सुभाष जयंती पर विशेष, संजय अनंत की कलम से — भारत संपर्क
23 जनवरी महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्मदिन है, जिसे केंद्र सरकार ने पराक्रम दिवस का नाम दिया है,
भारत के इतिहास की भयंकर भूल जिस ने भारत वर्ष का न केवल विभाजन किया, लाखो भीषण क़त्ल ए आम के शिकार हुए …
“यदि नेताजी सुभाषचंद्र बोस होते तो जिन्ना और मुस्लिम लीग भारत का बटवारा नहीं करा पाते”
ये मेरे विचार है आप सहमत हो या ना हो, किन्तु आप सब भी अपने विचार कमेंट्स में अवश्य लिखे
मेरे इस तर्क पीछे बहुत ठोस आधार है , है इतिहास में चलते है
कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हो रहा है १९३९ में जबलपुर के निकट त्रिपुरी में ..
इस कांग्रेस अधिवेशन में गाँधी जी के पिठ्ठू , पट्टाभि सितारमैया को सुभाष जी ने हराकर कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर सुषोभित हुए,गाँधी जी के अंतर का बड़प्पन अचानक गायब हो गया , वे दुखी हो गए , अपनी भड़ास छुपा भी नहीं पाए और उनके श्री मुख से सत्य निकल ही आया
”पट्टाभि की हार मेरी हार है ”
सुभाष बाबू जीत तो गए , हर युवा कांग्रेसी के आदर्श। भी बन गए , किन्तु गाँधी नेहरु गुट ने अपने ही अध्यक्ष के विरूद्ध असहयोग करना आरम्भ कर दिया नेताजी को इस ताकतवर गुट के अंतहीन दबाव के कारण कांग्रेस छोडनी पड़ी और यही से भारत वर्ष का दुर्भाग्य आरम्भ हुआ….
सुभाष बाबू का स्वास्थ्य त्रिपुरी अधिवेशन (जबलपुर )के समय बहुत खराब था (देखे तस्वीर ), शरीर ज्वर से तप रहा था, वे बिस्तर से उठने की भी स्थिति में नहीं थे और गांधी नेहरू गुट अपनी कुटिल चाल चल रहा था ..
अंत में कांग्रेस छोड़ उन्होंने अपना रास्ता चुना और वे उस में सफल भी हुए किन्तु उनके जाने से जो शून्य बना वो गांधी नेहरू कभी नहीं भर पाए , उन के समान कद कोई और तत्कालीन नेता नहीं हासिल कर पाया
जब मुस्लिम लीग ने “डाइरेक्ट एक्शन ” का आव्हान किया,तो उनके कारकुनो ने मार काट , सभी मुस्लिम बहुल इलकों मे आरम्भ कर दी , कॉंग्रेस नेतृत्व को मानो लकवा मार गया …
तब वीर सुभाष नही थे,लाखो हिन्दू कत्ल किये गये औरअनगिनत युवतियों का शील भंग किया गया और फ़िर प्रतिकार मे मुस्लिम भी कत्ल किये गये..
जितना मै समझ पाया, वीर सुभाष को कॉंग्रेस छोड़ने मे मजबूर करना एक भयंकर भूल थी,देश ने इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकाई…..नेताजी ही जिन्ना से निपट सकते थे
डॉ.संजय अनंत ©
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