाफ प्रदर्शन
बीते शनिवार को सुभासपा नेता अरविंद राजभर की अगुवाई में सैकड़ों की संख्या में उनके कार्यकर्ता छितौना गांव पहुंचे. छितौना जाने के दौरान सुभासपा कार्यकर्ताओं ने करणी सेना और जातीय विशेष के ख़िलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की. गांव जाकर दूसरे पक्ष के घर पर चढ़कर आपत्तिजनक नारे लगाएं. इसके विरोध में राजपूत संगठनों ने मंगलवार को बड़ा प्रोटेस्ट बुलाया था. लेकिन प्रशासन ने करणी सेना और क्षत्रिय महासभा को दो टूक कह दिया कि किसी भी कीमत पर कानून व्यवस्था नही बिगड़ने दी जाएगी.
करीब चार घंटे तक करणी सेना और क्षत्रिय महासभा के साथ प्रशासन की बैठक चलती रहीं. करणी सेना ने इस शर्त पर प्रोटेस्ट को 48 घंटे के लिए टाल दिया है कि करणी सेना पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वालों के ख़िलाफ प्रशासन कार्रवाई करेगा और सुभासपा नेता अरविंद राजभर पर भी मुकदमा दर्ज होगा. लेकिन क्षत्रिय महासभा अड़ा हुआ है.
क्षत्रिय महासभा ने प्रोटेस्ट करने का फैसला किया है. अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि ये हमारे साख का सवाल है. हम हर हाल में प्रोटेस्ट करेंगे लेकिन हमारा प्रोटेस्ट शांतिपूर्ण ढंग से होगा.
वाराणसी में प्रदर्शनों पर रोक
प्रशासन ने दो टूक कह दिया है कि छितौना गांव में किसी तरह का कोई प्रोटेस्ट नही होगा और न ही इसकी इजाज़त दी जाएगी. वाराणसी जनपद में 163 बीएनएस धारा लागू है, जिसका पालन न करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी. इस मामले में एसआईटी का गठन हो गया है और जांच शुरू हो गई है. जिसको भी कोई साक्ष्य उपलब्ध कराना हो वो एसआईटी को उपलब्ध करा सकता है. भड़काऊ पोस्ट सोशल मीडिया प्लेटफार्म से हटाना होगा और किसी प्रकार का शक्तिप्रदर्शन कानून का उल्लंघन माना जाएगा.
गांव में लगे पोस्टर- यहां राजनीति न करें
पिछले 10 दिनों से छितौना गांव को राजनीतिक दलों और जातीय संगठनों ने जातीय संघर्ष की प्रयोगशाला बना दिया है. सभी इस पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं. गांव वाले भी अब इससे थक चुके हैं. उन्होंने बकायदे गांव में अब बैनर लगाया है कि बाहरी लोगों का यहां आकर राजनीति करना प्रतिबंधित है. उनसे निवेदन है कि वो यहां न आएं. गांव में सामाजिक सौहार्द बने रहने दें. गांव के लोग आपसी झगड़े को मिलजुलकर आपस में ही सुलझा लेंगे. कृपया बाहरी लोग हस्तक्षेप न करें.
क्या था पूरा मामला?
5 जुलाई को छितौना गांव में दो परिवार के बीच झगड़ा हो गया. झगड़ा आधे बिस्वा जमीन पर बांस के झुरमुट को लेकर था. संजय सिंह अपने दो बेटों के साथ और सुरेन्द्र राजभर अपने परिवार के लोगों के साथ लाठी डंडे के साथ एक दूसरे पर हमला करने लगे. दोनों तरफ से लोग घायल हुए और मामले की जानकारी चौबेपुर थाने को दी गई. घायलों को बीएचयू के ट्रामा सेंटर और जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया. यहां तक तो मामला दो परिवार के बीच के झगड़े का था, जिसे थाने स्तर से सुलझा लिया जाता.
लेकिन तभी स्थानीय विधायक और कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर की एंट्री होती है. अनिल राजभर एक पक्ष के घायलों को देखने ट्रामा सेंटर जाते हैं. ट्रामा सेंटर से कैबिनेट मंत्री के लौटने के बाद इस मामले में संजय सिंह और उनके दोनों बेटों के ख़िलाफ मुकदमा होता है. और जिला अस्पताल में भर्ती संजय सिंह के दोनों बेटों को जेल भेज दिया जाता है.
समाजवादी पार्टी का आरोप
समाजवादी पार्टी का आरोप है कि ये सब कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर का किया धरा है. सपा के जिलाध्यक्ष का आरोप है कि ये आधे बिस्वा जमीन का मामला है जो कि थाने और राजस्व विभाग के द्वारा बिगाड़ा गया था लेकिन अनिल राजभर ने इस पूरे मामले को सियासी बना दिया. संजय सिंह जो कि पिछले 20 सालों से बीजेपी के बूथ अध्यक्ष हैं, उनकी तरफ से जब एफआईआर नहीं लिखी गई तब इस मामले करणी सेना की एंट्री होती है.
करणी सेना अनिल राजभर पर आरोप लगाती है कि जब वो कैबिनेट मंत्री हैं तो सिर्फ एक पक्ष से ही मुलाक़ात क्यूं किए. जैसे ट्रामा सेंटर में राजभर समाज के लोगों को देखने गए वैसे ही जिला अस्पताल जाकर संजय सिंह को भी देख लेते. करणी सेना थाने का घेराव करती है और उसी के दबाव में 24 घंटे बाद दूसरे पक्ष की भी एफआईआर लिखी जाती है. अब ये दो परिवारों का संघर्ष नही रहा. यहां दो समाज आमने सामने था और दांव पर था राजभर वोट बैंक.
रिपोर्ट: अमित सिंह