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सचिवों की हड़ताल से शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में परेशानी, ग्राम पंचायतों का कार्य प्रभावित, सरपंचों के सामने विकास कार्यों के संपादन बनी चुनौती

कोरबा। जिले के ग्राम पंचायतों में काम करने वाले पंचायत सचिवों की हड़ताल जारी है। व्यवस्था संभालने के लिए कोई नही है और पंचायत कार्यालयों में ताले लगे है। नवनिर्वाचित सरपंचों को अधिकार और शक्तियां नही मिल पाई है। इससे गांवों का मूलभूत व्यवस्था गड़बड़ा गई है। न पेयजल सही तरीके से मिल रहा है न ही साफ- सफाई व्यवस्था दुरुस्त हो रहे और न ही अन्य काम हो रहे है। ऐसे में ग्रामीणों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। मोदी की गारंटी में चुनाव पूर्व पंचायत सचिव को शासकीयकरण किये जाने के वादे को पूर्ण कराने प्रदेश पंचायत सचिव संघ के आह्वान पर जिले के सचिव अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए है। जिससे पंचायतों में कामकाज ठप्प है और ग्रामीण परेशान हो रहे है। पीएम आवास, मनरेगा, पेंशन वितरण, पेयजल व्यवस्था, साफ- सफाई, जन्म- मृत्यु प्रमाणपत्र समेत पंचायतों के अन्य मूलभूत कार्य बुरी तरह से प्रभावित हो चले है। बता दें कि जिले में 17 से 23 फरवरी तक 3 चरणों मे पंचायत आम चुनाव सम्पन्न हुआ। इसके बाद 3 मार्च से निर्वाचित सरपंचों का शपथ ग्रहण और 17 मार्च से पंचायतों के सचिव हड़ताल पर चले गए। सरपंचों को कार्यभार भी नही सौंपा गया। जिसका असर गांवों में नजर आने लगा है। पंचायतों में सामान्य काम नही हो पा रहे है और ग्रामीणों के मूलभूत सुविधाएं प्रभावित होने के साथ सरकारी योजनाओं को आगे बढ़ाने में दिक्कत हो रही है। हड़ताल पर अडिग़ सचिवों का कथन है कि बीते विधानसभा चुनाव में मोदी की गारंटी में पंचायत सचिवों को शासकीयकरण करने का वादा किया था। इसे भाजपा ने अपने घोषणापत्र में शामिल किया था और सरकार बनने के 100 दिन के अंदर पंचायत सचिवों को शासकीयकरण किये जाने का आश्वासन दिया था, लेकिन आज सरकार बने 400 से अधिक दिन हो रहे है। इसके बाद भी राज्य सरकार द्वारा किसी भी प्रकार का ठोस पहल नही किया जा सका है। सिर्फ समिति बनाकर सचिवों को गुमराह किया जा रहा है। लेकिन इस बार पंचायत सचिव सरकार के समिति गठन के झांसे में नही आने वाले और शासकीयकरण कि मांग को लेकर आखिरी दम तक लड़ेंगे। वहीं निर्वाचित सरपंचों का कहना है कि गांव के लोग अपनी मूलभूत समस्याएं लेकर उनके पास आ रहे है, लेकिन सचिव के हड़ताल पर चले जाने और उन्हें कार्यभार नही मिल पाने से ग्रामीणों के मूलभूत समस्याओं का निराकरण नही हो पा रहा है और उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे हालात में सचिव की कमी से उनसे संबंधित कार्यों को किया जाना मुश्किल ही नही बल्कि असंभव भी हो गया है। जबकि ग्राम पंचायतो में सचिव के अभाव में पसरी समस्याओं के निराकरण हेतु शासन- प्रशासन द्वारा वैकल्पित व्यवस्था भी नही की जा रही है। इस स्थिति में गांव के लोग पंचायत और सरपंच का चक्कर काट रहे है, लेकिन उनका कोई काम नही हो पा रहा है। इस दिशा पर शासन को जल्द सकारात्मक निर्णय लिए जाने की अपेक्षा ग्रामीणों द्वारा की गई है।

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Arvind Rathore


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